विवेक कुमार श्रीवास्तव
राफेल, कांग्रेस की सियासी मजबूरी है ये बात सुनने में थोड़ी अजीब भले ही लगे पर ये सच है। लोकसभा चुनाव के दो चरण खत्म हो चुके हैं। तीसरे चरण के लिए सभी दलों के नेता ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। इसी क्रम में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी शनिवार को बिहार के सुपौल जिले में रैली कर रहे थे।
जहां उन्होंने एक बार फिर राफेल को लेकर पीएम मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि राफेल का सच सामने आएगा और पीएम मोदी और अनिल अंबानी को सजा होगी। दरअसल कांग्रेस के पास चल रहे लोकसभा चुनावों के लिए राफेल के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं है। यही वजह है कि राहुल गांधी अपनी हर रैली में इसी मुद्दे को भुनाने में लगे हैं।
राफेल, कांग्रेस और राहुल गांधी की सियासी मजबूरी इसलिए है क्योंकि पांच साल के बीजेपी सरकार के कार्यकाल में वह एक भी ऐसा मुद्दा नहीं ढूंढ सके हैं जिसके भरोसे वो चुनाव में पीएम मोदी को घेर सके।
राफेल को लेकर राहुल गांधी अपने भाषणों में कई बार विमान की कीमत बदल चुके हैं। आलम ये है कि इनके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी अपनी तरीके से तोड़-मरोड़ कर बयान देने से नहीं चूकते। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गलत बयानबाजी के चलते कोर्ट ने राहुल गांधी से जवाब भी मांगा है।
अब इसे क्या कहा जाय सियासी अपरिपक्वता, नासमझी या फिर जनता के बीच जानबूझकर झूठ परोसने की कोशिश। जो भी हो, राहुल गांधी इस देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के साथ- साथ प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार भी हैं और इस तरह की बातें करना उन्हें हरगिज़ शोभा नहीं देता।
आखिर उनके बयान पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और नोटिस के चलते किरकिरी किसकी हुई? खुद उनकी और उनकी पार्टी की। अब उनकी पार्टी के प्रवक्ता और नेता टीवी चैनलों की डिबेट और मीडिया में तमाम उल्टे-सीधे दलीलों से उनका बचाव करने में जुटे हैं।
राहुल गांधी को ये समझना चाहिये कि चुनावों के वक्त में इस तरह का गैरजिम्मेदाराना बयान खुद उनके और उनकी पार्टी के लिए बेहद नुकसानदायक भी हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जब राफेल सौदे को क्लीन चिट दी थी तब भी कांग्रेस ने चौकीदार चोर है का नारा बुलंद रखा।
उसके बाद कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा ना करते हुए संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग की। राफेल पर फैलाए जा रहे झूठ के बीच फ्रांस की सरकार भी इस बात को स्पष्ट कर चुकी है कि पार्टनर के चुनाव में उसकी कोई भूमिका नहीं थी।
फ्रांस की सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि फ्रेंच कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट के लिए भारतीय कंपनी का चुनाव करने की पूरी आजादी थी और देसॉ ने बेहतर विकल्प को चुना। दूसरी तरफ वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने डील की तारीफ की और कहा कि राफेल के आने से सेना को मजबूती मिलेगी और इस सौदे को देश की सुरक्षा के लिए गेम चेंजर और एयरफोर्स के लिए बूस्टर डोज भी बताया।
वहीं रिलायंस डिफेंस को फायदा पहुंचाने के कांग्रेस के आरोप पर वायुसेना प्रमुख ने कहा कि दसॉ एविएशन को ऑफसेट साझेदार का चयन करना था और इसमें सरकार या भारतीय वायु सेना की कोई भूमिका नहीं थी। इसके बावजूद जिस तरह राहुल गांधी अपनी हर चुनावी सभा में राफेल-राफेल का रट लगाए हुए हैं, उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस जानबूझकर राफेल सौदे को राजनीतिक मुद्दा बनाने पर तुली है।
दरअसल देश की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी से महज 44 सांसदों पर सिमट चुकी कांग्रेस और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष को राफेल मुद्दा संजीवनी की तरह दिख रहा है। राहुल गांधी आखिर करें भी तो क्या, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते इस लोकसभा चुनाव में पार्टी को 44 के आंकड़े से ऊपर उठाने की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर ही तो है मगर दिक्कत ये है कि पांच साल के मोदी सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा भी नहीं ढूंढ सके हैं।
बस ले देकर एक राफेल ही तो है उनके पास, जिस पर सवार होकर 2019 लोकसभा चुनाव का समर जीतने की कोशिश में हैं वो। इसीलिए कांग्रेस के लिए राफेल कोई मुद्दा नहीं बल्कि एक सियासी मजबूरी है।