न्यूज डेस्क
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी निजी विदेश दौरे पर हैं। चर्चा है कि वे विपश्यना के लिए बैंकॉक या कंबोडिया गए हैं। उनके विदेश दौरे पर जाने को लेकर विरोधी लगातार उनपर सवाल उठा रहे हैं तो वहीं कांग्रेसी नेता उनका बचाव करने में लगे हैं।
हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी के विदेश दौरे को लेकर सोशल मीडिया पर यूजर्स अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दें रहें हैं। कुछ बिहार की बाढ़ का जिक्र करते हुए उन्हें पीड़ितों से मिलने का सुझाव दे रहें हैं तो कोई चुनाव से पहले मैदान छोड़कर भागने का आरोप लगा रहे हैं।
दूसरी ओर मुश्किल वक्त में राहुल गांधी के अचानक ध्यान के लिए चले जाने के कारण कांग्रेस के युवा नेताओं में भ्रम की स्थिति है। पार्टी में गुटबाजी चरम पर है। दल दो भागों में बंटी दिखाई दे रही है।
राहुल गांधी धड़े के अशोक तंवर, संजय निरुपम और प्रद्योत देबबर्मन कांग्रेस के पुराने नेताओं पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि मौजूदा कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के खेमे के नेता राहुल गांधी के सहयोगी नेताओं के साथ ज्यादती कर रहे हैं।
राहुल के करीबी नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी न सिर्फ विधानसभा चुनावों के बीच कंबोडिया गए हैं, बल्कि ऐसे समय उन्होंने विपश्यना के लिए जाने का फैसला किया है जब उनकी टीम मुश्किल में है। पार्टी के साथ ऐसे हालात में भी खड़े कई युवा नेता नाराज हैं। उन्हें अपना राजनीतिक भविष्य अंधेरे में नजर आ रहा है।
सवाल यह उठता है कि राहुल गांधी कांग्रेस के युवा और बुजुर्ग खेमे में चल रही खींचतान के बीच कंबोडिया क्यों गए? पार्टी के अंदरूनी झगड़ों के सार्वजनिक होने के बाद भी वह खामोश क्यों हैं? राहुल गांधी के कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि वह जल्द लौटकर विधानसभा चुनाव के प्रचार में शामिल होंगे।
हालांकि, इस बार वह पार्टी की ओर से मुख्य प्रचारक नहीं होंगे। वह लोकसभा चुनाव की तरह एक के बाद एक दौरे और जनसभाएं नहीं करेगे। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के युवा नेताओं को राहुल गांधी से अब भी उम्मीदें हैं, लेकिन इस बार उन्हें थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।
उधर, पार्टी नेताओं का कहना है कि जब इंदिरा गांधी पार्टी का नेतृत्व संभालने वाली थीं, तब भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने काफी मुश्किलें खड़ी की थीं। कांग्रेस में उनका भी विरोध हुआ था। इस बार राहुल की मां का खेमा ही चुनौतियां पेश कर रहा है। इसमें कुछ भी नया नहीं है।
पिछली बार भी जब राहुल गांधी ने पार्टी का नेतृत्व संभाला था, तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बेचैनी बढ़ गई थी। पार्टी के बुजुर्ग नेताओं ने समय-समय पर राहुल गांधी के साथ और उनके विचारों पर काम करने में असहजता को लेकर सार्वजनिक बयान भी दिए थे। पार्टी के युवा और वरिष्ठ खेमे में तब भी टकराव की स्थिति पैदा हुई थी, जब राहुल ने युवा कांग्रेसियों को ज्यादा टिकट देने पर जोर दिया।
लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजे राहुल गांधी को तगड़ा झटका देने वाले रहे। इसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। राहुल और उनके करीबी नेताओं का आरोप है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता कभी भी उनके साथ नहीं थे। यहां तक कि प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी ने इस मसले पर नाराजगी जताई थी।
फिर ऐसा क्या हुआ कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को आगे आने का मौका दिया? आखिर क्यों पार्टी के युवा नेताओं को मौका नहीं दिया जा रहा है। शायद सोनिया गांधी चाहती हैं कि इस बार राहुल गांधी को वापस लाने की मांग पार्टी के भीतर से उठनी चाहिए।
राजनीतिक जानकारों की माने तो राहुल गांधी अगर विधानसभा चुनावों के बाद फिर कांग्रेस अध्यक्ष बनना स्वीकार करते हैं तो इस बार पार्टी के भीतर पुराने नेताओं का हस्तक्षेप पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।
बता दें कि इस समय युवा नेता पुराने नेताओं पर हमला करते हुए कांग्रेस छोड़ रहे हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी इसका इस्तेमाल उन वरिष्ठ नेताओं पर हमला करने के लिए कर सकते हैं, जिन्होंने उन्हें कभी खुलकर काम नहीं करने दिया। इस सब में सोनिया गांधी अहम भूमिका निभा सकती हैं।