जुबिली न्यूज डेस्क
राहुल गांधी की “पलायन रोको, नौकरी दो” यात्रा बिहार के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक घटना बनकर उभरी। यह यात्रा 7 अप्रैल 2025 को बेगूसराय से शुरू हुई, जो बिहार के उन क्षेत्रों में से एक है जहाँ बेरोज़गारी और पलायन की समस्या बेहद गंभीर है। इस यात्रा का उद्देश्य न केवल बिहार के युवाओं की व्यथा को राष्ट्रीय मंच पर लाना था, बल्कि केंद्र और राज्य की “डबल इंजन” सरकार पर रोज़गार सृजन में उनकी विफलता के लिए दबाव बनाना भी था।

राहुल गांधी की “पलायन रोको यात्रा
बिहार में पलायन और बेरोज़गारी लंबे समय से ज्वलंत मुद्दे रहे हैं। यहाँ की युवा आबादी देश के अन्य हिस्सों—जैसे दिल्ली, मुंबई, गुजरात, और पंजाब—में रोज़गार की तलाश में बड़े पैमाने पर पलायन करती है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, बिहार के लगभग 2.5 करोड़ लोग राज्य से बाहर काम करते हैं। इसके बावजूद, बिहार में औद्योगिक विकास और स्थानीय रोज़गार के अवसरों की कमी बनी हुई है। नीतीश कुमार की एनडीए सरकार और केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर विपक्ष लगातार आरोप लगाता रहा है कि वे बिहार के विकास के लिए ठोस कदम नहीं उठा रहे। इसी संदर्भ में राहुल गांधी ने इस यात्रा की शुरुआत की।
यात्रा का स्वरूप और आयोजन
“पलायन रोको, नौकरी दो” यात्रा बेगूसराय के गांधी चौक से शुरू हुई। राहुल गांधी सुबह करीब 10 बजे यहाँ पहुँचे और स्थानीय कांग्रेस नेताओं, युवा संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ एक सभा को संबोधित किया। इसके बाद, उन्होंने सफेद टी-शर्ट पहने हजारों युवाओं के साथ पैदल मार्च शुरू किया। सफेद रंग को एकजुटता और शांति का प्रतीक बनाया गया था। मार्च में नारे गूँजे जैसे—
“पलायन रोको, नौकरी दो!”
“बिहार को हक़ दो, रोज़गार दो!”
“डबल इंजन की सरकार, बेरोज़गारी की मार!”
यह मार्च बेगूसराय शहर के प्रमुख इलाकों से होकर गुजरा और करीब 8 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद एक जनसभा में तब्दील हुआ। राहुल गांधी ने पूरे मार्च के दौरान युवाओं के साथ बातचीत की, उनकी समस्याएँ सुनीं और उनके सुझाव भी नोट किए।
राहुल गांधी का संदेश
जनसभा में राहुल गांधी ने कहा,”बिहार के युवा देश की शक्ति हैं। यहाँ प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन अवसरों की कमी है। आप अपने परिवार से दूर मजदूरी करने को मजबूर हैं, क्योंकि यहाँ की सरकार ने आपके लिए कुछ नहीं किया। हमारा लक्ष्य है कि बिहार में ही रोज़गार पैदा हो, ताकि आपको अपने घर से दूर न जाना पड़े।”
उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “डबल इंजन की सरकार ने बिहार को सिर्फ़ वादे दिए, लेकिन कारखाने नहीं लगे, नौकरियाँ नहीं आईं। बिहार के युवा सवाल पूछ रहे हैं—हमारा भविष्य कहाँ है? जवाब में उन्हें सिर्फ़ खामोशी मिलती है।”
राहुल ने यह भी वादा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई, तो बिहार में औद्योगिक विकास और स्थानीय रोज़गार सृजन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। उन्होंने “रोज़गार गारंटी योजना” का ज़िक्र किया, जिसके तहत हर युवा को प्रशिक्षण और नौकरी का अवसर देने की बात कही।
जनता की भागीदारी
इस यात्रा में भारी संख्या में लोग शामिल हुए। बेगूसराय के अलावा आसपास के जिलों—जैसे समस्तीपुर, खगड़िया, और मुंगेर—से भी लोग आए। युवाओं के साथ-साथ महिलाएँ, मज़दूर, और किसान भी इस मार्च का हिस्सा बने। कई युवाओं ने अपने अनुभव साझा किए। एक युवा, रवि कुमार, ने कहा,
“मैं पिछले 5 साल से दिल्ली में मज़दूरी कर रहा हूँ। मेरे गाँव में कोई काम नहीं है। राहुल जी यहाँ आए और हमारी बात सुनी, यह हमारे लिए उम्मीद की किरण है।”
राजनीतिक प्रभाव
यह यात्रा बिहार की राजनीति में एक बड़ा संदेश लेकर आई। नीतीश कुमार की सरकार पहले से ही तेजस्वी यादव और राजद के लगातार हमलों से दबाव में है। राहुल गांधी की यह सक्रियता कांग्रेस को बिहार में मज़बूत करने की कोशिश के तौर पर देखी जा रही है, खासकर 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले। विश्लेषकों का मानना है कि यह यात्रा विपक्ष के लिए एकजुटता का आधार तैयार कर सकती है।
सरकार की प्रतिक्रिया
यात्रा के बाद बिहार सरकार के प्रवक्ता ने इसे “राजनीतिक नाटक” करार दिया और कहा कि नीतीश सरकार ने बिहार में कई औद्योगिक परियोजनाएँ शुरू की हैं। हालाँकि, विपक्ष ने इन दावों को खोखला बताया और आँकड़े पेश किए कि बिहार में बेरोज़गारी दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज़्यादा है।
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“पलायन रोको, नौकरी दो” यात्रा सिर्फ़ एक मार्च नहीं थी, बल्कि बिहार के युवाओं के गुस्से और उम्मीद का प्रतीक बनी। राहुल गांधी ने इस मौके का इस्तेमाल न केवल सरकार को घेरने के लिए किया, बल्कि बिहार की जनता के बीच अपनी मौजूदगी को मज़बूत करने के लिए भी किया। यह यात्रा आने वाले दिनों में बिहार की सियासत और सामाजिक आंदोलनों को नई दिशा दे सकती है।