शबाहत हुसैन विजेता
टीपू सुल्तान की तलवार का लोहा ब्रिटिशर्स भी मानते थे। मैसूर पर जब तक टीपू का परचम फहराता रहा तब तक ईस्ट इंडिया कम्पनी की कर्नाटक में इंट्री नहीं हो पाई। वह शेर-ए-मैसूर कहलाता था। उसकी सेना में मज़हब नहीं बहादुरी देखकर भर्ती होती थी, इसी वजह से टीपू की सेना में मुसलमानों की तरह हिन्दुओं की भी बड़ी तादाद थी।
टीपू ने सिर्फ 17 साल हुकूमत की लेकिन इन 17 सालों में अंग्रेज़ अफसर उसके नाम से थर्राते थे। उसकी सेना यूरोप की सेना से टक्कर लेती थी। टीपू ने अपनी सेना में रॉकेट तक शामिल किए थे। 17 साल की हुकूमत में टीपू सुल्तान ने 34 मन्दिरों को जागीरें दीं। मन्दिरों को बड़े पैमाने पर दान दिए। कर्नाटक के कई मन्दिरों में लगे शिलालेख आज भी उसका यशोगान कर रहे हैं।
टीपू सुल्तान जब तक जिया उसने गोरों की अधीनता स्वीकार नहीं की। सबको साथ लेकर चलने का फन उसे आता था लेकिन वह नहीं जानता था कि अपनी मौत के 220 साल बाद वह सियासत का मोहरा बन जायेगा। उसे हिन्दू विरोधी और अत्याचारी शासक करार दिया जाएगा, उसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानने तक से इनकार कर दिया जाएगा। नई नस्लें अपने स्कूल के कोर्स में उसका नाम पढ़ने को तरस जाएंगी।
कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार अपने राज्य के बोर्ड पाठ्यक्रम से टीपू सुल्तान का नाम हटाने जा रही है। आने वाले दिनों में वह टीपू सुल्तान के नाम पर बनी सरकारी इमारतों के नाम भी बदल दे तो ताज्जुब नहीं होगा। येदियुरप्पा ने टीपू सुल्तान के नाम के चैप्टर हटाने के लिए आरएसएस की सहमति भी हासिल कर ली है। दरअसल संघ ने टीपू सुल्तान को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं माना है और उसे हिन्दू विरोधी और मन्दिरों का आक्रमण कारी करार दिया है।
टीपू सुल्तान के इतिहास पर चर्चा करने से पहले ज़रूरी है कि येदियुरप्पा के इस फैसले के पीछे छिपी मंशा भी समझ ली जाए। दरअसल येदियुरप्पा ने कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने के लिए जिस तरह से ज़िद पकड़ी और एन केन प्रकारेण कैसे भी जल्दी से जल्दी हुकूमत हासिल करने के लिए जो चालें चली थीं, उसकी वजह से बीजेपी की देश भर में किरकिरी हुई थी। उस घटनाक्रम की वजह से केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार भी उनसे खासी नाराज़ है। येदियुरप्पा ने टीपू सुल्तान कार्ड चलकर खुद को हिन्दुओं का हिमायती साबित करने के लिए जो तैयारी की है उसमें उठे विरोध के स्वर येदियुरप्पा सरकार पर आने वाले कुछ महीने संकट को टालने वाले साबित होंगे।
येदियुरप्पा जानते हैं कि टीपू सुल्तान को छेड़ने का मतलब होगा विरोध का तीखा स्वर। विरोध के स्वर उठेंगे तो येदियुरप्पा के कामकाज पर चर्चा थम जाएगी। सरकार में आने के लिए चली गई उनकी चालों को कुछ वक्त के लिए लोग भूल जाएंगे। लोगों को सिर्फ यही याद रहेगा कि जिस मुसलमान बादशाह ने हिन्दुओं का कत्लेआम किया और मन्दिरों को नुक़सान पहुंचाया उसे मिलने वाला गलत सम्मान येदियुरप्पा ने छीन लिया है।
टीपू सुल्तान पर सियासत करने वाले उन 34 मन्दिरों का इतिहास कैसे बदलेंगे जो आज भी टीपू सुल्तान से मिली जागीरों के भरोसे चल रहे हैं। श्रीमातेश्वर मन्दिर में रखे टीपू सुल्तान के रत्न जड़ित कप को सरकार आखिर कहां छुपायेगी। टीपू सुल्तान द्वारा स्थापित किये गए हरे शिवलिंग का येदियुरप्पा क्या करेंगे।
इतिहास के साथ छेड़खानी करने वाले आखिर यह कैसे भूल सकते हैं कि 1791 में जब श्रृंगेरी शंकराचार्य के मन्दिर और मठ को मराठा सैनिकों ने लूट लिया था तब टीपू सुल्तान ने न सिर्फ दुःख जताया था बल्कि मन्दिर को काफी धन भी दिया था। इतना ही नहीं इसके बाद टीपू जब तक ज़िन्दा रहे शंकराचार्य के सम्पर्क में रहे और मन्दिर की लगातार मदद करते रहे। मेलकोट मन्दिर में लगा शिलालेख यह बताता है कि टीपू सुल्तान ने मन्दिरों को सोने-चांदी के बर्तन भेंट किये।
कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार शिक्षा के पाठ्यक्रम से टीपू सुल्तान को बेदखल कर सकती है। सरकारी इमारतों से टीपू के नाम को मिटा सकती है लेकिन वह इस इतिहास को नहीं बदल सकती कि टीपू सुल्तान वह पहला शख्स था जिसने दलितों और पिछड़ों को सबसे पहले अधिकार दिलाये थे।
1782 से 1799 तक छोटे से दौर की हुकूमत में टीपू सुल्तान ने गोरों की सेना से चार बड़े युद्ध किये और 99 में हुए आखरी युद्ध में वह शहीद हो गए। अपने ज़िन्दा रहते टीपू ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की कर्नाटक में इंट्री नहीं होने दी।
सिर्फ 49 साल की। ज़िन्दगी जीने वाला फतेह अली खान उर्फ टीपू सुल्तान अपनी ज़िन्दगी की हर सांस अपने हिन्दुस्तान के लिए लेता रहा। टीपू जानता था कि भारत को विदेशी चंगुल में जाने से रोकने के लिए हिन्दू मुसलमान को एक ही माला में पिरोकर रखना होगा।। ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ वह लगातार जंग लड़ रहा था। उसके पास मन्दिर-मस्जिद की सियासत के लिए फुर्सत ही नहीं थी लेकिन अपने देश की आन बान और शान को बचाये रखने की चाह पाले हुए ही वह इस दुनिया से रुख्सत हो गया।
टीपू सुल्तान की शहादत की दो सदियां गुज़र जाने के बाद उनकी कुर्बानियों का जो सिला कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार ने दिया है वह इतिहास के साथ कैसा व्यवहार है यह भविष्य तय करेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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