रूबी सरकार
एक तरफ केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानून को लेकर किसान दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शन कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने एमएसपी के दायरे से 5 हेक्टेयर से अधिक के बटाईदार किसानों को बाहर कर दिया है।
सरकार के इस फैसले को लेकर यह सवाल उठना अस्वाभाविक नहीं है कि आखिर क्यों इस मौके पर ही सरकार ने कदम उठाया है? शिवराज हमेशा किसानों के हित चिंतक रहे हैं और उनके कल्याण की अनेक योजनाएं बनाई हैं जो कि पूरे देश में सराही गई है। उनकी सोच के चलते ऐसा फैसला कैसे हो गया। यह तो सरकार ही बता सकती है कि उसने अन्नतादाओं को परेशान करने के लिए यह पैंतरा क्यों आजमाया है?
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री कमल पटेल गेहूं के साथ चना, सरसों एवं मसूर खरीदी के निर्णय पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर बटाईदार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से बाहर करने के लिए केवल 5 हेक्टेयर तक के अनुबंध को ही पंजीकृत करने का नियम बना दिया है।
राज्य में समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने के लिए पंजीयन प्रक्रिया में नये-नये प्रावधान जोड़कर किसानों को परेशान किया जा रहा है। पंजीयन के लिए प्रदेश के जिलों में अलग-अलग तरह के प्रावधान किये जा रहे है। इस जटिल प्रक्रिया के चलते अब तक केवल 10 फीसदी किसान ही अपना पंजीयन करा पाये हैं। जबकि 25 जनवरी से शुरू हुई पंजीयन प्रक्रिया की अंतिम तिथि 20 फरवरी रखी गई है।
होशंगाबाद जिले के किसान लीलाधर बताते हैं, कि इस समय गेहूं और चना पंजीयन के लिए बने 130 केंद्रों पर सहकारी समिति कर्मचारी संघ का अनिश्चितकालीन कलमबंद हड़ताल चल रहा है, जिससे यहां के किसानों को पंजीयन की सुविधा नहीं मिल पा रही हैं।
हालांकि किसानों के पास ऑनलाइन पंजीयन कराने का विकल्प खुला है, लेकिन कई गांवों में सीएसी और एमपी ऑनलाइन की सुविधा नहीं होने से किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा, कि पिछले साल 76 हजार किसानों ने पंजीयन कराया था।
इस बार अभी तक 19 हजार किसानों का पंजीयन हुआ है और मात्र 15 दिन का समय बचा है। इस संबंध में सहायक जिला आपूर्ति नियंत्रक अनिल तंतुवाय का कथन है, कि किसान अपना पंजीयन मोबाइल से भी कर सकते हैं। जबकि उन्हें मालूम है, कि नेटवर्क ही नहीं मिलेगा, तो किसान पंजीयन कैसे करा पायेंगे।
लीलाधर ने कहा, इस बार पंजीयन के लिए एक नया प्रावधान जोड़ दिया गया है, कि वनाधिकार पट्टाधारी एवं सिकमी किसानों को पंजीयन के लिए वनपट्टा तथा सिकमी अनुबंध की प्रति उपलब्ध करानी होगी और यदि अनुबंध में 5 हेक्टेअर से अधिक कृषि भूमि की है, तो फिर पंजीयन नहीं होगा।
इस तरह सरकार बटाईदार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से बाहर रखना चाहती है। ऐसे में एमएसपी का लाभ भू-स्वामी के खाते में चला जायेगा और बटाई पर खेती करने वाला किसान हाथ मलता रह जायेगा ।
छिंदवाड़ा के किसान गुलाब सिंह ने बताया, कि 5 फरवरी से छिंदवाड़ा सहकारी समिति के कर्मचारी अनिश्चित कालीन हड़ताल पर हैं। इससे छिंदवाड़ा में गेहूं खरीदी का पंजीयन पूरी तरह ठप्प है। यहां तक कि किसानों को खसरा और आधार लिंक करवाने में भी दिक्कते आ रही है। गुलाब का कहना है कि समय कम बचा है । हजारों किसान हैरान-परेशान तहसील में घूम रहे हैं।
मध्यप्रदेश किसान सभा के उपाध्यक्ष अशोक तिवारी ने कहा, कि इस बार गेहूं खरीदी पंजीयन के लिए एक नया प्रावधान किया गया है, जिसके तहत किसानों को खसरे को आधार कार्ड से लिंक कराना होगा। इसके लिए पहले से कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था।
अब किसान हैरान-परेशान खसरे को आधार कार्ड से लिंक कराने के लिए तहसील और पटवारियों के पास चक्कर लगा रहे हैं। इसी के चलते अब तक मात्र 600 किसानों का ही पंजीयन हो पाया है। क्योंकि पंजीयन के कागजात जुटाने में उनका काफी समय निकला जा रहा है। इसके अलावा तहसीलों में नेट में स्पीड भी कम रहता है, जिससे तेजी से काम नहीं हो पा रहा है।
