शबाहत हुसैन विजेता
देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस लगातार अर्श से फर्श का सफ़र करने में लगी है. प्रियंका और राहुल गांधी हालांकि लगातार इसे आक्सीजन देने की कोशिश में लगे हैं लेकिन वह कोशिशें बार-बार बेकार साबित हो जाती हैं और हालात ऐसे नज़र आने लगते हैं जैसे कि यह पार्टी कभी भी वेंटीलेटर पर चली जायेगी.
जिस कांग्रेस ने हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने में सबसे अहम भूमिका अदा की. जिस कांग्रेस पार्टी पर हिन्दुस्तान के लोगों ने सबसे ज्यादा भरोसा किया. जिस पार्टी को आज़ादी के बाद सबसे ज्यादा वक्त तक हुकूमत चलाने का मौका मिला. जिस पार्टी में इन्दिरा गांधी जैसी करिश्माई नेता थीं.
कांग्रेस वही पार्टी है जिसने देश के लिए सबसे ज्यादा योजनायें बनाईं. जिसने देश को आईआईटी दिए, एम्स दिए. जिसने पाकिस्तान को तोड़कर बंगलादेश बना दिया. जिसने आतंकवाद के खिलाफ ऐसा संघर्ष किया कि अपनी सेना को शांतिसेना के रूप में श्रीलंका भेज दिया. वही कांग्रेस शनै-शनै मरने क्यों लगी. वही पार्टी चुनाव जीतकर भी सरकार बनाने में हारने क्यों लगी. क्या वजहें रहीं कि सियासत के एवरेस्ट पर सवार कांग्रेस बीमार नज़र आने लगी. क्या वजह रही कि किसी भी तरह की कोशिश उसे संजीवनी दे पाने में कामयाब नहीं हो पा रही.
कांग्रेस पार्टी के जो हालात खराब हुए हैं उसके लिए कांग्रेस को मंथन की ज़रूरत है. लगातार हुकूमत करने वाली कांग्रेस जीत के लिए क्यों तरसने लगी है इस पर उसे सोचने की ज़रूरत है. कांग्रेस को फिर से देखना होगा इन्दिरा गांधी के उस दौर की तरफ जब इमरजेंसी के बाद नाराज़ अवाम ने उनकी हुकूमत उखाडकर फेंक दी थी और इन्दिरा गांधी को जेल तक पहुंचा दिया था उन्ही इन्दिरा गांधी ने सिर्फ ढाई साल के भीतर हुकूमत में वापसी करके दिखाई थी.
आज के हालात पर मंथन करें तो सिर्फ कांग्रेस आलाकमान पर निगाहें जाकर टिक जाती हैं. राजस्थान में सचिन पायलट को लेकर देश भर में जो चर्चा है उस पर कांग्रेस आलाकमान को सोचने की ज़रूरत है. राजस्थान में इत्तफाकन अशोक गहलोत की सरकार बच गई है तो सचिन पायलट को दरकिनार कर कांग्रेस अपनी पीठ ठोकेगी तो गलती की एक और सीढ़ी चढ़ जायेगी. यह सीढ़ी आने वाले दिनों में कांग्रेस को कई मंजिल नीचे पहुंचा देगी.
यकीन न हो रहा हो तो कांग्रेस को चाहिए कि वह 11 साल पुरानी अपनी गलती पर मंथन कर ले. कांग्रेस जो गलती आज राजस्थान में कर रही है दरअसल वह यहाँ आंध्र प्रदेश वाली गलती दोहरा रही है. ज़ाहिर है कि जब वह गलती को दोहरा रही है तो नुक्सान भी तो दोहराना पड़ेगा ही.
आंध्र प्रदेश में तेलगू देशम की सत्ता को उखाड़ फेंकना किसी भी पार्टी के बूते की बात नहीं थी. यह करिश्मा वाई.एस.आर. रेड्डी ने कर दिखाया था. वाई.एस.आर. ने कांग्रेस को न सिर्फ आंध्र प्रदेश की सत्ता में वापस कराया था बल्कि लगातार कांग्रेस की पोजीशन भी वहां अच्छी की थी.
वाई.एस.आर. ने 2004 में कांग्रेस को सत्ता में पहुंचाया था तो साथ ही लोकसभा की भी 27 सीटें दिलाई थीं. 2009 में सत्ता में पुनर्वापसी के साथ कांग्रेस को लोकसभा में 33 सीटें जितवाई थीं. सत्ता में वापसी के बाद अचानक हवाई दुर्घटना में वाई.एस.आर. चल बसे. वाई.एस.आर. की अचानक हुई मौत के बाद उनके बेटे जगन रेड्डी के पक्ष में 177 में से 170 विधायक खड़े थे लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने जगन को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया था.
