रश्मि शर्मा
फिज़ाओं में बारुद घुला है, मुट्ठियां तनी हैं और बदले की आग को हर रोज हवा दी जा रही है। इन सबके बीच विमर्श से किसान गायब हो गए हैं। वहीं, किसान जिसकी बदहाली के मुद्दे पर अभी कुछ दिन पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को हरा कर कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुयी थी।
किसान जिसके कोप से डर कर अंतरिम बजट मे मामूली ही सही पर सरकार ने 2000 रुपये एकड़ की राहत बांटी थी। वही किसान जिसे भाजपा ने सरकार फिर सरकार बनने के बाद सुनहरे दिन लाने का वादा करना शुरु कर दिया था।
एयर स्ट्राइक से उपजा राष्ट्रवाद
पुलवामा हमले, पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक से उपजी राष्ट्रवाद की भावना को हवा देते हुए बीजेपी एक बार उत्तर प्रदेश में वही माहौल बनाने में जुट गयी है जिसके बलबूते 2014 में दिल्ली फतेह किया था।
इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में दिन रात खड़ी फसल चरते आवारा मवेशियों, गन्ना किसानों का चालू पेराई सत्र का 10000 करोड़ रुपये के लगभग का बकाया भुगतान और आलू किसानों का बेभाव बिकते माल का सवाल पीछे छूट रहा है।
प्रदेश की योगी सरकार के नया पुराना बकाया मिला कर 52000 करोड़ रुपये गन्ना भुगतान के दावों के बीच हकीकत यह भी कई चीनी मिलों ने महीनों से किसानों को फूटी कौड़ी नही दी है और न ही देने की कोई समय सीमा बतायी है। गन्ना किसानों के भुगतान का यह मसला पूरब से लेकर पश्चिम तक एक समान है। कुछ चुनिंदा चीनी मिलों का ही भुगतान पटरी पर है।
इसी महीने की शुरुआत में हजारों किसानों ने 20 किलोमीटर पैदल मार्च कर बलरामपुर जिले में कलेक्ट्रेट का घेराव किया और महीनों से बकाया गन्ना भुगतान की मांग उठायी। राजधानी से सटे बाराबंकी जिले में बेहाल किसानों ने आलू की गिरती कीमतों का विरोध सड़क पर फसल फेंक कर किया। आवारा जानवर से परेशान किसान मवेशियों को जिले-जिले में सरकारी भवनों में बंद कर रहे हैं तो रात-रात भर जाग कर फसलें बचा रहे हैं।
एसा नही है कि किसानों के मुद्दे खत्म हो गए हैं और उनमें कोई असंतोष नही बचा है। दो दशक से गन्ना किसानों की लड़ाई लड़ रहे वी.एम.सिंह बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में मिलों को 35 लाख और कोल्हू क्रेशर पर 20 लाख किसान गन्ना बेंचते हैं और सबके सब परेशान हैं। एक बड़ी आबादी इस प्रदेश में गन्ना उत्पादन से जुड़ी है पर राष्ट्रवाद के ज्वार में सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष भी उन्हें भूल गयी है। किसानों को समझाया जा रहा है कि गन्ना बकाया तो चार महीने बाद भी मिल जाएगा पर पहले पाकिस्तान से निपट लें। हालात पर अफसोस जताते हुए वो कहते हैं कि किसानों के बीच भी इस बार नोटा का बटन दबाने की मुहिम शुरु हो गयी है।
आलू किसानों की मदद का दम भरने वाली योगी सरकार कमेटी बनाने, रिपोर्ट आने के बाद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित नही कर सकी और चुनाव आचार संहिता भी लग गयी। आलू के सरकारी खरीद के वादे और दावे किए गए पर कुछ भी नहीं हुआ। कोल्डस्टोरों में भडारंण की दरों को लेकर किसान सहमत नही हैं पर मारो काटों के शोर में उनकी आवाज की सुनवाई हुए बगैर चुनाव का बिगुल भी बज गया।
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता आलोक वर्मा का कहना है कि आलू किसान लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़ कर 6.50-7.50 रुपये किलो की कीमत मांग रहा है और मिल इसका आधा भी नही रहा है। चुनाव लड़ रहे दलों के लिए वो कोई मुद्दा नही पर गांवों में मुद्दा है। आवारा जानवर चुनाव से पहले भी समस्या थे और बाद में भी रहेंगे पर सत्ताधारी दल इसकी कोई बात नहीं कर रहा। फिलहाल तो किसानों को सब कुछ कुछ भूल बारुद के नशे में रहने को कहा जा रहा है।
(लेखिका स्वंतत्र पत्रकार हैं, ये लेख उनके निजी विचार हैं)