उन्होंने कहा, कुल मिलकर किसानों को पंजीयन कराने के लिए कई प्रक्रियओं से गुजरना पड़ रहा है, जिससे वे पंजीयन ही नहीं करा पा रहे हैं। बाजरे के लिए पंजीयन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, कि इसमें मात्र 10 फीसदी किसान ही अपना पंजीयन करवा पाये, उसमें भी 6 फीसदी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिला। जाहिर है इसमें कुछ व्यापारी भी शामिल है।
श्री तिवारी ने कहा, दरअसल सरकार खुद ही किसानों की उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदना चाहती। पिछली बार मुरैना में 50 हजार किसानों ने गेहूं खरीदी के लिए पंजीयन कराया था, लेकिन इस बार जिस तरह की जटिल प्रक्रिया अपनाई जा रही है, उसमें किसानों का समय जा रहा है। सिकमीनामा अनुबंध पर उन्होंने कहा, कि सरकार की मंशा साफ है, कि बटाईदारों का नाम शामिल न हो।
यह भी पढ़ें : 21वीं सदी में भी कई देशों में रातों रात बदली सत्ता
यह भी पढ़ें : …तो फेस मास्क से बनेंगी सड़कें
किसान जागृति संगठन के प्रमुख इरफान जाफरी ने कहा, कि रायसेन जिले के कलेक्टर ने गेहूं खरीदी पंजीयन के लिए एक नया आदेश निकाला है, कि आदेश के अनुसार उन्हीं किसानों का पंजीयन होगा, जिनके पास कोआपरेटिव बैंक का खाता होगा। अब यहां के हजारों किसान कोआपरेटिव बैंक में खाता खोलवाने के लिए लाईन में खड़े हैं।
यूं भी किसानों के लिए बैंक खाता खोलना इतना आसान नहीं है। किसानों को परेशान करने के लिए सरकार इस तरह के हथकण्डे अपना रही हैं। उन्होंने कहा, जो पुरानी व्यवस्था थी, उसे हटाया क्यों जा रहा है। इसलिए कि किसान खाद-बीज के लिए कोआपरेटिव बैंक से जो कर्ज लेते हैं। उसे एक मुश्त काट लिया जाये। जबकि सभी किसानों के पास नेशनल बैंकों के खाते हैं, चूंकि समय कम है, इसलिए सरकार को इस बार उसे ही मान्य करना चाहिए। मध्यप्रदेश के सभी तहसीलों में स्थाई रूप से आंदोलनरत किसान इसका खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं।
कृषि विभाग के पूर्व संचालक डॉ जीएस कौशल बताते हैं, कि मध्यप्रदेश में एक सौ 10 लाख हैक्टेअर एरिया में गेंहूं का उत्पादन होता है। इनमें से लगभग 50 फीसदी का पंजीयन होता है, लेकिन सरकार के पास इतने प्रोक्योरमेंट करने की क्षमता नहीं है। सरकार की सारी आनाकानी इसी बात को लेकर है। पिछले साल मध्यप्रदेश मंे गेहूं का पैदावार पंजाब से अधिक हुआ था।
दूसरी बात यहां सरबती गेहूं का दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी अधिक है। यह गेहूं आष्ठा, सीहोर, बीना और विदिशा जैसे जिलों में अधिक उत्पादन होता है। यह गेहूं उत्पादन के कुल एरिया के 10 फीसदी है। आटा बनाने वाली सारी बड़ी कंपनियां यह दावा करती है, कि यह आटा मध्यप्रदेश के बेस्ट क्वालिटी के गेहूं से बना है।
डॉ कौशल ने कहा, उन्होंने अपने कार्यकाल में सरकार को सुझाव दिया था, कि किसानों को इतना सक्षम बना दिया जाये, कि वे अपने खेत में सरबती गेहूं उगा सके। इस तरह गेहूं पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की जरूरत ही नहीं होगी। परंतु सरकार किसानों को सक्षम बनाने के बजाय कंपनियों को ज्यादा मजबूत बनाने का काम करती है।
यह भी पढ़ें : म्यांमार की सेना के लिए लोकतंत्र से ज्यादा जरूरी है फेसबुक
यह भी पढ़ें : अब देशप्रेमी केवल अर्नब गोस्वामी और कंगना रनौत
उन्होंने कहा, जब गेहूं और धान समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा जा रहा है। तब 23 कृषि उत्पादों की समर्थन मूल्य पर खरीद की बात सोचना बेकार है। किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की जुमलेबाजी पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, िक इस बार केंद्र की बजट में देश की 67 फीसदी आबादी के लिए कुल बजट का मात्र साढ़े 6 फीसदी ही आबंटित किया गया है । अब मध्यप्रदेश के बजट मंे क्या होता है, यह देखने वाली बात है।
गौरतलब है, कि इस बार गेहूं का समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल है और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस बार 98 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की बोवनी हुई है।