सुरेंद्र दुबे
लोकतंत्र में नेता सिर्फ एक मोहरा होता है। जनता जब जिस मोहरे को चाहती है चल देती है और जब चाहती है तो मोहरे को उठाकर फेक देती है। राजा बिला वजह मुगालते में रहता है कि मोहरे उसके इशारे पर शतरंज के बिसात पर चल रहे हैं। बिसात हमेशा बिछी रहती है और राजनैतिक शतरंज पर बैठे हाथी, घोड़ा, ऊंट और पैदल अपने मूड के अनुसार शतरंज खेलने लगते हैं। जिस राजा को घोड़ा भी मात देने से कतराता है, कभी-कभी पैदल (सिपाही) उसे उठाकर पटक देता है। कारण राजा और रानी को पता ही नहीं चल पाता है कि कौन मोहरा उसका है और उसके किस मोहरे ने पाला बदल लिया है।
गुरुवार को महाराष्ट्र व हरियाणा में विधानसभाओं के चुनाव के नतीजे सामने आए। इसके अलावा कुछ राज्यों में हुए उपचुनाव के भी नतीजे आए। पता चला कि जनता ने विसात उलट-पलट दी है। हाथी को ऊंट बना दिया और ऊंट को घोड़ा। पैदल जिसको राजा-रानी राष्ट्रवाद, अनुच्छेद 370 और अन्य ख्याली पुलावनुमा मुद्दों पर नचा रहे थे, उन्हें पैदल ने उनकी औकात बता दी। अब ये पैदल आम आदमी भी है और हर जगह से दुत्कारी जा रही कांग्रेस पार्टी भी है। कांग्रेस पार्टी का वजूद न के बराबर काफी अर्से से चल रहा है। वहां कार्यकर्ता कम पर नेता ज्यादा हैं। आपसी सिरफुटौव्वल भी जमकर चल रही है। पर राजनैतिक शतरंज के पैदल को ये बात समझ में आ गई कि उसे राष्ट्रवाद के नाम पर भूखा रखने की साजिश चल रही है।
ये साजिश इतनी गहरी है कि राजा-रानी हमारी भूख की चर्चा भी नहीं करते। जब हम खाली पेट दिखाते हैं तो पीओके पर बम बरसा देते हैं। रोजगार मांगते हैं तो धारा 370 का झुनझुना पकड़ा देते हैं। और तो और हमारे आंसू पोछने के बजाए हमारा मजाक उड़ाते हैं। सो पैदल महाराज का मूड बदल गया। उसने मुद्दे बदल दिए और कहा-बहुत हो गया, काफी मूर्ख बन लिए…। पैदल बोला-जब देश को जरूरत होगी, जान दे देंगे, अकेले तुम्हीं ने देशप्रेम का ठेका नहीं ले लिया है। पर मूर्ख बनाना बंद करो।
अप्रैल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए चुनाव तक आते-आते जनता को सद्बुद्धि आ गई। उसने देखा कि चारों ओर मंदी का आलम है। नौकरियां छिनती जा रही है। दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो रहा है। तो उसने राष्ट्रवाद को धता बताते हुए असली मुद्दों पर विपक्ष को ढकेलना शुरु कर दिया। इस चुनाव में एक ओर सत्ता पक्ष तो दूसरी ओर जनता। विपक्ष न के बराबर था जिसे जनता ने ताकत देकर हां के बराबर कर दिया।
इसी का परिणाम था कि कल जब हरियाणा में भाजपा सरकार अपने बूते बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी और महाराष्ट्र में शिवसेना को मिलाकर बमुश्किल बहुमत का आंकड़ा पार कर सकी तो भाजपा के खेमे में सन्नाटा सा छा गया। टेलीविजन पर चल रही बहसों में पार्टी के प्रवक्ता और भाजपाई एंकर इधर-उधर मुंह ताकने लगे। ऐसे में फिर गृहमंत्री अमित शाह व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कमान संभाली और भाजपाई कार्यकर्ताओं की यह कहकर पीठ थपथपाई कि उनकी मदद की वजह से ही भाजपा दोनों राज्यों में फिर सत्तासीन होने वाली है। इस बात में दम लगता है। ये भाजपा कार्यकर्ताओं की मेहनत ही थी कि दोनों राज्यों में इज्जत बच गई वर्ना हरियाणा में 75 के पार और ममहाराष्ट्र में दो तिहाई बहुमत की ढींग हांकने वाले नेताओं ने तो लुटिया ही डुबो दी थी।
