जुबिली न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर भारत के कोविड डेथ डेटा पर सवाल उठाए गए हैं। इसी कड़ी में जानी-मानी हेल्थ जर्नल लैसेंट ने भारत में स्वास्थ्य की स्थिति सुधारने के लिए सही एनालिसिस और ऐक्शन जरूरी बताया है। इसके लिए लैसेंट ने सरकार से हेल्थ संबंधी डेटा शेयर करने में पारदर्शिता की मांग की है।
बता दे कि पत्रिका ने अपने संपादकीय में भारत के हेल्थ सिस्टम पर फोकस किया है। ये लेख लोकसभा चुनाव से कुछ दिन पहले छापा गया है। 2018 में भी लैसेंट ने आम चुनाव से ठीक पहले इस तरह का लेख छापा था, जिसमें भारत के हेल्थ सिस्टम पर मोदी सरकार के कामों की सराहना की थी।
इलेक्ट्रॉनिक सर्वे का वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ
‘भारत में चुनाव: डेटा और पारदर्शिता के मायने’ नामक शीर्षक वाले लेख में लैसेंट ने कहा है कि स्वास्थ्य नीति, योजना और मैनेजमेंट के लिए सटीक और अपडेट डेटा जरुरी हैं, लेकिन भारत में ऐसे डेटा के संग्रह और प्रकाशन में गंभीर रुकावटें आई हैं। कोविड-19 महामारी के कारण 2021 की जनगणना में देरी हुई। ऐसा 150 सालों में पहली बार हुआ जब भारत या उसके नागरिकों पर कोई आधिकारिक व्यापक डेटा के बिना पूरा एक दशक बीत चुका है। लैंसेट ने अपने लेख में बताया है कि 2024 में एक इलेक्ट्रॉनिक सर्वे कराने वाली अगली जनगणना का वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
गरीबी सर्वे पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं हैं?
आगे कहा गया है, “जनगणना सभी राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय हेल्थ सर्वे का भी आधार है। उदाहरण के लिए, नेशनल सैंपल सर्व संगठन जेब से किए जाने वाले खर्च का समय-समय पर मापन ओवरड्यू है और इसे करने की कोई योजना नहीं है। 2021 के लिए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम सर्वे रिपोर्ट में देरी क्यों हुई है? या गरीबी सर्वे पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं हैं? इसका कोई कारण नहीं बताया गया है।
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कोविड डेथ टोल पर भी उठाए सवाल
लैंसेट ने कोरोना महामारी से हुई मौतों के आंकड़ों पर भी सवाल उठाए। भारत में कोरोना से करीब 4.8 लाख लोगों की मौत हुई, लेकिन लैसेंट का कहना है कि WHO और अन्य संस्थानों का अनुमान इससे कई गुना ज्यादा है। हालांकि ज्यादातर मौतें अप्रत्यक्ष रूप से कोविड-19 के कारण हुई हैं। लैसेंट ने आगे कहा कि 2021 के नागरिक पंजीकरण रिपोर्ट से सरकार के अनुमान की पुष्टि या खंडन करने में मदद मिल सकती है। इस बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई टिप्पणी नहीं की।