Monday - 28 October 2024 - 9:54 AM

कई मोर्चों पर करनी होगी तैयारी

रतन मणि लाल

हमारे समाज में आम तौर पर हर समस्या के लिए लोग सरकार की प्रतिक्रिया या मदद की अपेक्षा और फिर उसकी मांग करते हैं। अधिकतर यह मान कर ही चला जाता है कि किसी भी समस्या के लिए कहीं न कही, अंततः सरकार ही जिम्मेदार है, तो फिर उसका हल भी तो सरकार को ही निकलना चाहिए?

इस सोच में वैसे तो कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि हमारे देश व समाज में हमने सरकार को जीवन के हर हिस्से में एक बड़ी भूमिका निभाने को आमंत्रित किया हुआ है। आमंत्रित ही क्यों, बल्कि यह कहना चाहिए कि अपेक्षा की है कि सरकार ही सब कुछ संभालेगी।

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इस परिप्रेक्ष्य में यह सामान्य है कि कोरोना वायरस के संकट में भी बचने, बचाने, जांच कराने और इलाज कराने के लिए लोग सरकार से ही अपेक्षा कर रहे हैं। सरकार और मानव जाति अपेक्षा कर रही है कि चूँकि कोविड19 का संक्रमण अनजाने, अनचाहे, अदृश्य तरीकों से होता है, इसलिए सामाजिक दूरी बनाये रखना और अनजाने संक्रमण के खतरे से बचे रहना ही इस महामारी से दूर रहने का एकमात्र रास्ता है।

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दुनिया भर में प्रभावित देशों की सरकारें सामाजिक दूरी बनाये रखने, इसे लागू करने, संक्रमित हुए लोगों को इलाज दिलवाने, कानून व्यवस्था बनाये रखने, आवश्यक सेवाएँ चलाने व आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने में लगीं है। ऐसी स्थिति में कमजोर वर्ग के लोगों की सबसे बड़ी जरूरत- यानी रोज का भोजन- देने के लिए सरकार ने अपने और स्वयंसेवी लोगों या संस्थाओं के साथ मिलकर हजारों लोगों को रोज दो टाइम का भोजन देना शुरू किया है।

भोजन ही सब कुछ है?

यह मान के चला जा रहा है कि यदि ऐसे लोगों को दो टाइम का भोजन दिया जा रहा है, उन्हें कुछ- कुछ दिनों की जरूरत का राशन दिया जा रहा है, तो उन्हें किसी अन्य चीज की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए, क्योंकि सब कुछ तो बंद है। लेकिन क्या केवल खाना ही एक आम समाज के लिए जरूरी है?

यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब शहरी मध्य वर्ग और उच्च वर्ग के पास तो है, लेकिन अन्य वर्गों के पास शायद नहीं। इस माहौल में कुछ जगहों से घरेलू हिंसा बढ़ने की ख़बरें आ रहीं हैं, क्योंकि इस प्रवृति के आदमी अपनी निराशा घर की महिलाओं पर निकाल रहे हैं। कुछ घरों से बिना कारण पुलिस को फ़ोन करने की ख़बरें आ रहीं हैं क्योंकि लोगों के पास रोज दोहराई जाने वाली दिनचर्या के अलावा कुछ है ही नहीं।

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नशा मुश्किल, अपराध मुश्किल

चूँकि नशे की आदी होने वाले लोगों के पास भी रखा हुआ स्टॉक ख़त्म हो गया है और नया मिल नहीं रहा, इसलिए भी ऐसे घरों में अशांति बढ़ रही है। याद करें, तो कुछ राज्यों में वहां की सरकारों ने शराब को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में रखने का सुझाव दिया है जिससे लोगों को कम से कम इस बहाने शांत तो रखा जा सके।

अपराधिक प्रवृति के लोगों की भी निराशा समझी जा सकती है। जहां घरों में तो लोग लगातार रह रहे हैं और इसलिए घरों में चोरी करना आसान नहीं है, परन्तु दुकाने व शोरूम तो बंद हैं, उनमे तो चोरी या सेंध लगाना आसान हो सकता था क्योंकि कोई गार्ड भी आजकल ड्यूटी पर नहीं हैं।

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लेकिन यह भी नहीं हो पा रहा, क्योंकि चोरी करने के लिए सड़क या गलियों में निकलना तो पड़ेगा और चोरी का सामान लेकर भागना आसान नहीं होगा क्योंकि सड़क पर किसी व्यक्ति या गाडी के दिखने पर पकड़ा जाना आसान है। इस वजह से भी यह माना जा सकता है कि कम से कम समाज के इस वर्ग में तो निराशा व कुंठा तो बढ़ ही रही होगी।

अभी यह संकेत मिल रहे हैं कि जिस तरह से संक्रमण बढ़ रहा है, उस स्थिति में कुछ प्रकार की छूट के साथ लॉक डाउन बढ़ सकता है। कई राज्यों में तो ऐसी घोषणाएं भी हो गयी हैं।

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सबकी हो भूमिका

इसीलिए जरूरी है कि सरकार के अलावा भी लोग इस स्थिति से निबटने के लिए प्रभावित लोगों को तैयार करें। सच है कि सरकार व पुलिस के पास स्थिति को संभाले रखने की बड़ी जिम्मेदारी है, लेकिन प्रभावित लोगों की मानसिक स्थिति को सामान्य बनाये रखने में सब लोगों को कोई भूमिका निभानी पड़ेगी। नशे की तलाश या अपराध से ही जीवन यापन करने वाले तत्वों के अनियंत्रित हो जाने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

कुछ देशों से ख़बरें आ रही हैं कि लोग बंदूकें और अन्य अस्त्र खरीद रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है चीजों की कमी होने पर, स्थिति बिगड़ने पर या उनमे छूट दिए जाने पर, लूट या अपराध की घटनाएँ बढ़ सकती हैं।

हमारे देश व समाज के लिए भी यह अप्रत्याशित समय है। यही समय है कि इस सामाजिक आपातकाल के आगे बढ़ने के साथ, इसे सँभलने के बाद की स्थिति के लिए भी तैयारी की जाए।

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डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)
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