हरियाणा में भाजपा कुल 40 सीटें प्राप्त कर सकी। जहां पिछले चुनाव में उसे 47 सीटें मिली थी। कांग्रेस जिसे पिछले चुनाव में 15 सीटें मिली थीं, जंप करके 31 पहुंच गई। अगर थोड़ी और छलांग लग जाती तो भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ जाता। हरियाणा की जनता ने एक और सरप्राइज दिया। देवीलाल के पोते दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने दस सीटें जीतकर वहां की राजनीति को एक नया मोड़ दे दिया। इनेलो के एक विधायक सहित नौ निर्दलीय चुनाव जीते हैं। यानी भाजपा इनमें से छह लोगों को तोड़ ले तो उसकी सरकार बन जायेगी। परंतु भाजपा कर्नाटक का अनुभव भूली नहीं है। वह चाहती है कि दुष्यंत चौटाला उनके पाले में आ जाए जिसके लिए पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को दुष्यंत चौटाला को मनाने के लिए लगाया गया है।
चौटाला कि दोनों हाथ में लड्डू है। पर भाजपा के साथ जाने के अपने खतरे भी है। भाजपा को कोस-कोसकर ही चौटाला ने अपना नया किला बनाया है। दूसरी ओर कांग्रेस है जो चौटाला को लुभाने में लगी है। इस खेमे से भी चौटाला निर्दलीयों को मिलाकर सरकार बना सकते हैं। ये शह और मात का खेल सरकार बनने तक जारी रहेगा। कौन बाजी मारेगा पता नहीं पर जनता ने बता ही दिया कि राजनीतिक दिग्गजों को किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए। असली मालिक जनता ही है और नेता को हमेशा चाकर की ही भूमिका में रहना चाहिए।
अब चलिए महाराष्ट्र पर आ जाते हैं। शरद पवार को ईडी ने फंसाने की धमकी दी पर पवार ने कुछ ऐसा पलटवार किया कि ईडी अधिकारियों ने खुद ही हाथ जोड़ लिए। हां पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल को जरूर ईडी ने तंग किया। पर महाराष्ट्र में एनसीपी को मिली सफलता ने ये साबित कर दिया कि जांच एजेंसियों के जरिए चुनावी जंग जीतने का खेल हमेशा नहीं चल पायेगा। भाजपा और शिवसेना गठबंधन साथ मिलकर चुनाव लड़े। भाजपा की अपने दम पर बहुमत पाने और चुनाव के बाद शिवसेना को उसकी हैसियत बताने की हसरत धरी की धरी रह गई। फिर क्या था, उद्धव ठाकरे ने बाहे मरोडऩा शुरु कर दिया। वह कह रहे हैं कि 50-50 के फार्मूले पर सरकार चलेगी, यानी ढाई साल भाजपा का मुख्यमंत्री होगा और ढाई साल उनके बेटे आदित्य ठाकरे मुख्यमंत्री होंगे। भाजपा अब बाहे मरोड़ने के बजाए उद्धव ठाकरे की मानमनौव्वल में लग गई है। क्योंकि दूसरी ओर शरद पवार और कांग्रेस उद्धव ठाकरे को कंधे पर बैठाने के लिए उतावले दिख रहे हैं। अब इसके बाद भी अगर कोई जनता को कोई मूर्ख समझे तो उसे बड़ा मूर्ख कौन होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)