राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि इन्डियन नेगोशिएटिंग टीम (आईएनटी) में शामिल विशेषज्ञों की आपत्तियों पर विचार किये बिना सीएजी को अपनी रिपोर्ट तैयार नहीं करनी चाहिए थी
राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि इन्डियन नेगोशिएटिंग टीम (आईएनटी) में शामिल विशेषज्ञों की आपत्तियों पर विचार किये बिना सीएजी को अपनी रिपोर्ट तैयार नहीं करनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि इन तीन अफसरों ने लिखित आपत्ति इसलिए रिकार्ड किया क्योंकि उनको मालूम है कि कभी न कभी इस सौदे की जांच होगी और अगर उस वक्त वे भी गलत काम के साझीदार पाए गए तो उनको भी जेल जाना पड़ सकता है। उन्होंने दावा किया कि नया राफेल सौदा एक डकैती है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों की आपत्ति वाली टिप्पणी सरकार की तर्क प्रणाली की बुनियाद को ही ध्वस्त कर देती है।
रााफेल युद्धक विमान की खरीद का मुद्दा भारतीय राजनीति के मौजूदा विमर्श का स्थायी भाव बन गया है। कांग्रेस की कोशिश है कि यह लोकसभा चुनाव 2019 का मुख्य मुद्दा बन जाए। कांग्रेस की कोशिश शुरू से ही इसको बोफोर्स के टक्कर का हथियार बनाने की रही है लेकिन शुरुआती दौर में लगता था कि मुख्य विपक्षी पार्टी की कोशिश केवल राजनीतिक कारणों से है।
बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने राफेल खरीद पर कई बार प्रेस कांफ्रेंस भी कर ली, केस को सुप्रीम कोर्ट भी ले गए लेकिन ऐसा कुछ नहीं सामने आया जिसके आधार पर सरकार को घेरा जा सके। सरकार की तरफ से तरह-तरह के बयान आते रहे। निर्मला सीतारामन कुछ कहती रहीं, अरुण जेटली कुछ कहते रहे, रविशंकर प्रसाद ने भी कई बार राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर हमला बोला लेकिन जनता ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया, राफेल का मामला जनता के बीच मुख्य चर्चा में नहीं आया। अभी पिछले दिनों हिन्दू अखबार के पूर्व संपादक एन राम ने कुछ ऐसी खबरें दे दीं कि सरकार का पक्ष लेने वाले नेता और टीवी चैनल हक्का-बक्का रह गए। एन राम ने सरकार की तरफ से कही गयी ज़्यादातर बातों को गलत साबित करने का सिलसिला शुरू कर दिया। एक के बाद एक लेख लिखकर सरकार की स्थिति को कमजोर कर दिया।
हिन्दू और एन राम ने यह कारनामा पहली बार नहीं किया है। 1989 में जब तत्कालीन राजीव गांधी सरकार बोफोर्स घोटाले को झेल रही थी तो उस वक्त की कांग्रेस सरकार कुछ भी मानने को तैयार नहीं थी। हिन्दू की संवाददाता, चित्रा सुब्रमण्यम और एन राम की बाईलाइन से बहुत सारी खबरें उनके अखबार में छपीं। उसके बाद सरकार अपने आपको बोफोर्स के घोटाले की मुसीबत से बचा नहीं सकी। राजीव गांधी की सरकार की हार के प्रमुख कारणों में बोफोर्स भी एक था। बोफोर्स घोटाले का जो पर्दाफाश हिन्दू अखबार ने किया वह कोलंबिया जर्नलिज्म स्कूल की पचास महान खबरों में से एक मानी जाती है।
उन पचास खबरों में वाटरगेट और सोवियत रूस के पतन जैसी कालजयी खबरें शामिल हैं। खोजी पत्रकारिता की परम्परा में हिन्दू अखबार की बोफोर्स रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कोलंबिया स्कूल ने लिखा कि, ”बोफोर्स घोटाले को खोलने में एन राम की महान भूमिका थी। इस खबर के कारण ही राजीव गांधी की सरकार का पतन हुआ और इसी खबर ने भारत की राजनीति की दिशा बदल दी।” कोलंबिया स्कूल की वेबसाईट पर लिखा है कि एन राम और चित्रा सुब्रमण्यम की खबर ने ऐसा सबूत प्रस्तुत कर दिया जिसका खंडन नहीं किया जा सकता था। सबूत इतने मजबूत थे कि उनको कोई भी अदालत अकाट्य मानने के लिए बाध्य हो जाती।
