अभिषेक श्रीवास्तव
पूरा नाम उनका जो भी हो, आमजन उन्हें ‘विश्लेषण’ गुरु की संज्ञा देते हैं। गुरु की खूबी के चलते यह नाम पड़ा है। गुरु हर मुंह से निकली हर बात को उक्त मुंह का विश्लेषण मान लेते हैं। चूंकि प्रत्येक का विश्लेषण विशिष्ट और मौलिक होता है, लिहाजा गुरु का कभी किसी से झंझट नहीं होता। वे परमहंस भाव में निष्कर्ष देते हैं, ‘’ये आपका विश्लेषण है। ये इनका है। मेरा विश्लेषण कुछ और है। जाने दीजिए। बात खत्म। चला जाए।‘’ और रंग-रंग के विश्लेषणों से सजी महफिलें उनके इस ब्रह्मवाक्य के साथ विसर्जित हो जाती हैं।
टंडनजी की ऐतिहासिक अड़ी पर गुरु उस दिन भी जमे हुए थे। बिना चीनी की चाय का ऑर्डर देकर उन्होंने वहां बैठे लोगों को तवज्जो दी तो पता चला कि अगले दिन प्रियंका गांधी की बनारस यात्रा का विश्लेषण चल रहा था। कोई बोल रहा था, इससे बेपरवाह गुरु ने तर्जनी तानते हुए चेताया, ‘’ध्यान रहे, ई तोहार विश्लेषण हव।‘’ बोलने वाला चटक गया, ‘’हां भाई, हमरे हव।‘’ ‘’हां, आगे बोलिए’’- गुरु ने आदेश दिया।
प्रियंका गांधी कितनी सीटों पर असर डाल सकती हैं? सवाल उछला और धड़ाम से गिर गया। किसी ने नहीं लौका। गुरु खड़े हुए और बोले, ‘’आप लोग मुझे हलके में ले रहे हैं। सन बानबे की बात है जब मैं राजनीति से रिटायर हुआ था। उसके बाद आज मैंने ये कुरता निकाला है। आप समझते हैं इस विश्लेषण को?” ‘’कल सब समझ में आ जाएगा, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों से काशी निपटना जानती है’’- पड़ोसी जिले के एक पत्रकार ने टेक ली।
गुरु बिदक गए। ‘’और कहां लेकर पैदा होते चम्मच? देखिए, आपका विश्लेषण एक है। इनका दूसरा…”, उनके इतना कहते ही लोगों ने चाय की आवाज़ लगानी शुरू कर दी। मामला विसर्जन तक पहुंच चुका था, केवल चाय बाकी थी। गुरु ने जल्दी से चाय सुड़की और कट लिए। अगले दिन प्रियंका को आना था। तैयारियां बाकी थीं।
अगला दिन भी बीता। प्रियंका आईं और गईं। देर शाम गुरु बेदम होकर अगले दिन होली के इंतजार में एक गोला गटक के सुबह तक के लिए मर गए। पड़ोस के बच्चों की चिल्ल-पों से आधे में नींद खुली तो काशीवार्ता का बवंडर अंक सामने था। बवंडर उनके दिमाग में चल रहा था, मास्टहेड पर ध्यान नहीं गया। पहला पन्ना पढ़ते ही उनका माथा ठनका- ‘’प्रियंका की चरण रज ऊंचे दामों पर बेच रहे हैं राजेश मिश्रा।‘’ उन्होंने दोबारा प़ढ़ा।
पूर्व सांसद मिश्रा की फोटो भी थी। पता चला कि प्रियंका गांधी के पैरों की धूल की चुटकी भर का दाम 1800 रुपये है और राजेश मिश्रा उसका कारोबार कर रहे हैं। पहले तो उन्हें गुस्सा आया, फिर दूसरा पन्ना, तीसरा पन्ना, चौथा पन्ना… एक के बाद एक बवंडरिया खबरें पढकर गुरु का ब्रह्माण्ड सुलग गया। लौंडे को उन्होंने आवाज लगायी- अबे, गांडीव दे देले हउवे का? उधर से कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला।
काशी की सनातनी पत्रकारिता पर अटूट विश्वास रखने वाले गुरु आगे बढ़े तो उनके ब्लाडर ने पंद्रहवें पन्ने की लीड पर जोर मार दिया: ‘’केवल ढाई रुपये के लिए बिज्जी गुरु ने कांग्रेस छोड़ी।‘’ उन्होंने अखबार की भोंगली बनाकर बगल वाली मुकिया में खोंस दिया और लुंगी समेटते हुए बुदबुदाने लगे, ‘’बताइए, क्या जमाना आ गया है, ब्राह्मण धूल बेच रहा है और बनिया ढाई रुपये में बिक रहा है। ऐसे में झांट जीतेगी कांगेस?’’ और कहते–कहते वे घर से बाहर निकल कर नाली किनारे लुंगी समेट कर बैठ गए। ब्लाडर फुल हो चुका था। लघु-निवृत्ति के पहले चरण में ही खल्वाट पर एक गुब्बारा आकर लगा। गुरु पानी-पानी हो गए। अपमान का घूंट बिना पिये ही वे निवृत्त हुए और अपराधियों की शिनाख्त के लिए पीछे मुडे।
पीछे खड़े लुहेड़ों ने नारा लगाया, ‘’बिसलेसण गुरुवा भो… के…।‘’ सुबह-सुबह तर हुए बदन ने उनकी तन्द्रा तोड़ दी। उन्हें याद हो आया कि प्रियंका तो कल आई थीं, आज तो होली है। देश की बैलट हो चुकी युवा ताकत का सम्मान करते हुए वे वापस कमरे में आए। मुकिया से काशीवार्ता निकाला और मास्टहेड देखा। ‘’बवंडर विशेषांक’’ लिखा दिखाई दिया।
पहले पन्ने पर राजेश मिश्रा की तस्वीर देखकर वे मंद ही मंद मुस्कराए और खुद से बोले, ‘’विश्लेषण तो ठीक ही किया है। इन ब्राह्मणों का बस चले तो पूरी कांग्रेस को ही बेच खाएं।‘’ उन्हें मन ही मन राजनीति में अपनी वापसी के फैसले पर गर्व हुआ। गुरु ने लंबी सांस भरी और एक बार फिर प्रियंका गांधी का सपना देखते-देखते मर गए।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं , इस व्यंग लेख में वाराणसी की स्थानीय बोली का प्रयोग किया गया है )