शबाहत हुसैन विजेता
जो कभी आतंकवाद के खिलाफ माहौल तैयार करने के लिए कथक के ज़रिये लोगों को इसके नुक्सान बताया करता था वह अचानक से उसी आतंकवाद का पैरोकार बन गया है. उसने भगवा धारण कर लिया है और सभी भगवा पहनने वालों से बन्दूक उठाने का आह्वान करने लगा है. नाम है पुलकित मिश्रा उर्फ़ पुलकित महाराज. मुकदमा दर्ज हो चुका है. बहुत जल्द यह जेल की सलाखों में मेहमान बनने जा रहा है.
पुलकित मिश्रा के लिए मुकदमा, गिरफ्तारी और जेल बहुत मामूली बातें हैं. यह दिल और दिमाग दोनों से बहुत शातिर है. यह बहुत अच्छी तरह से जानता है कि हालात को किस तरह से अपने हक़ में मोड़ा जा सकता है और किस रास्ते पर चलकर पैसों का एवरेस्ट बनाया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर चंदौसी में पैदा होने वाला पुलकित मिश्रा अपने शातिर दिमाग की वजह से जो ज़िन्दगी जीता है उसे हासिल करने में तमाम लोगों की पूरी उम्र बीत जाती है. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक वह किसी भी शहर में जा रहा हो वहां के डीएम उसके स्वागत सत्कार की तैयारियां करते दिखाई देते रहे हैं.
वह जिस जिले के अफसर को भी फोन कर देता है उस जिले में उसके वीआईपी ट्रीटमेंट का इंतजाम हो जाता है. उसके लिए सरकारी गाड़ी, सरकारी सुरक्षा और सरकारी सर्किट हाउस पलक पांवड़े बिछाए रहता है. बड़े-बड़े अफसर उसके सामने हाथ बांधे खड़े रहते हैं. वह जिस चीज़ की इच्छा ज़ाहिर कर देता है वह पल भर में हाज़िर हो जाती हैं.
इतनी शान-ओ-शौकत की ज़िन्दगी जी रहे आदमी को आखिर क्या ज़रूरत है कि वह भगवा पहनने वालों को आतंकवादी बन जाने के लिए प्रेरित करे. जिसके पीछे पूरा प्रशासनिक अमला भागता हो वह आखिर हिन्दुस्तान में नफरत का नासूर क्यों तैयार करना चाहता है यह सवाल तो उठेगा ही ना लेकिन मज़े की बात यह है कि जिन लोगों ने उसके बन्दूक उठाकर आतंकी बन जाने वाले बयान को सुना उन्हें तो यह पता है कि वह भगवाधारी साधू है. वह बेचारे तो जानते ही नहीं कि यह आध्यात्मिक गुरु नहीं बल्कि कथक नर्तक है.
पुलकित मिश्रा ने कला आश्रम से तीन साल का और श्रीराम भारतीय कला मन्दिर मंडी हाउस से दो साल का कथक में डिप्लोमा लिया है. कुछ दिनों तक इसने बिरजू महाराज और शिखा खरे से भी कथक सीखा.
बिरजू महाराज से कथक सीखने के दौरान पुलकित ने जब बिरजू महाराज का सम्मान देखा तो उसके दिल और दिमाग में वही सम्मान हासिल करने की हिलोरें उठने लगीं. वह देखता था कि बिरजू महाराज जहाँ भी जाते वहां उनके लिए रेड कार्पेट बिछ जाते. उन्हें सरकारी गाड़ी और सरकारी सर्किट हाउस मिल जाता. उनकी सुरक्षा के इंतजाम होते. उनके सामने अफसर हाथ बांधे खड़े रहते.
पुलकित को यह समझने और सोचने की कभी ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई कि सम्मान का यह शिखर हासिल करने के लिए बिरजू महाराज ने कथक को अपनी पूरी ज़िन्दगी दे दी है. वह यह बात नहीं जानता था कि बिरजू महाराज कालका बिंदादीन की उस ड्योढ़ी में पैदा हुए हैं जिसे कथक का तीर्थ समझा जाता है. बिरजू महाराज उस मिट्टी में खेलकर बड़े हुए हैं जिस पर चलकर कथक की वह विभूतियाँ गुज़री हैं जिन्होंने कथक को मन्दिरों को डांस बनाया.
