गीत सम्राट गोपाल दास नीरज का आज जन्मदिन है. यह इंटरव्यू दो दशक से भी ज्यादा पुराना है. राजभवन के कवि सम्मेलन के बाद होटल के कमरे में नीरज जी के साथ रात-भर बातचीत हुई थी. व्यंग्यकार सर्वेश अस्थाना भी साथ थे. सुबह के चार बज गए तो वह उठ खड़े हुए. नीरज जी बोले एक घंटा और बैठो, फिर तुम लोग घर चले जाना और मैं स्टेशन. चले जाओगे तो सो जाऊँगा और मेरी ट्रेन छूट जायेगी.
इस मुलाक़ात के बाद नीरज जी से मुलाकातों का सिलसिला सा चल निकला. नीरज जी आज नहीं हैं तो वह पल बड़े अनमोल लगते हैं जो उनके साथ गुज़ारे. उन्हें मंचों पर कवितायें पढ़ते देखा. मंच पर अभिनय करते देखा. नवयुग गर्ल्स कालेज में उनके एकल काव्य पाठ के दौरान उन्हें असली हीरो की शक्ल में देखा. आटोग्राफ के लिए उन्हें लोगों से घिरा देखा.
गोपाल दास नीरज जिन्होंने फिल्मों के लिए लिखा. जो सत्ता के करीब रहकर भी सत्ता से दूर रहे. भाषा संस्थान के अध्यक्ष के तौर पर जब उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला था तब भी अपनी जेब से पैसे निकालकर चाय मंगवाकर पिलाते थे.
गोपाल दास नीरज का लखनऊ में सर्वेश अस्थाना से बड़ा ख़ास रिश्ता था. इस रिश्ते की गहराई को समझना हो तो गन्ना संस्थान में नीरज जी नाटक में अभिनय कर रहे थे. हाल में लोग आ चुके थे. इसी बीच किसी बात को लेकर नीरज जी के बेटे और सर्वेश अस्थाना में कहासुनी शुरू हो गई. नीरज जी बीच में आ गए. दोनों को अलग किया क्योंकि शो शुरू होने वाला था. शो के बाद सर्वेश नीरज जी के बगल में बैठे थे और बेटा सामने.
स्मृतियों में इतना कुछ उभर रहा है कि लिखना बंद नहीं होगा. जुबिली पोस्ट के पाठकों के लिए दो दशक से ज्यादा पुराना इंटरव्यू ज्यों का त्यों पेश कर रहा हूँ. इंटरव्यू पुराना है लेकिन पढ़िएगा तो हालात वहीं नज़र आयेंगे जहाँ तब थे.
शबाहत हुसैन विजेता
बाल ठाकरे राष्ट्रवादी व्यक्ति थे लेकिन थोड़ा बहक गये थे। बहके तो अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भी थे लेकिन वह हद से ज्यादा बहक गये थे। बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र का चौधरी बनने की जद्दोजहद की थी तो क्लिंटन ने पूरी दुनिया का चौधरी बनना चाहा था। नतीजा क्या हुआ उनके गुनाहों की गगरी कभी मोनिका लेविंस्की के नाम पर चटकती नजर आयी तो कभी सद्दाम हुसैन के नाम पर फूटती नजर आयी। हिन्दी कविता के काल पुरुष गोपाल दास नीरज ईश्वर को छोड़कर हर विषय पर बड़ी बेबाकी से बोलते हैं। वह कम लोगों से प्रभावित होते हैं लेकिन सद्दाम हुसैन का प्रभाव उनके जेहन पर इस हद तक है कि वह कहते हैं :- ‘बारूद के पहाड़ पर वह नाम लिखेंगे, हम कर्बला का फिर नया पैगाम लिखेंगे, मर्दानगी का जिक्र कहीं जब भी छिड़ेगा, सब लोग बड़े फख्र से सद्दाम लिखेंगे। यह पंक्तियां सुनाते हुए नीरज के चेहरे पर सद्दाम हुसैन के