जुबिली न्यूज डेस्क
दिल्ली सीमा पर पिछले 26 नवंबर से मोदी सरकार के जिन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हीं कानूनों के खिलाफ केरल की विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास किया है।
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्र सरकार इन विवादास्पद कानूनों को वापस ले जिन्हें जल्दबाजी में संसद द्वारा लागू किया गया।
दरअसल केरल के विजयन की सरकार ने किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए एक घंटे के लिए विशेष सत्र बुलाया था।
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की सरकार विधानसभा का सत्र काफी पहले बुलाना चाहते थे, लेकिन राज्यपाल ने पहले सत्र बुलाने की मंजूरी नहीं दी थी। इस पर काफी विवाद भी हुआ था, लेकिन बाद में राज्यपाल ने इस सत्र के लिए सहमति जताई।
केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास किया। विधानसभा में बीजेपी के एकमात्र सदस्य ओ राजगोपाल ने प्रस्ताव से असहमति जरूर जताई लेकिन विरोध में वोट नहीं किया।
इससे पहले विधानसभा में प्रस्ताव पेश करते हुए मुख्यमंत्री विजयन ने कहा, ‘ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जहां केंद्र सरकार द्वारा कृषि उत्पादों की खरीद की जाए और उचित मूल्य पर जरूरतमंदों को वितरित किया जाए। इसके बजाय, इसने कॉरपोरेट्स को कृषि उत्पादों में व्यापार करने की अनुमति दी है। केंद्र किसानों को उचित मूल्य प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है।’
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि यदि किसानों का प्रदर्शन जारी रहा तो केरल बुरी तरह प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि यदि कृषि उत्पाद केरल में आना बंद हो जाए तो राज्य में भूखे रहने की नौबत आ सकती है। उन्होंने किसानों के प्रदर्शन को ऐतिहासिक बताया और अनुरोध किया कि केंद्र किसानों की मांग मानते हुए कृषि कानूनों को रद्द कर दें।
हालांकि, इस प्रस्ताव से उन कानूनों पर कुछ असर नहीं पड़ेगा, लेकिन राजनीतिक रूप से केंद्र की बीजेपी सरकार पर असर पड़ेगा।
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वैसे, केरल के विधानसभा सत्र को बुलाना इतना आसान भी नहीं रहा। इस पर भी काफी विवाद हुआ। यह विवाद वामपंथी सरकार और राज्य के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के बीच रहा।
राज्यपाल ने इससे पहले विवादास्पद कानूनों पर चर्चा करने के लिए 23 दिसंबर को विशेष सत्र बुलाने से इनकार कर दिया था। उन्होंने यह कहते हुए आपत्ति की थी कि मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने संक्षिप्त सत्र के लिए आपातकालीन स्थिति पर उनके द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब नहीं दिया था।
राज्यपाल के इस फैसले की काफ़ी आलोचना हुई थी क्योंकि वह संवैधानिक रूप से मंत्रियों की परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों के प्रति बाध्य हैं। इसके बाद 24 दिसंबर को राज्य मंत्रिमंडल ने विधानसभा बुलाने के लिए एक और सिफारिश भेजी। और इस बार घंटे भर के विशेष सत्र के लिए राज्यपाल ने मंजूरी दे दी थी।
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मालूम हो किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच बुधवार को छठे दौर की वार्ता हुई है। इस वार्ता के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने दावा किया है कि विवाद के चार मुद्दों में से 2 मुद्दों पर सहमति बन गई है।
तोमर ने कहा था कि किसानों की शंका थी कि पराली वाले अध्यादेश में किसानों को नहीं रखा जाना चाहिए, सरकार ने किसानों की इस बात को मान लिया है। तोमर ने कहा कि प्रस्तावित बिजली कानून को लेकर किसानों की कुछ मांग थी, सरकार और यूनियन के बीच में इस मांग को लेकर रजामंदी हो गई है।
फिलहाल केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच अगली बैठक अब 4 जनवरी को होगी, लेकिन इस बीच किसानों का प्रदर्शन जारी है।
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