जुबिली न्यूज डेस्क
आज़ादी की 77वीं सालगिरह के मौके पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘भारत माता’ और देशवासियों के नाम एक लंबा संदेश शेयर किया है. उन्होंने चार पन्ने का नोट देश के नाम लिखा है और उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया है.
राहुल गांधी लिखते हैं, “पिछले साल मैंने 145 दिन उस ज़मीन पर घूमते हुए बिताए जिसे मैं अपना घर कहता हूँ. मैंने समुद्र के किनारे से शुरुआत की और गर्मी, धूल और बारिश के बीच जंगलों, कस्बों और पहाड़ियों से होते हुए तब तक चलता रहा जब तक मैं अपने प्यारे कश्मीर की नरम बर्फ़ तक नहीं पहुँच गया.”
मैं समझना चाहता था कि मुझे किन चीज़ों से इतना प्यार है,वो आखिर क्या चीज़ है जिसके लिए मैं सबकुछ देने को तैयार हूं, यहां तक की मेरी ज़िंदगी भी. आखिर वो चीज़ क्या है जिसके लिए मैं सालों साल दर्द झेलता रहा और गालियां भी सुनता रहा. मैं जानना चाहता था कि इस देश में ऐसा क्या है जिसे मैं इतना चाहता हूं, क्या वो यहां की ज़मीन है, पहाड़ है, समंदर है या फिर यहां के लोग, यहां के विचार?
सालों से मैं आठ से दस किलो मीटर रोज़ दौड़ता था तो मुझे लगा 25 किलोमीटर तो मैं चल लूंगा, ये आसान होगा. कुछ ही दिनों में मेरे घुटने की पुरानी चोट का दर्द उभर गया, जो दर्द गायब हो गया था वापस आ गया. कुछ दिनों तक चलने के बाद, मेरे फिजियो हमारे साथ यात्रा में शामिल हो गए, मुझे उचित सलाह दी लेकिन दर्द बना रहा. और फिर मैंने कुछ नोटिस करना शुरू किया. हर बार जब मैं रुकने के बारे में सोचता, हर बार जब मैं हार मानने के बारे में सोचता, कोई आता और मुझे आगे बढ़ने की ऊर्जा दे जाता.
जब भी मैं चलता था तो भारी तदाद में लोग आते थे और नारे लगाते, फ्लैश मारते कैमरे होते. मैं हर दिन लोगों को सुनता और अपना दर्द नज़रअंदाज़ करता. लेकिन एक दिन यात्रा के दौरान बहुत शांति थी, ऐसी शांति जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी. मैं कुछ नहीं सुन पा रहा था सिवाय उस व्यक्ति के जो मेरा हाथ पकड़ कर मुझसे बात कर रहा था. मेरे भीतर की आवाज़ जो मुझसे बचपन से बात करती थी वो अचानक कहीं चली गई, ऐसा लगा कुछ खत्म हो गया है.
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मुझसे एक किसान मिला जो अपने सड़ चुके कपास के दो पौधे लेकर आया था, उसके हाथों में सालों का दर्द दिख रहा था., मैं वो दर्द देख पा रहा था जो उसके भीतर उसके बच्चों के लिए था. उसने बताया कि उसने अपने पिता को आंखों के सामने मरते देखा. उसने मुझे बताया कि उसने कितना बेइज़्ज़त महसूस किया जब वो अपनी पत्नी को पैसे नहीं दे पाया.
राहुल गांधी कहते हैं कि भारत को सुनने के लिए मुझे अपनी आवाज़, अपनी इच्छा और अपनी महत्वकांक्षा को शांत करना था. भारत अपनी बात खुद करेगा लेकिन उसे सुनने के लिए आपको खुद को पूरी तरह शांत करना होगा.