कई रूप तैर जाते हैं। ईराक की सत्ता संभालते हुए अमरीका के सामने न झुकना, सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद भी खुद को शासक मानते रहना, अदालत में सुनवाई के दौरान खुद का परिचय देते हुए ‘आई एम प्रेसीडेंट आफ ईराक कहना और फांसी की सजा हो जाने पर चेहरे पर डर का कोई भाव न आना, फांसी का फंदा खुद ही अपने गले में डालकर मौत को गले लगा लेने के हुनर ने सद्दाम को हिन्दी कविता के काल पुरुष के जेहन में अमर कर दिया है।
भगवान श्रीकृष्ण, राम कृष्ण परमहंस, महावीर, गौतम, बुद्ध, आचार्य रजनीश और मदर टेरेसा गोपाल दास नीरज की गुड बुक्स में हैं। वह इन पर रात भर धारा प्रवाह बोल सकते हैं। कुछ साल पहले नीरज जी से रात भर बात हुई थी और बात करते हुए वह न तो थकते नजर आये थे और न ही नींद उन पर हावी होती नजर आयी थी। हिन्दी कविता के अलावा भी तमाम मुद्दों पर नीरज जी पैनी नजर रखते हैं। विज्ञान कभी नीरज जी का विषय नहीं रहा लेकिन जेनेटिक्स इंजीनियरिंग पर उनकी नालेज किसी वैज्ञानिक से कम नहीं है।
नीरज का मानना है कि कुष्ठ, एड्स टीबी, ब्लड कैंसर और असाध्य रोगों से पीडि़त व्यक्ति को बच्चे पैदा करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। वह कहते हैं कि पपीते तक की नस्ल सुधारने पर शोध हो रहा है। अच्छे जानवर कैसे पैदा हों इस पर वैज्ञानिक मगजमारी कर रहे हैं। विदेशों में अच्छे मनुष्य पैदा करने के लिए ‘स्पर्म बैंक खोले जा चुके हैं। क्लोनिंग के जरिये दूसरे नीरज और आइंसटीन पैदा करने में वैज्ञानिक सफल हो गये हैं तो फिर इसकी क्या जरूरत है कि कुष्ठरोगी भी अपनी जमात बढ़ाता रहे और एड्स पीडि़त भी खतरे की घंटी बजाता रहे। उनका कहना है कि जब विज्ञान के जरिये हम मनचाही योग्यता के बच्चे पैदा कर सकते हैं तो बुद्ध और आइंसटीन क्यों न पैदा करें।
नीरज को हिन्दुस्तान के लिए प्रीस्ट और पालिटीशियन सबसे बड़ा खतरा नजर आते हैं। वह चाहते हैं कि बुद्धिजीवी तबका राजनीति में आये। और माफियाओं को इस क्षेत्र से बेदखल करे। मंडल, कमंडल और कश्मीर की समस्याओं को वह राजनीति की देन मानते हैं। उनका कहना है कि राजनेताओं के बेटे राजनेता तो बन रहे हैं लेकिन क्वालिटी नदारद होती जा रही है। कुर्सी और पैसे की हवस हिन्दुस्तान को छोटे से छोटा करती जा रही है। वह कहते हैं कि अभी हाल में चर्च में जो घटनाएं घटीं वह हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए अंजाम दी गयीं। नेताओं के स्वार्थ ने देश की मुख्य समस्याओं को बनाए और बचाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले हिन्दू-मुसलमान लड़ाए, फिर हिन्दू- सरदार लड़ाए, फिर हिन्दू- इसाई लड़ाए। अब किसको लड़ाएं यह सोचने की जरूरत नहीं है। अब तो 33 फीसदी महिला आरक्षण के जरिये लिंग भेद की लड़ाई शुरू हो चुकी है। नीरज की नजर में लिंग भेद का संघर्ष सबसे खतरनाक संघर्ष होगा।
