विवेक कुमार श्रीवास्तव
बुधवार को अमेठी में नामांकन करने से पहले हुए रोड शो के ज़रिये राहुल गांधी ने अपने विरोधियों को करारा जवाब देने की कोशिश की, जो ये कह रहे थे कि अमेठी में हार के डर से वो वायनाड भाग रहे हैं।
बुधवार को हुए रोड शो के ज़रिये कांग्रेस ने भी बीजेपी को यहां अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश की। मगर सवाल ये है कि आखिर इस बार क्यों राहुल को अमेठी में अपनी ताकत का एहसास करना पड़ा। दरअसल, कहीं इसके पीछे वही वजह तो नहीं जिसका ज़िक्र बार-बार भाजपा कर रही है यानी अमेठी में हार का डर।
कांग्रेस पार्टी ने बुधवार के रोड शो को शानदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दूसरी तरफ बहन प्रियंका वाड्रा भी रोड शो में जान डालने के लिए अपने पूरे परिवार पति रॉबर्ट वाड्रा, दोनों बच्चे रेहान और मिराया के साथ मौजूद थीं।
ये पहला ऐसा मौका था जब प्रियंका वाड्रा का पूरा परिवार एक साथ अमेठी में मौजूद था। इसके पहले 2004, 2009 या 2014 के चुनावोंमें तो ऐसा कुछ नहीं था और पार्टी ने अपनी ताकत का एहसास कराने की ज़रूरत भी नहीं समझी। बल्कि कांग्रेस तो यहां से बेफिक्र रहती थी। 2014 में तो आलम ये था कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भी राहुल गांधी का अमेठी में एक भी दौरा तक नहीं हुआ था।
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सच कहें तो राहुल गांधी के इस डर के पीछे वजह भी है। जिसकी शुरुआत 2012 के विधानसभा चुनावों में ही हो गयी थी। जब कांग्रेस मात्र दो ही सीट जीत सकी थी। वहीं एक जीते हुए विधायक ने तो पार्टी ही छोड़ दी थी। 2017 के चुनावों में तो कांग्रेस यहां एक भी सीट नहीं जीत सकी।
हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने ही यहां से जीत दर्ज की थी। मगर जो चीज कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को डरा रही है वो है जीत का अंतर। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी से जबरदस्त चुनौती मिली। जिसकी वजह से 2009 के चुनावों तक तीन लाख के अंतर से जीतने वाले राहुल गांधी को 2014 में मात्र एक लाख मतों के अंतर से ही चुनाव जीत सके।
2009 के लोकसभा चुनाव में मात्र 2 फीसदी वोट पाने वाली बीजेपी 2014 के चुनावों में सीधे नौ गुना यानि 18 फीसदी वोट तक पहुंच गयी थी। जीतने के बावजूद जीत का अंतर ही कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के डर की बड़ी वजह है। और शायद राहुल के वायनाड से चुनाव लड़ने की वजह भी।