एन राम ने इस बार अपनी रिपोर्टों में भारतीय वायु सेना के युद्धक विमान की खरीद के रक्षा सौदे में हेराफेरी की संभावना का संकेत दिया है। उन्होंने अभी तक जो खबरें छापी हैं उससे सरकार की तरफ से कही गई कई बातों से पर्दा उठ गया है। मसलन उन्होंने यह साबित कर दिया है कि रक्षा मंत्रालय की विशेषज्ञ टीम को दरकिनार करके प्रधानमंत्री कार्यालय ने फ्रांस की कंपनी और सरकार से डायरेक्ट बातचीत शुरू कर दिया था और इस चक्कर में राफेल युद्धक विमान की खरीद में सरकार को करीब 41 प्रतिशत ज्यादा दाम देना पड़ा। अखबार ने रक्षा मंत्रालय की वह नोटशीट छाप दी जिस पर रक्षा सचिव समेत सभी अधिकारियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से चल रही समांतर बातचीत का उल्लेख किया था। उसके बाद के नोट में तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर की टिप्पणी भी थी जिसमें उन्होंने लिखा था कि रक्षा सचिव को चाहिए कि वे प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव से बातचीत करके मामले का हल निकाल लें।
हिन्दू अखबार की खबर के बाद सरकार में बहुत बड़ी हलचल देखी गई लेकिन एन राम के तर्कों को गलत बताने की कोशिश भी सरकार की तरफ से नहीं की गई। रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन ने एन राम और हिन्दू की पत्रकारिता के कथित घटियापन पर जरूर सवाल उठाए लेकिन अखबार में लिखे तथ्यों का खंडन नहीं किया। उनकी टिप्पणी को एन राम ने यह कहकर टाल दिया कि उनको श्रीमती सीतारमन से पत्रकारिता सीखने की जरूरत नहीं है।
राफेल खरीद का मामला अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल में कथित घोटाले की बात हर मंच पर उठा रहे हैं। अपनी बहन और कांग्रेस की नवनियुक्त महासचिव प्रियंका गांधी के साथ जब वे लखनऊ गए तो उन्होंने वहां राफेल विमान की छवि भी दिखाई। कांग्रेस और राहुल गांधी हर हाल में राफेल को वही दजार् देने की फिराक में हैं जो उनके विपक्षियों ने 1988 -89 में बोफोर्स को दे दिया था। लेकिन सरकार की तरफ से भी हर स्तर पर राफेल सौदे में खुद को पाक साफ साबित करने के प्रयास चल रहे हैं। सबसे ताडा मामला नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी)की नई रिपोर्ट को लेकर है जिसमें कहा गया है कि डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार राफेल से जो सौदा कर रही थी मोदी की सरकार ने उससे 2.86 प्रतिशत सस्ते दाम पर युद्धक विमान का सौदा किया है। हालांकि इस रिपोर्ट में भी राफेल की वास्तविक कीमतों को सार्वजनिक नहीं किया गया है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस रिपोर्ट को यह कहकर खारिज कर दिया कि, ”इस रिपोर्ट की कीमत उतनी भी नहीं है जितनी कीमत उस कागज की है जिस पर यह लिखी गयी है।” उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में उन जरूरी सवालात पर विचार ही नहीं किया गया है जो बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। एक प्रेस कान्फरेंस में राहुल गांधी ने सवाल उठाया कि इन्डियन नेगोशिएटिंग टीम (आईएनटी) में शामिल विशेषज्ञों की आपत्तियों पर विचार किये बिना सीएजी को अपनी रिपोर्ट तैयार नहीं करनी चाहिए थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि इन तीन अफसरों ने लिखित आपत्ति इसलिए रिकार्ड किया क्योंकि उनको मालूम है कि कभी न कभी इस सौदे की जांच होगी और अगर उस वक्त वे भी गलत काम के साझीदार पाए गए तो उनको भी जेल जाना पड़ सकता है।
