प्रीति सिंह
पूर्वांचल की राजनीति का मिजाज बिल्कुल अलग है। यहां जितनी ठसक नेताओं में होती है उससे ज्यादा ठसक मतदाताओं में है। मुख्यमंत्री योगी का समर्थक खुद को योगी से कम नहीं समझता तो बाहुबली नेताओं का समर्थक खुद को मुख्तार, बृजेश और अतीक से कम नहीं समझता। यहां के मतदाताओं पर राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि नेताओं के व्यक्तित्व का राज चलता है।
यहां की राजनीति में जितना दखल राजनीतिक दलों की है उतना ही बाहुबल का भी है। बाहुबलियों के वर्चस्व को इस तरह भी समझा जा सकता है कि चुनाव जीतने के लिए प्रत्येक पार्टी उनका सहारा लेती रही है। बाहुबली नेताओं का चुनाव जीतने का रिकार्ड शानदार है। शायद इसीलिए यह राजनीतिक दलों के चहेते बनते रहे हैं।
हालांकि इस चुनाव में राजनीतिक दलों ने बाहुबली नेताओं से थोड़ी दूरी बनाकर रखी है इसलिए ये बाहुबली नेता अपने वर्चस्व को बचाने के लिए या तो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं या फिर किसी दल के साथ जुड़कर अपनी दरकती जमीन को बचाने की फिराक में हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां कुछ चेहरे ऐसे हैं जिनका अपने इलाके में काफी दबदबा है। इन लोगों को बाहुबली नेता कहा जाता है। आपराधिक छवि के बावजूद इनके दरवाजे पर शरीफ लोग भी अपनी समस्या लेकर पहुंचते हैं।
इनकी प्रसिद्धि का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राजनीतिक दलों में होड़ लगती है कि ये किसके साइड खड़े होंगे। इसका कारण है कि ये चुनाव में समीकरण बनाने और बिगाड़ने, दोनों का माद्दा रखते हैं। ताजा उदाहरण बीजेपी में शामिल हुए राजन तिवारी का है। बाहुबली राजन तिवारी का पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर जनाधार है। इसलिए बीजेपी उनको यहां लाई है।
पूर्वांचल में भारी संख्या में है बाहुबली नेता
पूर्वांचल में बाहुबली नेताओं की फेहरिस्त लंबी है। मुख्तार अंसारी, राजा भैया, अतीक अहमद, बृजेश सिंह, चार बार सांसद रह चुके बाहुबली रमाकांत यादव, हरिशंकर तिवारी, अफजाल अंसारी, धनंजय सिंह, जितेन्द्र सिंह बबलू , अभय सिंह, सुशील सिंह और बृजेश सिंह, अमर मणि त्रिपाठी जैसे बाहुबली नेताओं का वर्चस्व आज भी क्षेत्र में बरकार है। यदि ये खुद चुनाव लड़े तो इनका जीतना तो तय है ही लेकिन इन्होंने अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया तो उसकी भी जीत पक्की समझी जाती है।
दरअसल बाहुबली और राजनीतिक दल एक दूसरे की मजबूरी बन चुके है। शायद इसीलिए बाहुबली नेताओं का वर्चस्व अब तक बना हुआ है। एक दौर था कि समाजवादी पार्टी को गुंडो की पार्टी कही जाती थी। सपा हो या बसपा, कांग्रेस हो या भाजपा। फिलहाल किसी ने बाहुबली नेताओं से परहेज नहीं रहा है।
हालांकि इस बार राजनीतिक दलों ने बाहुबलियों को गले लगाने से परहेज किया है, बावजूद इसके मैदान में बाहुबलियों के करीबी और रिश्तेदार चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। राजनीतिक दल अच्छे से जानते हैं कि बाहुबलियों के इलाके में इनका प्रभाव चुनाव पर असर डालेगा।
जो बाहुबली चुनाव मैदान में नहीं हैं या उन्हें राजनैतिक दलों ने किसी भी कारण से टिकट नहीं दिया, वे अपने राजनैतिक वजूद बचाने के लिये अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में अपने प्रत्याशियों का जिताने में जुगत में हैं।
कई सीटों पर बाहुबलियों का है दबदबा
पूर्वी यूपी के हर चुनाव में कई सीटों पर ऐसे बाहुबली नेताओं का जबर्दस्त असर दिखता है। लोकसभा 2019 में भी कयास लगाया जा रहा है कि बाहुबलियों का असर दिखेगा। मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, अतीक अहमद और राजा भैया, ये ऐसे नाम है जिनका कई सीटों पर सिक्का चलता है। मतदाताओं में इनकी अच्छी पकड़ है।
मुख्तार का है वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर और मऊ में दबदबा
