शबाहत हुसैन विजेता
आज मुशायरों की शान चली गई। मंच के जरिये चलने वाले तहज़ीब के क्लासेज़ का हेडमास्टर चला गया। फिल्मों के जरिये पूरी दुनिया तक शानदार नगमे पहुंचने का जरिया खत्म हो गया।
राहत इंदौरी का न होना उनके न होने से ही पता चल रहा है। वह इंदौर के थे मगर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनकी तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि वो पूरे देश के थे।
राहत इंदौरी के साथ दुनिया के तमाम देशों का सफर करने वाली मशहूर शायरा डॉ. नसीम निकहत से बात हुई तो वो बोलीं कि अदब की दुनिया का इतना बड़ा नुकसान हुआ है कि उसकी भरपाई मुमकिन नहीं है।
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नसीम निकहत का कहना है कि उनका डिक्शन बिल्कुल मुख्तलिफ था। मुशायरों में अचानक से वो इतना बड़ा शेर सुना देते थे कि सुनने वाले चक्कर मे पड़ जाते थे।
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वो बताती हैं दरअसल वो पहले पेंटर थे। शायरी शुरू की तो शायरी के रंगों से खेलने लगे। कई बार। वो नाराज़ भी हो जाते थे, लेकिन मनाने के लिए भी वही आते थे। इतने बड़े शायर होकर भी वो अटैची तक उठा लेते थे। हर मामले में कोआपरेटिव थे।
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राहत साहब तमीज़ की ट्रेनिंग भी इस तरह देते थे कि देखने वाला कभी भूलता नहीं था। दरअसल वो उर्दू के प्रोफेसर थे। यूनिवर्सिटी छोड़कर मंच पर आ गए तो भी पढ़ाना नहीं छोड़ पाए।
उनके साथ-साथ दुनिया का सफर करने वाले लखनऊ के मशहूर शायर हसन काज़मी तो जैसे यकीन करने को ही तैयार नहीं हैं कि राहत इंदौरी नहीं रहे। वो कहते हैं कि बड़े धोखेबाज निकले राहत भाई। मैं तो उन्हें सच्चा दोस्त समझता था। 40-45 साल में उन्होंने ऐसा साबित भी किया था मगर ऐसा छोड़कर गए जैसे कोई नहीं गया।
राहत इंदौरी ने लिखा था:- जनाज़े पे मेरे लिख देना यारों, मोहब्बत करने वाला जा रहा है।
उनका एक और शेर
बन के एक हादसा बाज़ार में आ जायेगा
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जायेगा।
राहत इंदौरी को लोग मुशायरों से याद रखेंगे।
उनकी फिल्मों मुन्ना भाई एमबीबीएस, मिशन कश्मीर, घातक, मैं तेरा आशिक, खुद्दार, जनम, करीब और मर्डर के लिए भी याद करेंगे। लोग याद करेंगे कि अमरीका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश और गल्फ कंट्रीज़ के मुशायरों की वो ज़ीनत थे।
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़े है
और
बुलाती है मगर जाने का नईं
के ज़रिए वो लोगों की ज़बान पर थे।
मगर कल जब से खबर आई थी कि वो कोरोना पॉजिटिव हैं पूरे मुल्क में दुआएं हो रही थीं, मगर इसी बीच हार्ट अटैक ने उनकी जंग को बीच में ही रोक दिया। बीमार तो पिछले तीन-चार महीने से थे मगर कोरोना ने अस्पताल पहुंचा दिया था। वो इंदौर ही नहीं पूरे देश की शान थे।
उनके कुछ शेरों को लेकर उन्हें मज़हब खास से जोड़ने वाले जब यह शेर पढ़ेंगे तो खूब रोयेंगे।
मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना।
वह कितने बड़े शायर थे वो यह शेर साबित करेगा
दो ग़ज़ सही ये मेरी मिल्कियत तो है
ए मौत तूने मुझे ज़मींदार कर दिया।हमें जब याद आएगी तो हम यही कहेंगे कि
तुम आसमां की बुलंदी से जल्द लौट आना
हमें ज़मीं के मसायल पे बात करनी है।