उन्होंने दावा किया कि नया राफेल सौदा एक डकैती है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों की आपत्ति वाली टिप्पणी सरकार की तर्क प्रणाली की बुनियाद को ही ध्वस्त कर देती है। सरकार ने दावा किया था कि नये सौदे के हिसाब से राफेल युद्धक विमान सस्ता पड़ेगा और डिलीवरी जल्दी होगी। इस आपत्ति की टिप्पणी में साफ लिखा है कि जो डील पहले हुई थी उसके हिसाब से नया सौदा 55.6 प्रतिशत महंगा है। उन्होंने आरोप लगाया कि डील को बदला इसलिए गया और ज्यादा कीमत इसलिए दी गई क्योंकि प्रधानमंत्री ने तीस हजार करोड़ रुपये का लाभ अनिल अम्बानी को पहुंचाने का मन बना लिया था।
राहुल गांधी ने सीएजी रिपोर्ट के हवाले से भी सरकार के अलग-अलग विभागों और मंत्रियों को गलत साबित करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि ”हालांकि मैं सीएजी रिपोर्ट पर विश्वास नहीं करता लेकिन एक काम तो तो यह रिपोर्ट करती ही है कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन और वित्त मंत्री अरुण जेटली के उन बयानों को झूठा साबित कर देती है जो उन लोगों ने संसद में दिए थे। सीएजी रिपोर्ट में 2.86 प्रतिशत सस्ता बताया गया है जबकि सरकार के यह दो मंत्री 9 और 20 प्रतिशत के बीच सस्ता बताते रहे हैं।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को भी अधूरी जानकारी दी थी। उसी अधूरी जानकारी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट से जो फैसला आया वह भी अधूरा है।
सरकार को चाहिए कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को पूरी जानकारी दे कर फैसले पर पुनर्विचार के लिए प्रार्थना करे। सीएजी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने और भी कई चि_ियां दी हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में लिखा गया था कि सीएजी ने राफेल विमानों की कीमत देख लिया है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गलत जानकारी दी थी कि सुप्रीम कोर्ट ने देख लिया है क्योंकि तब तक तो रिपोर्ट तैयार ही नहीं थी। बाद में सरकार की तरफ से अर्जी दी गई कि आदेश में व्याकरण की गलती हो गई है। राफेल विवाद पर पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था। उसके बाद बीजेपी ने दावा किया था कि मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने क्लीन चिट दे दिया है। लेकिन बाद में पता चला कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बंद लिफाफे में जो जानकारी दी थी, उसमें कुछ गड़बड़ी थी।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसी जानकारी के आधार पर आया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की बात पर विश्वास करके अपने आर्डर में लिख दिया था कि सरकार ने सीएजी से राफेल की कीमत संबंधी जानकारी शेयर की है, सीएजी की रिपोर्ट की जांच संसद की लोकलेखा समिति (पीएसी) ने कर लिया है। बाद में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक चि_ी लिखकर कहा कि फैसले में कुछ गलतियां आ गई हैं। चि_ी में लिखा गया कि सरकार ने यह नहीं कहा था कि सीएजी की रिपोर्ट की जांच पीएसी द्वारा कर ली गई है। सरकार ने तो बस यह कहा था कि जब सीएजी की रिपोर्ट तैयार होती है तो पीएसी उसकी जांच करती है। सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट को प्रक्रिया की जानकारी दी थी, यह नहीं कहा था कि ऐसा हो चुका है। उसकी मंशा केवल कोर्ट को यह बताने की थी कि ऐसा होता है।
जाहिर है राफेल डील में भारी विवाद पैदा हो गया है। कांग्रेस की कोशिश है कि वह राफेल घोटाले को चुनावी मुद्दा बनाए और अभी वह उसमें सफल होती दिख रही है। इस काम में उसको हिन्दू अखबार और एन राम की पत्रकारिता भी सहयोग दे रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों पर इसका क्या असर पड़ेगा। – शेष नारायण सिंह