नवेद शिकोह
लोकसभा 2019 की चुनावी जंग मे प्रियंका वाड्रा ने कांग्रेस की उम्मीद बन कर धमाकेदार एंट्री ली थी। दादी इन्दिरा गांधी जैसी उनकी नाक और हेयर स्टाइल। उल्टे पल्ले की साढ़ी.. वही लहजा… बस इन्हीं बातों से कांग्रेसी उम्मीद लगाये थे कि प्रियंका वाड्रा गांधी अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह कांग्रेस को दीर्घायु देने आ गयी है। जबकि सूरत पर भरोसे के बजाय कांग्रेस ने स्वर्गीय इंदिरा गांधी की सीरत और मेहनत को आत्मसात किया होता तो चुनावी नतीजों मे कांग्रेस का इतना बुरा हश्र नहीं होता।
हार के कारण वाली इन बातों को ही महसूस करते हुए ही यूपी कांग्रेस प्रभारी प्रियंका ने अपनी दादी की सीरत से जुड़ी सियासत से सबक लेकर जमीनी संघर्ष शुरू कर दिया है। स्वर्गीय इंदिरा गांधी और स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू तो दूर कोई इनके राजनीतिक विरोधियों के सबक पर ही अमल कर ले तो उसे लाख पराजय भी निराशा नहीं कर सकेगी।
यूपी में समतामूलक विचारों वाली डा.अम्बेडकर और राममनोहर लोहिया की विचारधारा वाली सपा-बसपा जैसे क्षेत्रीय दल पराजय के हैंगओवर या जांच की गाज गिरने के डर मे खामोश बैठे हैं। किंतु प्रियंका सिर पर कफन बांध कर यूपी की जनता के हक़ के लिए सड़को पर उतर आयीं है।
ना संगठन है और ना दूसरे विपक्षी दलों का साथ मिला है, फिर भी लोहिया की तरह प्रियंका जानिबे मंजिल निकल पड़ी है। इस उम्मीद से कि शायद लोग साथ आते रहें और कारवां बनता रहे।
डा. राममनोहर लोहिया के इन सियासी संस्कारों और नसीहतों को भले ही उनकी विचारधारा वाली समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भुला कर सपा को मार रहे हैं लेकिन प्रियंका लोहिया के ऐसे सबक से कांग्रेस को जिंदा करने की कोशिश मे लग गयीं हैं।
ये सच भी है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था मे कोई हारता ही नहीं है। सियासत के दोनो हाथों मे लड्डू होते हैं। किसी को संसद मिलती है तो किसी को सड़क। कोई सियासी पार्टी चुनाव जीत कर संसद जाती है, जो पार्टी नहीं जीतती उसे सड़क मिलती है। जीतने वाला काम करता है और हारने वाले काम करवाते हैं। इसलिए पक्ष-विपक्ष दोनो को ही लोकतंत्र महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देता है।
इधर अरसे बाद भाजपा की जीत के सीजन का सिलसिला जारी है। और विपक्ष हारता दिखाई दे रहा है। जबकि मैंने पहले कहा था कि लोकतंत्र में हार नहीं होती। अपवाद स्वरूप ऐसा हुआ। क्योंकि संसद मे बड़ी संख्या मे ना पंहुच पाने वाले विपक्षी सड़कों के स्पेस को भी खाली छोड़ चुके थे। और संसद के साथ सड़क भी खाली छोड़ने वाले.विपक्षी को हारा हुआ ही माना जायेगा।
यूपी मे इकलौती लोकसभा सीट वाली हारी हुई कांग्रेस की इकलौती प्रियंका वाड्रा गांधी ने सड़क पर उतर कर सियासी स्कोप वाली खाली सड़क के स्पेस पर कब्जा जमाना शुरु कर दिया है।
बिना बिजली और बिना पानी के उमस भरी गर्मी में सड़क पर बैठी प्रियंका मे जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे हौसले दिख रहे थे। ऐसे हौसले जो प्रियंका की दादी और कभी दादी के पिता की बेहद मजबूत सत्ता की चूलें हिला देते थे। डा.लोहिया ने सियासत करने वालों को ये सबक दिया था कि अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है। क्योंकि अकेले आदमी मे भी हिम्मत और हौसला हो तो लोग साथ आते जाते हैं और कारवां बनता रहता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)