Thursday - 31 October 2024 - 8:22 AM

जस्टिन ट्रूडो के भारत दौरे को लेकर उठ रहे सवाल!

जुबिली न्यूज डेस्क

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भारत पहुंचे थे. उन्हें दुनिया के बाक़ी नेताओं की तरह ही रविवार को वापस लौट जाना था लेकिन विमान में आई तकनीकी ख़राबी की वजह से वो मंगलवार दोपहर को ही दिल्ली से वापस जाने की उड़ान भर सके.ट्रूडो का ये सफ़र ‘मुश्किलों’ भरा साबित हो रहा है. एक तरफ़ भारत में उन्हें ख़ास तवज्जो नहीं मिली तो दूसरी तरफ़ कनाडा में भी उन्हें घेरा जा रहा है.

कनाडा की मीडिया में उनके इस दौरे को ‘नाकाम’ और ‘शर्मनाक़’ तक कहा जा रहा है. कनाडा का मीडिया प्रधानमंत्री बनने के बाद साल 2018 में उनके पहले ‘नाकाम’ भारत दौरे की भी याद दिला रहा है जब उन्होंने एक ‘दोषी क़रार दिए आतंकवादी’ को अपने साथ डिनर के लिए आमंत्रित कर लिया था.

एक तस्वीर ने जाहिर किया तनाव

ट्रूडो जब अधिकारिक अभिवादन के दौरान मिले तब वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने के दौरान अपना हाथ छुड़ाते हुए भी प्रतीत हुए. इस तस्वीर को दोनों देशों के रिश्तों में चल रहे ‘तनाव’ के रूप में भी देखा जा रहा है.

ट्रूडो से जब इस बारे में प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने हंसकर उसे टालने की कोशिश की. लेकिन कनाडा के मीडिया में कहा जा रहा है कि ‘बात सिर्फ़ इतनी’ नहीं है. भारत इस समय दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. क़रीब चार करोड़ की आबादी वाले कनाडा की अर्थव्यवस्था भी दुनिया की शीर्ष दस अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है. कनाडा भले ही आकार में भारत से 204 प्रतिशत बड़ा है लेकिन कनाडा की आबादी भारत की तुलना में बहुत कम है.

कनाडा के मीडिया में भारत के साथ बढ़ रही कनाडा की राजनयिक दूरियों पर भी चिंता ज़ाहिर की जा रही है. कनाडा में बड़ी तादाद में भारतीय सिख आबादी भी रहती है. कनाडा की घरेलू राजनीति पर सिख आबादी का ठीकठाक असर है और माना जा रहा है कि ट्रूडो घरेलू राजनीति की वजह से ही ‘भारत से दूर’ हो रहे हैं.

दोनों देशों की आर्थिक प्रगति में भी बड़ा फ़ासला

दोनों देशों की आर्थिक प्रगति में भी बड़ा फ़ासला है. कनाडा की अर्थव्यवस्था 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और इसके 1.4 प्रतिशत तक गिरने की आशंका ज़ाहिर की गई है. वहीं भारत की आर्थिक विकास दर 5.9 प्रतिशत है और इसके और अधिक बढ़ने की उम्मीदें भी ज़ाहिर की गई हैं.

दिल्ली में ट्रूडो को ‘तकनीकी कारणों’ से मौजूदगी उनके लिए कितना असहज करने वाली है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो सोमवार को दिल्ली के ललित होटल में अपने कमरे से बाहर नहीं निकले. भारत ने दिल्ली में मौजूद जस्टिन ट्रूडो के प्रति जो सर्द रवैया दिखाया है वो भी शायद अकारण नहीं है.

कहा जा रहा है कि ट्रूड़ो मोदी के विराधी हैं

ट्रूडो के शासनकाल में कनाडा ने भारत के साथ व्यापार समझौते पर वार्ता बिना किसी स्पष्टीकरण के रोक दी है. ऐसे में ये सवाल भी उठता है कि ट्रूडो ये क़दम क्यों उठा रहे हैं. कनाडा के मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक़ ट्रूडो वैचारिक तौर पर नरेंद्र मोदी के विरोधी हैं. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, “दुर्भाग्यवश, ट्रुडो को लगता है कि मोदी की घेरलू नीतियों का असर उनकी अपने राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ेगा, वो ना सिर्फ़ मोदी से दूरी बनाये रखना चाहते हैं, बल्कि उनकी आंख में आंख डालकर देखना भी चाहते हैं.”

ट्रूड़ो पर लगाया गंभीर आरोप

प्रधानमंत्री ट्रूडो भारत के साथ कारोबारी समझौता ना करने को लेकर अपने देश में भी घिर रहे हैं. कनाडा के सासकाचेवान के प्रीमियर स्कॉट मोए ने ट्रूडो पर भारत के साथ संबंध ख़राब करने के आरोप लगाये हैं और कहा है कि ट्रूडो ने प्रांतों को भारत के साथ समझौते को लेकर अंधेरे में रखा है. सोमवार को जारी किए एक पत्र में स्कॉट मोए ने कहा है कि ट्रूडो घरेलू राजनीतिक कारणों की वजह से भारत से तनाव बढ़ा रहे हैं. सासकेचवान प्रांत अपने निर्यात का चालीस प्रतिशत भारत को करता है और दोनों देशों के बीच बढ़ रहे तनाव का यहां की अर्थव्यवस्था पर असर हो रहा है.

ये भी पढ़ें-भारत में जी-20 समिट को लेकर दूसरे देशों में कैसी रही प्रतिक्रिया

ट्रूडो ने किसान आंदोलन के दौरान खुलकर आंदोलन का समर्थन किया था और अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात की थी. जी-20 सम्मेलन के दौरान भारत का कनाडा से अपने देश में ‘खालिस्तान गतिविधियों को नियंत्रित करने’ के लिए कहना भी सुर्खियां बना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रूडो के साथ मुलाक़ात के दौरान कनाडा से चल रहे अलागववादी ‘खालिस्तानी आंदोलन’ का मुद्दा भी उठाया और इसे लेकर भारत की चिंतायें भी ज़ाहिर की.

वहीं जिस दिन ट्रूडो और मोदी के बीच संक्षिप्त मुलाक़ात हुई, उसी दिन दूसरी तरफ़ कनाडा के वेनकूवर में सिख समुदाय ने भारत से पंजाब प्रांत को अलग करने के लिए एक जनमत संग्रह भी किया. भारत ने कनाडा से कहा है कि उसे ‘कनाडा में रह रहे भारतीय समुदाय के लिए ख़तरों’ से भारत के साथ मिलकर लड़ना चाहिए.

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