Saturday - 26 October 2024 - 6:26 PM

फैज़ और दुष्यंत के वारिस थे राहत

अगर ख़िलाफ है होने दो..

सरकारी अवार्ड के पैमाने में जीरो थे, इसलिए ही राहत हीरो थे

नवेद शिकोह

आमतौर पर किसी हुनरमंद, फनकार या कलमकार के हुनर के वज़्न का पैमाना उसे मिलने वाले सरकारी अवार्ड्स होते हैं। इस पैमाने के हिसाब से तो शायर राहत इंदौरी ज़ीरो थे। दरअसल यही ज़ीरों इन्हें हीरो बना गया। वो हर दौर की सरकारों की आंखों में आंखें डाल कर उन पर शब्दबाण चलाते थे।

दुष्यंत कुमार और फैज़ अहमद फैज़ की तरह राहत हर हुकुमत की आंखों की किरकिरी थे, तो क्या ख़ाक कोई सरकार उन्हें सरकारी अवार्ड देती। अवार्ड देने का मतलब उस सच को स्वीकारना भी है जो कड़वा सच कलमकार का कलम बोल रहा होता है।

वो किसी भी पार्टी की सरकार पर खूब तंज़ करते थे। अपने देश भारत से मोहब्बत के सुबूत देते हुए उनकी शायरी अक्सर मुस्लिम समाज की नुमाइंदगी करती रही। मुशायरा पढ़ने का उनका नाटकीय अंदाज हाजिराने महफिल को दीवाना बना देता था।

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किसी शायर को आगे बढ़ने के लिए सरकार और मीडिया की मदद की जरुरत पड़ती है, अवार्ड हासिल करने से लेकर सरकारी कार्यक्रम पाने के लिए अक्सर कवि-शायर सरकारों के कसीदे पढ़ने लगते हैं।

क्योंकि मीडिया किसी भी प्रतिभा को निखारने में मददगार हो सकती है इसलिए बड़े-बड़े शायर और कवि मीडिया से मधुर रिश्ते बनाकर चलते हैं। लेकिन राहत सरकारों के खिलाफ खुल कर बोलते थे और मीडिया को भी खूब आईना दिखाते थे। उनके ज्यादा अशार सरकार की आलोचना करते थे, आज की पत्रकारिता और अखबारों पर तंज़ भी ख़ूब कसते हैं।

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जोश मलिहाबादी, दुष्यंत कुमार और फैज अहमद फैज़ जैसे शायरों की बग़ावती धारा की विरासत संभालने वाले राहत मुशायरों के मंचों की प्रस्तुति में बेजोड़ थे। वो फक्कड़ और मुंहफट भी थे। किसी से नहीं डरते थे, शायद गुमनामी, गरीबी जेल और मौत से भी नहीं।  इसलिए ही शायद इस बाग़ी ने एकाएकी  ज़िन्दगी से भी बग़ावत कर ली।

शायद बरसों बाद किसी शायर के जाने पर इसक़द्र अफसोस ज़ाहिर किया जा रहा है। इस बात की तमाम वजहें हैं। कलम तो कोई भी पकड़ सकता है, शब्दों की बाज़ीगरी करने का हुनर करोड़ों दिलों से नहीं जोड़ सकता है।

कलम को दरबारों का खूंटा बनाकर उसमें बंधने का दौर अब और ज्यादा बढ़ गया है। दरबारी कलमकारों की जेबें भर जाती हैं  और उनके गले में सरकारी पुरस्कारों का पट्टा भी डाल दिया जाता है। लेकिन सच्चे कलमकार का कलम क्रांति का परचम बनकर आसमान पर लहलहाता है।

गरीबों-मज़लूमी की आवाज बनने और सरकारों के सामाने बेबाकी से सवाल उठाने वाला कलमकार ही कलम का हक़ अदा करता है।  ऐसा कलमकार ही हुकुमतों के लिए खलनायक और जनता का नायक बनता है।

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कलम यदि विपक्षी तेवरों वाले आलोचक के किरदार में नजर आये तो समझ लेना कि ऐसे कलम का मालिक कलमकार करोड़ों दिलों पर राज करता होगा। ऐसे ही एक बहादुर कलमकार शायर राहत इंदौरी ने मौत को गले लगा कर सबको आहत ज़रूर कर दिया, पर उनकी क्रांतिकारी शायरी की मशाल जलती रहेगी।

जोश, दुष्यंत और फैज़ जैसै शायर दर्जनों बरस पहले मर कर भी कौन सा मर गये जो राहत साहब मर जायेंगे !

 

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