न्यूज डेस्क
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर शिकंजा और बढ़ गया है। अब इन दोनों नेताओं पर दोनों नेताओं पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया गया है। दोनों नेताओं पर इस एक्ट के तहत हुई कार्रवाई पर पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने नाराजगी जाहिर की है।
पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा कि दोनों नेताओं पर लगाए गए पीएसए से मैं हैरान हूं। बिना आरोप के किसी पर कार्रवाई लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम है। जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लागू किए जाते हैं, तो लोगों के पास शांति से विरोध करने के अलावा और कोई विकल्प होता है क्या?’
Shocked and devastated by the cruel invocation of the Public Safety Act against Omar Abdullah, Mehbooba Mufti and others.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) February 7, 2020
यही नहीं उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि, ‘पीएम का कहना है कि विरोध प्रदर्शन से अराजकता होगी और संसद-विधानसभाओं द्वारा पारित कानूनों का पालन करना होगा।
लगता है पीएम इतिहास और महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के प्रेरक उदाहरणों को भूल गए हैं। शांतिपूर्ण प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा के माध्यम से अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध किया जाना चाहिए। यह सत्याग्रह है।’
कब हुआ था लागू
पीएसए को राज्य पूर्व मुख्यमंत्री स्व शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने वर्ष 1978 में लागू किया था। उस समय उन्होंने यह कानून जंगलों के अवैध कटान में लिप्त तत्वों को रोकने के लिए बनाया था, बाद में इसे उन लोगों पर भी लागू किया जाने लगा था, जिन्हें कानून व्यवस्था के लिए संकट माना जाता है।
क्या है पीएसए
इस कानून के अनुसार, दो साल तक किसी तरह की सुनवाई नहीं हो सकती थी, लेकिन साल 2010 में इसके नियम में कुछ बदलाव किए गए। इसमें पहली बार के उल्लंघनकर्त्ताओं के लिए पीएसए के तहत हिरासत अथवा कैद की अवधि छह माह रखी गई और अगर व्यक्ति के व्यवहार में किसी भी तरह का कोई सुधार नहीं होता है तो उसकी सजा दो साल तक बढ़ सकती है।
इसके अलावा अगर राज्य सरकार को ऐसा लगता है कि किसी व्यक्ति के कृत्य से राज्य की सुरक्षा को खतरा है, तो उसे 2 वर्षों तक प्रशासनिक हिरासत में रखा जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के कृत्य से सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो उसे एक वर्ष की प्रशासनिक हिरासत में लिया जा सकता है।
इस कानून के तहत हिरासत के आदेश डिवीजनल कमिश्नर या डिप्टी कमिश्नर द्वारा जारी किये जा सकते हैं। अधिनियम की धारा-22 लोगों के हित में की गई कार्रवाई के लिये सुरक्षा प्रदान करती है। इसके अनुसार हिरासत में लिये गए किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई मुकदमा, अभियोजन या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है।