पुलकित को यह सब बहुत जल्दी हासिल करना था. उसे यह सब फ़ौरन चाहिए था. उसका शातिर दिमाग कथक से ज्यादा अपने लिए सब कुछ हासिल करने के लिए चलने लगा. कथक समारोहों के दौरान वह जिस बड़े नेता के भी करीब पहुँचता गया उनके साथ अपनी तस्वीरों का कलेक्शन तैयार करता गया. उसके पास राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और अमित शाह जैसे नेताओं के साथ तस्वीरें जमा हो गईं.
इन तस्वीरों को हासिल करने के बाद कथक का यह नर्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्वयंभू आध्यात्मिक गुरू बन गया. यह खुद को संस्कृति मंत्रालय का निदेशक बताने लगा. उसने संस्कृति निदेशालय का नकली लेटर हेड भी छपवा लिया. अब यह जिस शहर में भी जाता वहां के डीएम को फोन कर देता कि प्रधानमंत्री का आध्यात्मिक गुरु हूँ. आ रहा हूँ. सारी व्यवस्थाएं कर दो. आनन-फानन में सब कुछ हो जाता. वह वहां जाता और राजसी ठाठ जीकर वापस लौट जाता. इसने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के अफसरों को बेवकूफ बनाया.
साहिबाबाद के एक छोटे से फ़्लैट में गुमनामी की ज़िन्दगी जीने वाला पुलकित मिश्रा ने फ्राड वाले रास्ते पर जैसे ही चलना शुरू किया उसके दरवाज़े पर अफसरों की भीड़ लगने लग गई. वह लाल बत्ती कार से चलने लग गया. दरवाज़े पर सुरक्षा के लिए तमाम पुलिसकर्मी तैनात हो गए. देखते ही देखते वह दौलत में खेलने लगा. वह बड़े-बड़े अफसरों पर रौब झाड़ता और अफसर हाथ बांधे खड़े रहते.
फ्राड की गाड़ी पर सवार पुलकित सरपट दौड़ा जा रहा था. अपने शातिर दिमाग से उसने बिरजू महाराज से ज्यादा सुविधाएं अर्जित कर ली थीं, लेकिन वह कहते हैं ना कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती. इसके भी बुरे दिन आ गए. पहली अप्रैल को मूर्ख दिवस होता है. पहली अप्रैल 2018 को ही पहली बार इसने अपनी मूर्खता का मज़ा चखा.
पहली अप्रैल 2018 को इसने सीतापुर के डीएम और एसपी को फोन कर बताया कि प्रधानमंत्री का आध्यात्मिक गुरु हूँ. मैं संस्कृति मंत्रालय में निदेशक हूँ. सीतापुर आ रहा हूँ. सर्किट हाउस, गाड़ी और सुरक्षा का इंतजाम करो. इंतजाम शुरू भी हो गए. पुलकित को जिला प्रशासन ने मन्दिरों के दर्शन कराये. खूब सुख सुविधाएं दीं. जब मन भर गया तो पुलकित वापस दिल्ली लौट गया मगर डीएम को उस पर शक हो गया था. उन्होंने पता लगाया तो पता चला कि वह संस्कृति मंत्रालय का निदेशक नहीं है. इसके बाद उन्होंने प्रधानमन्त्री कार्यालय से सम्पर्क कर पूछा कि क्या पुलकित मिश्रा प्रधानमन्त्री के आध्यात्मिक गुरू हैं ? पीएमओ ने इनकार किया तो डीएम ने इस मामले की बाकायदा लिखित शिकायत की.
इसके बाद दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को पुलकित मिश्रा का मामला सौंपा गया. पुलकित ने क्राइम ब्रांच को भी अर्दब में लेने की कोशिश की लेकिन दाल नहीं गली. उसके सामान की जांच हुई. कई मंत्रालयों के फर्जी लेटर हेड मिले. अंतत: उसे अगस्त 2018 में गिरफ्तार कर लिया गया. क्राइम ब्रांच ने उसे पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया.
क्राइम ब्रांच ने उसे पांच दिन की रिमांड पर लेकर पूछताछ की. क्राइम ब्रांच ने पटियाला हाउस कोर्ट को बताया कि पुलकित के बारे में कई महीने जांच की गई है. सोशल मीडिया पर उसकी प्रधानमंत्री समेत देश के कई बड़े नेताओं के साथ तस्वीरें हैं. वह साहिबाबाद में कथक का एक स्कूल भी चलाता है.