चेहरे पर हताशा की थकान लाकर नीरज बोलते जाते हैं। मैं बहुत हताश होता हूं जब मंच से थर्ड ग्रेड की कविता सराही जाती है और शानदार कविता श्रोताओं तक आते-आते मर जाती है। मैं तब भी हताश हुआ था जब अपनी चौधराहट कायम करने के लिए अमरीकी राष्ट्रपति ने बसरा पर मिसाइलें छोड़कर हजारों निर्दोषों को मरवा दिया था। गुजरात में जो हालात बने थे उसने भी मुझे हताश किया था लेकिन जब सोचता हूं कि लालची नेताओं के बनाये 33 प्रतिशत आरक्षण के पुल पर चढ़कर महिलाएं जब राजनीति में आएंगी, उनके मासूम बच्चे मां के प्यार को तरसेंगे, पति हीन भावना से ग्रस्त होंगे, संयुक्त परिवार टूटेंगे, स्त्री की हया और हिन्दू समाज के संस्कार टूटेंगे, राजनीति और बराबरी के चक्कर में महिलाएं जब पुरुष बन जाएंगी तो हिन्दुस्तान में होने वाली सबसे बड़ी टूटन को सोचकर मैं सबसे ज्यादा निराश होता हूं।
आज के माहौल में नीरज को कोई संत नजर नहीं आता। वह संत उसे मानते हैं जिसके निकट बैठने भर से मनुष्य के अंदर रूपान्तरण की प्रक्रिया शुरू हो जाए। यह प्रक्रिया नीरज के जीवन में दो ही लोग पैदा कर सके, एक आचार्य रजनीश और दूसरी मदर टेरेसा। 1965 की एक घटना याद करते हुए नीरज जी बताते हैं कि मां ने मुझे एक लिफाफा भेजा जिसमें कोई संदेश नहीं सिर्फ एक गुलाब का फूल था। मैंने जैसे ही फूल हाथ में पकड़ा होंठ बोल उठे, ‘मां मत ऐसे टेर कि मेरा तन अकुलाए- मन अकुलाए।
प्रगति के मामले में हिन्दुस्तान के लगातार पिछड़ते जाने के लिए नीरज ईश्वर को दोषी ठहराते हैं। ईश्वर के सम्बन्ध में उनकी सोच इन पंक्तियों में स्पष्टï होती है:-‘कहते जिसे खुदा वह दिमागों का खलल है, जैसे कि नदी हो के भी सहराओं में जल है। वह चाहते हैं कि जिस ईश्वर की पूजा होती है उसकी मृत्यु हो जाए। साथ ही विश्वास भी जताते हैं कि 21 वीं सदी में ईश्वर का जन्म कर्म में होगा। वैज्ञानिक आधार पर अपने कथन की पुष्टि करते हुए वह कहते हैं कि ईश्वर के मानने वाले यह स्वीकारते हैं कि पदार्थ ऊर्जा में और ऊर्जा पदार्थ में बदल सकती है। इसी प्रक्रिया से मनुष्य का शरीर नष्ट होता है तो आत्मा दूसरा शरीर पा जाती है। ऐसा विज्ञान रोज साबित करता है। वह हमें ऊर्जा के जरिये एक छोटे से कैसेट में बदलता है फिर उसे फैलाकर घर-घर में टेलीविजन के जरिये से पहुंचा देता है।
नीरज चाहते हैं कि मनुष्य अपने चौथाई दिमाग के प्रयोग से ऊपर उठे, अपने को जीते, ईश्वर को मंदिर में नहीं कर्म में तलाशे, शेष तीन चौथाई दिमाग क्रियाशील कर ‘सुपर माइंड डेवलप करे। दिमाग को बुद्ध और कृष्ण की तर्ज पर इस्तेमाल करे। तब वह दिन दूर नहीं जब न तो वह पांच-पांच दिन क्रिकेट की कमेन्ट्री सुनकर वक्त बर्बाद करेगा और न ही रात-रात भर कवि सम्मेलन के लिए जागेगा। नीरज का मानना है कि सरकार दो घंटे से ज्यादा चलने वाले कवि सम्मेलनों पर प्रतिबंध लगाए ताकि इस गरीब का देश का नागरिक कुछ समय अपने देश के विकास के चिन्तन के लिए बचा पाए।
