Saturday - 26 October 2024 - 11:43 AM

अकीदत और एहतराम के साथ निकला शाही जरीह का जुलूस

जुबिली न्यूज़ डेस्क 

लखनऊ। राजधानी में शोकाकुल माहौल के बीच रविवार को परंपरागत तरीके से शाही जरीह का जुलूस बड़ा इमामबाड़ा से निकाला गया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौजे की शक्ल में बनी लगभग 1.5 क्विंटल मोम की बनी जरीह को देखकर अजादार अपने आंसू रोक नहीं सके और सिसकने लगे।

ऐ मोमिनों हुसैन से मकतल करीब है। मरसिया की यह लाइनें उस मंजर की याद दिलाती हैं जब करबला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन दीन-ए-हक के लिए अपनों की कुर्बानियां पेश कर चुके हैं और अपनी मासूम बेटी हजरत सकीना से रुखसत हो रहे हैं…। मरसिया सुन रहे स्याह लिबास में अजादारों को करबला का कयामत का वह दिन याद आ गया जब हजरत इमाम हुसैन और उनके साथी मानवता के लिए कुर्बान हो गए।

रविवार शाम जिला प्रशासन के चाकचौबंद प्रबंध के बीच निकाले गए शाही जरीह के जुलूस में परंपरा के अनुसार शाही बाजा, रोशन चौकी से गूंजती मातमी शहनाई, शाही निशान लिए हाथी, ऊंट का कारवां आगे आगे चल रहा था। इसके पीछे मातमी बैंड हुसैन का गम मना रहे थे। सोजख्वान ..ऐ मोमिनों हुसैन से मकतल करीब है मरसिया पढ़ रहे थे जिसे सुन कर अजादार रो रहे थे।

इसी के साथ हजरत इमाम हुसैन की सवारी दुलदुल, हजरत अब्बास का अलम और छह माह के मासूम अली असगर का झूला भी गमगीन अजादारों को रोने के लिए बेकरार कर रहा था। ताबूत, अलम और झंडों के बीच जब मोम की शाही जरीह निकली तो जुलूस के साथ चल रहे अजादार उसकी जियारत को बेकरार हो रहे थे।

जुलूस में सबसे पीछे चल रहे अंजुमन शब्बीरिया के मातमदार नौहाख्वानी और सीनाजनी कर रहे थे। …ये कहते थे शहेवाला सकीना हम नहीं होंगे, तुम्हे तड़पाएंगे आदा सकीना हम नहीं होंगे को सुनकर लोग जारोकतार रो रहे थे। जुलूस में नवाबी खानदान के लोगों के आलावा जिला व पुलिस प्रशासन के अधिकारी मौजूद रहे।

रविवार की शाम में निकाले गए इस मोम की शाही जरीह के जुलूस से पहले आसफी इमामबाड़े में एक मजलिस आयोजित हुई। मजलिस में रसूल और उनके नवासे हजरत इमाम हुसैन के जीवन पर प्रकाश डालते हुए करबला के शहीदों का जिक्र किया गया।

मजलिस के बाद निकाला गया मोम की शाही जरीह जुलूस छोटे इमामबाड़े में पहुंचकर संपन्न होता है।

अजादारों को शाही जरीह में दिखी रौजे की झलक

ऐतिहासिक जुलूस की शाही मोम की जरीह लगभग 22 फीट ऊंची और दस फीट चौड़ी शाही जरीह की डिजाइन में अजादारों को रौजे की शबीह (झलक) को देखकर जुलूस में मौजूद अज़ादार अपने आंसू रोक नहीं पाए। जरीह को तैयार करने के लिए हुसैनाबाद ट्रस्ट ने 2.55 लाख रुपये का बजट जारी किया था।

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