डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
राजनीति में एक वक्त था जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के नसबंदी कानून ने मतदाताओं के बड़े वर्ग को उनसे दूर कर दिया था , लेकिन आज की भाजपा सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून के जरिए अपने वोट बैंक को पुख्ता करने की योजना पर काम कर रही है।
यूपी की राजनीति में फिलहाल नया शगूफ़ा है जनसंख्या नियंत्रण कानून। यूपी में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि सरकार जल्द ही एक ऐसा कानून लाने वाली है जिसके अनुसार जिस दंपति के दो से ज्यादा बच्चे होंगे उन्हे सरकारी सुविधाओं, सरकारी सब्सिडी,राशन वितरण,प्रदेश सरकार की नौकरी और सस्ते घर की स्कीम से वंचित कर दिया जाएगा।
प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी के लोगों का मानना है कि प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कठोर कानून लाए बिना विकास नहीं हो सकता।
लेकिन जरा गौर से देखेंगे तो इसके पीछे संप्रदायवाद की सियासत साफ झाँकती दिखाई देगी। आरएसएस और उसके आनुषंगिक संगठनों का हमेशा से मानना रहा है कि आम मुसलमानों में ज्यादा बच्चे पैदा करने का चलन है और उसकी वजह से हिंदुओं की संख्या कम हो रही है और मुस्लिमों की संख्या बढ़ रही है। संघ समर्थक हमेशा से इस बात को कहते आए हैं कि ये हालात नहीं नियंत्रित किये गए तो देश में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएगा।
इस बात का तर्क देते हुए सरकार के आँकड़े भी बताए जा रहे हैं जिसके अनुसार 2001 की जनगणना में उत्तर प्रदेश में 80.61 फीसदी हिंदू थे और 18.50 फीसदी मुसलमान, मगर 2011 में हिंदुओं की आबादी घटकर 79.73% और मुस्लिमों की आबादी 19.26% हो गई।
समर्थक आगे कहते हैं कि बीते 10 सालों में मुजफ्फरनगर, रामपुर, बिजनौर और मुरादाबाद जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी करीब तीन फीसदी बढ़ी है। ये वो जिले हैं जहां की राजनीति में पहले से मुस्लिम मतदाताओं का दबदबा है।
लेकिन इन दावों से इतर नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आँकड़े कह रहे हैं कि मुस्लिमों की प्रजनन दर में सबसे ज्यादा गिरावट आई है। वर्ष 2015-16 में हुए सर्वे के अनुसार हिंदुओं की प्रजनन दर में 0.46% की गिरावट हुई लेकिन मुस्लिमों की प्रजनन दर में सबसे ज्यादा 0.79% की कमी देखी गई. ईसाइयों में यह गिरावट 0.35% थी और सिखों की प्रजनन दर में गिरावट 0.37 फीसदी रही।
यानि प्रजननदर में गिरावट का ट्रेंड हर धर्म में है मगर यहाँ भी मुस्लिमों में सबसे ज्यादा है।
चुनावी साल में इस तरह के कानून लाने को विपक्षी दल भी सियासत करार दे रहे हैं । समाजवादी पार्टी के युवा नेता असित यादव का कहना है कि भाजपा हमेशा ही दूसरों पर तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है , मगर सबसे ज्यादा तुष्टीकरण की राजनीति वही करती है। असित का मानना है कि भाजपा इस तरह के शगूफ़ों के जरिए हिन्दू बनाम मुसलमान की अपनी चिर परिचित राजनीति को आगे बढ़ा रही है।
यूपी कांग्रेस के उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह इसे आरएसएस का एजेंडा बताते हैं। विश्वविजय का कहना है कि लंबे समय से मुस्लिम आबादी के बारे में जो नरेटिव बना कर आरएसएस ने मुस्लिमों का भी हिंदुओं को डराया, यह उसी की अगली कड़ी है।
विश्वविजय सिंह कहते हैं कि यदि यह कानून आया तो इसकी सबसे ज्यादा मार दलितों और अति पिछड़ो पर पड़ेगी। दलित और वंचित समुदाय के एक बड़े हिस्से के पास न तो प्रजनन नियंत्रण के साधन है और न ही उन तक पहुँच। सरकार को यदि जनसंख्या की इतनी ही चिंता है तो वह गरीब इलाकों में एक बड़ा जागरूकता अभियान शुरू कर सकती है, मगर भाजपा को सिर्फ समाज के विभाजन की राजनीति करनी है सृजन की नहीं।
इस कानून के बारे में कई और भी सवाल हैं । समाजशास्त्री डॉ. मनीष पाण्डेय इस बात से फिक्रमंद हैं कि ऐसे कानून के लागू होने पर वो कौन सा वर्ष होगा जिसके पहले या बाद में पैदा हुए बच्चों को आधार बनाया जाएगा? मनीष का कहना है कि यदि ऐसा कोई कानून लाया भी जाता है तो उसके पहले सरकार द्वारा स्वास्थ्यकर्मियों के जरिए प्रजनन निरोधक उपायों तक गरीबों की पहुँच सुनिश्चित करानी चाहिए।
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डॉ मनीष पाण्डेय कहते हैं – पढे लिखे समाज में अब ज्यादा बच्चों का चलन वैसे ही कम हो चुका है, बढ़ती महंगाई और एकल परिवारों के कारण लोग छोटे परिवार के सिद्धांत को अपना चुके हैं।पहले माँ बाप इस बात से भी चिंतित रहते थे कि उनका बच्चा बचेगा या नहीं मगर बाल मृत्यु दर में आई गिरावट ने इस चिंता को कहां कर दिया है।
चिंताएं अपनी जगह है और सियासत अपनी जगह। यूपी विधानसभा चुनावों के पहले इस तरह की कोशिश लगातार होती रहेंगी।