यह सोचकर नीरज बहुत दुखी होते हैं कि सवा अरब जनसंख्या वाले देश में एक भी अखबार ऐसा नहीं जिसका प्रसार 50 लाख से ज्यादा हो। उन्हें यह देखकर शर्म आती है कि एक अखबार पूरी ट्रेन पढ़ लेती है। वह चाहते हैं कि अखबार खरीदने वाले ऐसे लोगों को मुफ्त में अखबार न पढऩे दें जो सिगरेट पर सिगरेट फूंकते हैं लेकिन खबरें पढऩे लिए पैसा नहीं खर्च करते। धर्म, राजनीति, ज्ञान और कला सब कुछ पैसे पर आधारित हो जाने से भी नीरज बड़े निराश दिखते हैं। वह इस बात को हिन्दी साहित्य का दुर्भाग्य मानते हैं कि 73 साल से कविता के मंचों पर सक्रिय और लोकप्रिय नीरज के काव्य संग्रह ग्यारह सौ से बाइस सौ की संख्या से ज्यादा कभी प्रकाशित नहीं हुए। वह कहते हैं कि एक-एक मिनट जोड़ो तो शायद चालीस साल मैंने मंचों पर ही गंवा दिये। यह समय रीडिंग रूम में बीतता तो कितना साहित्य लिख जाता। वह इसे शर्म की बात मानते हैं कि देश का सबसे लोकप्रिय कवि मंचों पर जीविका तलाशता फिरता है। उनका कहना है कि लंदन के किसी कवि ने इतना लिखा होतो हैलीकाप्टर का मालिक होता।
आज की कविता को नीरज विषय भ्रमित मानते हैं। होली, दीवाली, दर्शन और रोमांस पर लिखी कविताएं वह वक्त की बर्बादी मानते हैं। अपने फिल्मी कैरियर से नीरज पूरी तरह से संतुष्ट हैं लेकिन आज जो फिल्मी गीत आ रहे हैं उन्हें वह गीत की श्रेणी में नहीं रखना चाहते। राजनीति में बुद्धिजीवियों के आने की जोरदार वकालत करने वाले नीरज सबसे अच्छे राजनीतिक दल के सवाल पर बोलते हैं कि किसे अच्छा कहें, सब एक से हैं। प्रीस्ट और पालिटीशियन देश की बर्बादी की जड़ हैं। राजनीति बड़ी घृणास्पद है। यह इस देश को बर्बाद करके छोड़ेगी।
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : इकाना से सीमान्त गांधी तक जारी है अटल सियासत
यह भी पढ़ें : इस राजा में कई राजाओं की रूहें सांस लेती हैं
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : दिल्ली के फुटपाथ पर सो रहा है आख़री मुग़ल बादशाह का टीचर
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : मोहब्बत ऐसे क़ानून को मानने से इनकार करती है
ईश्वर के अस्तित्व को नकारने वाले नीरज को अगले जन्म पर पूरा भरोसा है। भले ही वह उर्दू के शायर बनें लेकिन रहेंगे रचनाधर्मिता में ही। कहते हैं कि कोई भी चीज नष्ट नहीं होती है। अगले जन्म में वही चीज प्रारब्ध बनती है जो पिछले जन्म का संचय था। मेरी आज की लोकप्रियता 90 बरस की तपस्या नहीं पिछले जन्मों के संचय का योग है। सात सौ पांच जन्म के बाद सिद्धार्थ गौतम बुद्ध बन सके थे। हर व्यक्ति को अगले जन्म का प्रारब्ध अच्छा बनाने के लिए इस जन्म में अच्छे कर्मों का संचय जरूर करना चाहिए।