जुबिली न्यूज डेस्क
प्रसार भारती के अध्यक्ष ने जून माह में समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने पीटीआई को देशद्रोही ठहराया था और उस पर वित्तीय प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी।
इस मामले में खबर यह है कि प्रसार भारती के अध्यक्ष के इस पत्र को प्रसार भारती बोर्ड ने मंजूरी नहीं दी थी।
पीटीआई द्वारा भारत-चीन सीमा पर जारी तनाव के बीच भारत में चीनी राजदूत का इंटरव्यू किए जाने पर प्रसार भारती के अध्यक्ष द्वारा बेहद सख्त लहजे में लिखा यह पत्र भेजा गया था।
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प्रसार भारती के समाचार सेवा प्रमुख समीर कुमार द्वारा पीटीआई के मुख्य मार्केटिंग अधिकारी को भेजे गए पत्र में पीटीआई की हालिया न्यूज कवरेज को राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक और भारत की क्षेत्रीय अखंडता को कम आंकने वाला बताया गया था।
पत्र में लिखा गया था, ‘यह भी उल्लेख किया गया है कि पीटीआई को समय-समय पर संपादकीय खामियों पर सार्वजनिक प्रसारणकर्ता द्वारा चेतावनी दी गई, जिसके परिणामस्वरूप गलत खबर का प्रसार सार्वजनिक हित को नुकसान पहुंचा रहा है।’
उसी दौरान पीटीआई तब दक्षिणपंथी लोगों की आलोचना का शिकार हुआ, जब उसने चीन में भारत के राजदूत का एक ट्वीट चला दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘चीनी सेनाओं को लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के अपनी तरफ वापस जाने की जरूरत है।’
पीटीआई के ट्वीट पर तो चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिस्री और न ही विदेश मंत्रालय ने कोई सवाल उठाया था, पर सरकारी अधिकारियों को यह पसंद नहीं आया था। क्योंकि यह एक संबोधन में प्रधानमंत्री द्वारा किए गए दावे के उलट था जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भारत में कोई भी नहीं घुसा है।
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अब सवाल उठता है कि जब प्रसार भारती बोर्ड ने पत्र को मंजूरी नहीं दी तो सार्वजनिक प्रसारण के शीर्ष अधिकारियों ने किसके कहने पर पीटीआई को वह पत्र भेजा था?
मालूम हो कि पीटीआई देश की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी है। यह एजेंसी 1949 से काम कर रही है। इससे 99 मीडिया संगठन इसकी सेवाएं लेते हैं।
यह खुलासा कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के ‘एक्सेस टू इनफॉर्मेशन प्रोग्राम’ के प्रमुख वेंकटेशन नायक ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन के तहत प्राप्त जानकारी के आधार पर किया है। आरटीआई में यह जानकारी दी गई है कि पीटीआई को भेजे गए पत्र को सार्वजनिक प्रसारणकर्ता ने कभी मंजूरी नहीं दी।
प्रसार भारती से नायक ने पीटीआई से उनकी कथित खामियों को लेकर हुए सभी कम्युनिकेशन की ई-कॉपी, प्रसार भारती के मानकों संबंधी दस्तावेज, पीटीआई से यदि कोई जवाब मिला हो, उसकी प्रति मांगी थीं।
उन्होंने प्रसार भारती से विशेष रूप से ये भी पूछा था कि साल 2020 में दोनों संस्थाओं के अधिकारियों के बीच ऐसा कोई संवाद हुआ है, जिसके चलते उनके ‘संबंधों को जांचने’ की नौबत आ पड़ी?
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उनके इस सवाल के जवाब में 28 जुलाई को प्रसार भारती बोर्ड ने अपने मुख्य जनसंपर्क अधिकारी के माध्यम से जवाब दिया था कि उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार कैलेंडर वर्ष 2020 के दौरान उक्त संचार के जारी होने से पहले प्रसार भारती बोर्ड में इस संदर्भ के तहत कोई मामला नहीं आया था।
प्रसार भारती के सीमित जवाब को लेकर नायक ने द वायर से बताया, ‘पीआईओ की ओर से केवल एक सवाल का जवाब दिया गया है कि पीटीआई को नोटिस भेजने संबंधी फैसले के बारे में उनके बोर्ड को नहीं पता था। बाकी के आरटीआई सवालों को ऑल इंडिया रेडियो और डीडी न्यूज को ट्रांसफर कर दिया गया था, जहां दोनों ने कहा कि उनके पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।Ó
इसके बाद नायक ने अनुत्तरित सवालों को लेकर पहली अपील दाखिल की, तब भी प्रसार भारती ने वह अपील एआईआर और डीडी न्यूज के पास भेज दिया और उन्होंने एक बार फिर से कहा कि उनके पास कोई जानकारी नहीं है।
हालांकि, प्रसार भारती के जवाब से पता चलता है कि प्रसार भारती सचिवालय और न्यूज एजेंसियों के बीच हुए समझौतों की कोई भूमिका नहीं होती है।
इससे यह भी साफ हो जाता है कि समीर कुमार के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह कहें कि प्रसार भारती पीटीआई के साथ संबंधों को जारी रखने की समीक्षा कर रहा है।