कांग्रेस ने जगन को दरकिनार कर रोसैया को सत्ता सौंप दी. रोसैया नहीं संभाल पाए तो 2010 में युवा नेता किरण कुमार रेड्डी को मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन जगन को आंध्र प्रदेश की हुकूमत सौंपने से इनकार कर दिया.
याद कीजिए जगन रेड्डी तब 37 साल के थे. रेड्डी के पीछे पूरे सूबे के कांग्रेसी थे. सूबे में जो हुकूमत चल रही थी वह उनके पिता की मेहनत की कमाई थी. जगन को कांग्रेस आलाकमान ने कैबिनेट मंत्री बनाने का प्रस्ताव भेजा. जवाब में जगन ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा भेज दिया. सबको लगा कि जगन ने बचपना किया. अपनी किस्मत को खराब कर लिया. लेकिन जगन ने वाई.एस.आर. कांग्रेस के नाम से अपनी अलग पार्टी खड़ी कर दी. उसी पार्टी के टिकट पर 2014 में लोकसभा सीट जीती और उसी पार्टी के बल पर आंध्र प्रदेश से कांग्रेस को पूरी तरह से समेट दिया और आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री बनकर दिखा दिया.
अब आइये राजस्थान और मध्य प्रदेश की तस्वीर देखते हैं. कमोवेश आंध्र वाली पोजीशन है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की वापसी में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के पीछे सबसे ज्यादा सचिन पायलट की मेहनत थी. चुनाव के बाद का दृश्य याद ही होगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ, सचिन पायलट और अशोक गहलोत दस जनपथ के रास्ते पर दौड़ रहे थे.
दस जनपथ की हालत यह थी कि युवा नेता बाहर निकलता था तो बुज़ुर्ग नेता घुस जाता था. कुछ भी तय नहीं हो पा रहा था लेकिन आखीर में आलाकमान ने सत्ता बुजुर्गों को सौंपी थी. राहुल गांधी ने सिंधिया और पायलट को समझा लिया था कि उन्हें केन्द्र में अहम भूमिका संभालनी है. सिंधिया ने मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद माँगा था लेकिन वहां भी उनकी नहीं सुनी गई.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद बीजेपी ने सिंधिया और पायलट पर डोरे डालने शुरू किये. सिंधिया झांसे में आ गए और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई. एक सूबा खोने के बाद भी कांग्रेस ने दूसरे सूबे की मरम्मत के बारे में फैसला करना ज़रूरी नहीं समझा. सचिन अपने सहयोगी विधायकों को लेकर दिल्ली पहुंचे लेकिन बात नहीं बन पाई. गहलोत को सरकार बचाने भर विधायक संयोग से हासिल हो गए तो उन्होंने पायलट के खिलाफ ऐसा माहौल बनाया कि न सिर्फ वह सरकार से बाहर हुए बल्कि उनसे प्रदेश अध्यक्ष पद भी छीन लिया गया.
सचिन पायलट ने बीजेपी में जाने से इनकार कर दिया है. सरकार में वापसी के रास्ते गहलोत ने खुद बंद कर लिए हैं. कांग्रेस आलाकमान को लगता है जैसे कि उन्हें इन बातों से कोई लेना-देना ही न हो. न राहुल गांधी ने सचिन को अपने घर बुलाया न ही प्रियंका गांधी ने गहलोत की ज़बान बंद कराई और न ही सोनिया धी ने कोई बीच का रास्ता तलाश किया.
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सचिन बीजेपी में नहीं जा रहे हैं के क्या मायने हैं यह भी कांग्रेस आलाकमान नहीं पढ़ पा रहा है. कांग्रेस आलाकमान ने आंध्र प्रदेश में दस साल पहले जो सबक पढ़ा था वही सबक उसे राजस्थान भी पढ़ाने वाला है. जगन ने अपनी पार्टी बनाकर कांग्रेस को धूल चटा दी थी जबकि वहां की हुकूमत उनके पिता की कमाई थी. राजस्थान की हुकूमत के लिए तो सचिन ने खुद गली-गली ख़ाक छानी है. ज़ाहिर है कि हुकूमत बनाने का हुनर उन्हें खुद आता है. ऐसे हालात में सचिन अगर जगन की राह चले तो कांग्रेस के हाथ से एक सूबा और निकल जाएगा.
सचिन के जाने से सबसे ज्यादा नुक्सान कांग्रेस नेता राहुल गांधी का होगा. राहुल कांग्रेस में मज़बूत नेता हैं लेकिन सत्ता हासिल करने का हुनर जिन लोगों में है उन्हें वह खोते जा रहे हैं. पहले जगन को खोया, फिर सिंधिया का साथ छूटा और अब सचिन का हाथ छूट रहा है. राहुल के लिए बेहतर होगा कि एक और जगन बनने से रोक लें. कांग्रेस आलाकमान को समझना होगा कि सत्ता झुककर चलने से मिलती है. अकड़ से जो पास होता है वह भी दूर चला जाता है.