प्रधानमन्त्री के आध्यात्मिक गुरू के रूप में विलासिता की ज़िन्दगी जीने वाले पुलकित को साधारण कैदी की तरह से दिल्ली पुलिस बरेली लेकर आई. वह दो घंटे तक सिटी मजिस्ट्रेट के दफ्तर के बाहर स्टूल पर बैठा रहा. बरेली के सर्किट हाउस के रिकार्ड की छानबीन की गई. जहाँ-जहाँ उसे वीआईपी प्रोटोकाल मिला था वह वहां साधारण कैदी की तरह से ले जाया गया. मज़े की बात यह कि उसे जहाँ-जहाँ वीआईपी की तरह से ठहराया गया वहां के किसी भी रजिस्टर में उसका नाम दर्ज नहीं मिला.
अपने इस फ्राड के ज़रिये सुख सुविधाएं जुटाने वाले पुलकित मिश्रा को जब जेल की सख्त ज़मीन पर वक्त गुजारना पड़ा तो उसके पाँव में बंधने वाले घुंघरू ही उसे मुंह चिढ़ाने लगे. जिस कथक से वह प्रसिद्धि के शीर्ष पर पहुँच सकता था उसी को उसने अपने फ्राड का हिस्सा बना लिया. जेल में रहकर इस शातिर दिमाग ने यह समझा कि सिर्फ प्रधानमंत्री का ही क्यों उसे तो हिन्दुस्तान के सभी हिन्दुओं का आराध्य बन जाना चाहिए था. कथक डांस करते-करते वहा महाराज तो कहा ही जाने लगा था. पंडित वह पैदाइशी था.
बस इसके बाद फ्राड की एक नई दास्तान लिखे जाने का सिलसिला शुरू हुआ. जेल से रिहा होकर पुलकित मिश्रा पंडित पुलकित महाराज में बदल गया. वह घूम-घूमकर प्रवचन देने लगा. कथक की ऊर्जा को जब पुलकित का शातिर दिमाग मिल गया तो कथक का नाज़ुक अंदाज़ उसे छोड़कर चला गया.
इसी पुलकित मिश्रा ने अपनी एक नृत्य नाटिका में एक बार आतंकवाद को ढाला था तो प्रेक्षागृह तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था. पुलकित उन तालियों से यह समझ नहीं पाया कि यह तालियां आतंकवाद के विरोध में हैं.
पहली अप्रैल 2018 की अपनी मूर्खता की वजह से जेल काट आये पुलकित मिश्रा ने चार अप्रैल 2022 को दिल्ली के बुराड़ी मैदान में हुई हिन्दू महापंचायत में डासना देवी मन्दिर के महंत यति नरसिंहानन्द सरस्वती के उस भाषण को सुना जिसमें उन्होंने हिन्दुओं से अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हथियार उठाने का आह्वान किया तो पुलकित मिश्रा को अपने भविष्य का रास्ता दिखाई दे गया. नरसिंहानन्द ने इस सभा में कहा था कि अगर कोई मुसलमान भारत का प्रधानमंत्री बनेगा तो 20 साल में 50 फीसदी हिन्दू धर्म परिवर्तन कर लेगा. इसलिए हिन्दुओं को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हथियार उठा लेना चाहिए.
पुलकित को लगा कि नफरत के इस दौर में प्रसिद्धि का शीर्ष तो उसी का इंतज़ार कर रहा है लेकिन वही इसे समझ नहीं पाया. यह बात समझ आते ही उसने सभी भगवा पहनने वालों से आतंकवादी बन जाने का आह्वान कर दिया. उसने कहा कि बन्दूक उठा लो. फैसला करो. मुसलमानों के खिलाफ उसने खूब ज़हर उगला. उसका वीडियो देखते ही देखते वायरल हो गया. नफरत की गंगोत्री में एक और रत्न उभरता नज़र आने लगा. इस नफरती फ्राड के खिलाफ एक और मुकदमा दर्ज हो गया है. जेल का प्रोटोकाल फिर से उसका इंतज़ार कर रहा है. उसका वीडियो देखने वाले नहीं जानते हैं कि पाँव में घुंघरू बांधने वाला नफरत के सीवर में फिसल गया है.
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