मुख्तार अंसारी लंबे समय से जेल में बंद है और वह जेल से ही सियासत की बागडोर संभाले हुए हैं। मुख्तार का पूर्वी यूपी के वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर और मऊ में आज भी अच्छा खासा दबदबा है।
अपराध के जगत से राजनीति का सफर तय करने वाले अंसारी मऊ विधानसभा क्षेत्र से पांचवीं बार विधायक हैं। अंसारी पर हत्या, किडनैपिंग और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं।
इस लोकसभा चुनाव में गाजीपुर से मुख्तार अंसारी के भतीजे शोएब अंसारी उर्फ मन्नू अंसारी ने चुनावी पर्चा भरा था, लेकिन अंत में नाम वापस ले लिया। इस सीट पर बीजेपी ने मनोज सिन्हा को उतारा है।
अब सिन्हा का सीधा मुकाबला गठबंधन उम्मीदवार मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी से है। वहीं घोसी से अंसारी के करीबी अतुल राय चुनाव लड़ रहे हैं।
भदोही में दो बाहुबलियों के बीच होगा जंग
भदोही लोकसभा सीट पर रोमांचक जंग है। एक बाहुबली नेता मैदान में हैं तो और दूसरा पर्दे के पीछे। चार बार सांसद रह चुके बाहुबली रमाकांत यादव इस बार कांग्रेस के टिकट पर भदोही से ताल ठोक रहे हैं। विजय मिश्र परदे के पीछे से चुनाव में दम दिखाएंगे। दोनों बाहुबलियों का वर्चस्व दांव पर लगा है।
विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान सपा से टिकट कटने के बाद विजय मिश्रा ने निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा था। मोदी लहर होने के बावजूद विजय मिश्रा ने ज्ञानपुर सीट से भारी मतों से जीत हासिल की थी।
वह चार बार से विधायक हैं। इस सीट से आय से अधिक संपत्ति के मामले में आरोपित रहे रंगनाथ मिश्रा भी बीएसपी-सपा गठबंधन के प्रत्याशी हैं।
राजा भैया ने उतारे उम्मीदवार
बाहुबली नेताओं का जिक्र राजा भैया के बिना अधूरा है। राजा भैया पूर्वी उत्तर प्रदेश के बड़े बाहुबली नेता है। प्रतापगढ़ और आस-पास के क्षेत्रों में उनकी तूती बोलती है। उनकी ताकत का अंदाजा राजा भैया की रैलियों में जुटने वाली भीड़ से लगाया जा सकता है।
हालांकि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) पार्टी का गठन किया और दो सीटों पर अपना प्रत्याशी भी उतार दिया। प्रतापगढ़ और कौशांबी में राजा भैया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है तो वहीं इन सीटों पर राजनीतिक दलों को सियासी समीकरण बिगड़ने का डर सता रहा है।
अतीक के बनारस से चुनाव लड़ने की थी चर्चा
बाहुबली नेता अतीक अहमद के सितारे इन दिनों गर्दिश में चल रहे हैं। वह जेल में बंद हैं। एक दौर था जब वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में अतीक का बोलबाला था। अतीक ऐसे बाहुबली नेता है जिनका प्रभाव पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में है। अतीक 2004 में सपा के टिकट पर फूलपुर से सांसद चुने गए थे।
अतीक अहमद बनारस से चुनाव लडऩा चाह रहे थे। उन्होंने ऐलान भी किया था कि जेल में रहते हुए चुनाव लड़ेंगे। फिलहाल वह मैदान में नहीं है। अतीक का वाराणसी में अच्छा खासा मुस्लिम वोट बैंक है।
बृजेश सिंह भी निभाएंगे बड़ी भूमिका
माफिया से राजनीति में कदम रखने वाले बाहुबली नेता बृजेश सिंह के किस्से पूर्वांचल में मशहूर हैं। बड़े-बूढ़े बृजेश सिंह के किस्से बड़े चाव से बच्चों को सुनाते हैं। मुख्तार और बृजेश की दुश्मनी के किस्से बड़े दिलचस्प हैं।
बृजेश सिंह का वाराणसी, चंदौली और जौनपुर में काफी दबदबा है। पहले कहा जा रहा था कि वो अपने किसी रिश्तेदार को चुनाव लड़वा सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
हरिशंकर के बेटे कुशल संत कबीर नगर से लड़ रहे चुनाव
उत्तर प्रदेश में माफियाराज की शुरुआत गोरखपुर से हुई थी। एक दौर में गोरखपुर माफियाओं की वजह से जाना जाता था। पूर्वांचल के बड़े बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी का पता आज भी गोरखपुर ही है।
इस चुनाव में उनके बेेटे कुशल तिवारी संतकबीर नगर सपा-बसपा गठबंधन की तरफ से मैदान में हैं। उनके खिलाफ मैदान में कांग्रेस की ओर से भालचंद्र यादव और बीजेपी से गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद मैदान में हैं।