जुबिली न्यूज़ डेस्क
सूबे की दलित राजनीति में अभी तक सबसे बड़ा चेहरा मायावती को ही माना जाता रहा है। यही नहीं इसी दम पर बसपा प्रमुख ने चार बार सूबे के मुख्यमंत्री का पद भी संभाला। आज वो अपना 65वां जन्मदिन मना रही हैं, लेकिन मौजूदा दौर में उनकी पार्टी चारों खाने चित्त हुई पड़ी है। अब न तो पहले की तरह मायावती जमीनी संघर्ष करती नजर आती हैं और न ही अपने कैडर के साथ संवाद स्थापित कर पा रही हैं।
प्रदेश में भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर के सक्रिय हो जाने को भी उनकी दलित राजनीति प्रभावित होने का एक बड़ा कारण माना जा सकता है। बसपा के लगातार गिरते जनाधार की वजह से पार्टी के सामने ये सवाल उठ रहा है कि बसपा प्रमुख मायावती के बाद इसकी बागडोर किसके हाथों में होगी.. या फिर मायावती किसे अपना उत्तराधिकारी बनाएंगी? उनके 65वें जन्मदिन पर एक बार ये सियासी चर्चा गरम है क्या 2022 चुनाव से पहले मायावती इस बारे में कोई संकेत देंगी?
हालांकि बसपा प्रमुख ने कई बार इसके संकेत दिए हैं कि वो अपना राजनीतिक वारिस किसे बनाएगी? मायावती ने बहुजन समाज पार्टी से अपने भाई आनंद को जोड़ा था लेकिन आय से अधिक संपति के मामलें में वो विवादों में घिर गये। इसकी वजह से आनंद कुमार को लेकर भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा बंद हो गई।
बाद में मायावती ने अपने भतीजे को अपने राजनीतिक वारिस के रूप में आगे बढाया। 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले वह मायावती के साथ सक्रिय भी दिखाई दिए। लेकिन बहुजन समाज पार्टी के नेताओं को ये बात पसंद नहीं आई। इतना ही नहीं पार्टी के कई और भी दलित नेता हैं, जिन्हें मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है।
बहुजन समाज पार्टी में मायावती के अलावा किसी भी नेता को बोलने की इजाजत नहीं है। पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र के अलावा पहले नसीमुद्दीन और आर के चौधेरी पार्टी का पक्ष रखा करते थे लेकिन नसीमुद्दीन और आर के चौधेरी भी पार्टी छोडकर जा चुके हैं बड़े नेताओं के नाम पर बसपा में मायावती के अलावा सतीश चन्द्र मिश्र के अलावा कोई दूसरा नेता नहीं है।
मायावती के भाई आनंद
एक समय था कि जब मायावती के भाई आनंद को उनके राजनीतिक वारिस के रूप में देखा जा रहा था। इसके कयास तब लगाये जाने लगे जब साल 2018 में अम्बेडकर जयंती के मौके पर मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को बसपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था।
तभी मायावती ने कहा था कि मैंने अपने भाई आनंद कुमार को इस शर्त पर बीएसपी में लेने का फैसला किया है कि वह कभी एमएलसी, विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बनेगा। इसी वजह से मैं आनंद को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना रही हूं। लेकिन कुछ ऐसा हुआ जिसकी वजह से मायावती ने उन्हें उनके पड़ से हटा दिया और कहा था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहते हुए अब कोई अपने नाते-रिश्तेदार को पार्टी में पद नहीं देंगी।
ऐसे में अब आनंद मायावती के राजनीतिक वारिस की लिस्ट से बाहर हो गए हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आनंद एक समय नोएडा में क्लर्क हुआ करते थे, पर मायावती जब यूपी सीएम बनी तो उनकी किस्मत भी बदल गई। इसके साथ ही केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर आनंद के साथ-साथ मायावती भी आ गई हैं। मायावती को क्लीन चिट मिल गई, लेकिन आनंद अभी भी जांच के घेरे में हैं।
जब भतीजे आकाश हुए सक्रिय
इसके बाद बसपा प्रमुख मायावती के भतीजे को उनके वारिस के तौर पर देखा जाने लगा।आकाश मायावती के भाई आनंद के बड़े बेटे हैं। साल 2018 से आकाश, मायावती के साथ उनके परछाईं बनकर रहे। रैलियों से लेकर पार्टी नेताओं की बैठक में भी वो शामिल होने लगे थे।
इसके साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव में आगरा की रैली में उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से भाषण भी दिया, लेकिन पहली बार 18 सितंबर 2017 में मेरठ की रैली में मायावती के साथ मंच पर दिखे थे।
ऐसा माना जाने लगा कि मायावती के राजनीतिक उत्तराधिकारी अब कोई और नहीं बल्कि आकाश ही होंगे। आकाश के नाम पर मायावती ने आश्वस्ति महसूस की तो इसके कारण समझे जा सकते हैं।पहला तो यह है कि मायावती लगभग 64 साल की हैं, जिसे राजनीति में बहुत ज्यादा उम्र वो नहीं मानती होंगी।
उन्हें लगता होगा कि अभी 5 से 10 साल और वो राजनीति की पारी खेल सकती हैं। इसलिए मायावती अपने भतीजे आकाश को सानिध्य में रखकर सियासत के हुनर सिखा रही हैं।लेकिन ऐसा करना पार्टी के बड़े नेताओं को पसंद नहीं आया और बड़े बड़े नेताओं ने उनकी पार्टी से किनारा कर लिया।
एक और चेहरा आया सामने
एक समय बसपा प्रमुख मायावती के राजनीतिक उत्तराधिकारी की चर्चा करते हुए कहा था कि उनका उत्तराधिकारी दलित बिरादरी में से ही कोई होगा। उसकी उम्र अभी 18-19 साल है लेकिन ये कोई परिवार के बीच का नहीं है। इसके बाद से बसपा में उस समय मायावती के उत्तराधिकारी के बतौर तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजाराम पर नजर टिकी हुई थी।
राजाराम आजमगढ़ के रहने वाले थे। वो काफी तेज तर्रार बहुजन समाज के मूवमेंट को आगे लेकर चलते थे। हालांकि, मायावती ने एक झटके में बिना किसी कारण के राजाराम को पदच्युत कर पैदल कर दिया और तत्काल उनकी जगह अपने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया था। इसके बाद से ही राजाराम के सियासी भविष्य पर सवाल खड़े हो गए थे।
अब देखना ये होगा कि बसपा के संस्थापक काशीराम पारिवारिक मोह से परे थे क्या वैसा मायावती कर पाएंगी। काशीराम की धारणा थी कि किसी भी मिशन को सफल बनाने के लिए परिवार के प्रति लगाव और जुडाव को खतम कर देना चाहिए ।
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उन्होंने वंचित समाज के लिए अपना पूरा जीवन समर्पण कर दिया था।उन्होंने अपने परिवार के लोगों को पार्टी से दूर रखा और किसी को भी पार्टी में जगह नहीं दी। उन्होंने मायावती को अपना उताराधिकारी इसलिए घोषित किया, क्योंकि उन्होंने बहुजन मिशन को पहुंचाने के लिए संघर्ष किया था।