प्रमुख संवाददाता
भारत रत्न प्रणब मुखर्जी नहीं रहे. एक निर्विवाद नेता, सभी राजनीतिक दलों में एक जैसा सम्मान हासिल करने वाले प्रणब दा के न रहने से भारत की राजनीति दुखी है. प्रणब मुखर्जी ने पूरी ज़िन्दगी कांग्रेस की सियासत की लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने सभी राजनीतिक दलों की बात सुनी और किसी ख़ास पार्टी से मतलब नहीं रखा. रिटायर होने के बाद जब आरएसएस ने उन्हें अपने कार्यक्रम में नागपुर बुलाया तो वह वहां भी चले गए. संघ के मुख्यालय में भी उन्होंने वही कहा जो उन्हें कहना चाहिए था.
आर्थिक मामलों का उन्हें बहुत अच्छा ज्ञान था. उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री के रूप में मान्यता मिली. वह विदेश मंत्री बने तो अच्छे विदेश मंत्री साबित हुए. राजीव गांधी के दौर में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किये गए. लगातार अनदेखी से दुखी प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन भी किया लेकिन जब राजीव गांधी ने उन्हें सम्मान से बुलाया तो अपने दल का कांग्रेस में विलय भी कर दिया.
प्रणब मुखर्जी को सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान भी मिला. राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी जब अनिच्छा से राजनीति में शामिल हुईं तो प्रणब मुखर्जी ने उनके एडवाइज़र के रूप में काम किया. विपरीत परिस्थितियों में वह सोनिया गांधी को बताते थे कि ऐसे हालात में इंदिरा गांधी कैसे निबटती थीं.
प्रणब मुखर्जी भारत के तेरहवें राष्ट्रपति बने लेकिन शायद यह अकेले राष्ट्रपति हों जिनके नाम पर वर्ष 2006 में भी विचार किया गया था लेकिन तब इसलिए सहमति नहीं बन पाई क्योंकि यह माना गया कि अभी उन्हें सक्रिय राजनीति में रहना चाहिए. मंत्रिमंडल में उनकी ज़रुरत को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार नहीं बनाया गया.
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राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम और लड़कियों की शिक्षा के लिए अलग से धन का प्राविधान प्रणब मुखर्जी की ही सोच का नतीजा है. वर्ष 2008 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था. पद्मविभूषण देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है.
दो साल पहले आरएसएस ने प्रणब मुखर्जी को नागपुर आमंत्रित किया तो कांग्रेस ने आपत्ति जताई लेकिन कांग्रेस की आपत्ति को दरकिनार कर प्रणब मुखर्जी नागपुर गए और संघ के कार्यक्रम में शामिल हुए. प्रणब मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम में कहा कि मैं यहाँ राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझने आया हूँ.