जुबिली न्यूज डेस्क
एक ओर देश में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं तो वहीं वैक्सीन को लेकर राजनीति शुरु हो गई है। कोरोना संक्रमण की वजह से महाराष्ट्र की हालत सबसे ज्यादा खराब है। कोरोना की दूसरी लहर के बीच महाराष्ट्र ने संक्रमण पर नियंत्रण रखने के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण की बात उठाई और वैक्सीन की मांग की तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने एक के बाद एक, कई ट्वीट कर उद्धव सरकार को ही आड़े हाथों ले लिया।
कोरोना के खिलाफ पहली लहर हो या वर्तमान में चल रही दूसरी लहर, केंद्र सरकार की रणनीति पर लगातार सवाल उठे हैं। और तो और जब जब भी केंद्र सरकार पर सवाल उठता है तो सरकार, राज्य सरकारों पर जिम्मेदारी डालकर इतिश्री कर लेती है।
महाराष्ट्र में कोरोना की भयावहता किसी से छिपी नहीं है। राज्य सरकार ने वैक्सीन की मांग की तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवद्र्धन ने राज्य सरकार पर सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार कोरोना नियंत्रण करने में विफल है और अफवाह फैलाने का काम कर रही है।
जबकि याद रहे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मुंबई की धारावी झोपड़पट्टी में कोरोना नियंत्रण के लिए मुंबई महानगरपालिका द्वारा किये गए कार्यों को सराहा था। साथ ही इसे एक मॉडल के रूप में अपनाने की बात कही थी। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा क्या हो गया कि केंद्रीय मंत्री टीका उपलब्ध कराने की बात छोड़, राज्य सरकारों की ही खामियां बताने लगे?
मालूम हो कि कोविड-19 को लेकर केंद्र सरकार जो भी दिशा-निर्देश जारी करती है, राज्य सरकारें उसका पालन करती हैं। फिर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री किसकी जिम्मेदारी तय करना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में बने देसी टीके को लेकर अपनी सरकार की खूब पीठ थपथपाई थी। उन्होंने पड़ोसी देशों जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है, को टीके की आपूर्ति कर इसे अपनी डिप्लोमेसी से जोड़ा था।
लेकिन अब आखिर ऐसा क्या हो गया कि वैक्सीन की अतिरिक्त मांग करने या सबको टीका देने की बात करने वाली राज्य सरकारें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के निशाने पर हैं?
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आखिर क्यों दोहरा रवैया अपना रही केंद्र सरकार?
केंद्रीय स्वाथ्य मंत्री हर्ष वर्धन सिंह द्वारा टीका मांगने पर उद्धव सरकार को निशाने पर लेना सवाल खड़ा करता है। सवाल उठता है कि क्या इस टीकाकरण या कोरोना महामारी को भी राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है?
टीके को लेकर जिस तरह का घटनाक्रम या बयानबाजी देखने को मिल रही है वह कुछ ऐसा ही संकेत करती है। मुख्यमंत्रियों की बैठक में प्रधानमंत्री सख्ती से कदम उठाने की बात करते हैं और महाराष्ट्र सरकार जब वीकेंड लॉकडाउन या आंशिक बंद के आदेश जारी करती है तो भाजपा के नेता विरोध प्रदर्शन करते हैं और आंदोलन की बात करते हैं।
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स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने जो आंकड़े दिए और बताया कि महाराष्ट्र, दिल्ली और पंजाब की सरकारों ने अपने राज्यों में पहली डोज के तहत क्रमश: 86, 72 और 64 प्रतिशत कर्मचारियों को ही टीका दिया है जबकि देश के 10 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों में यह आंकड़ा 90 प्रतिशत का है।
उन्होंने कहा कि कोरोना के नियंत्रण के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा जिम्मेदारी से कार्य न करना समझ से परे है। वैक्सीन आपूर्ति की लगातार निगरानी की जा रही है और राज्य सरकारों को इसके बारे में नियमित रूप से अवगत कराया जा रहा है। इसके बावजूद लोगों में दहशत फैलाना मूर्खता है।
तो आंकड़ों के साथ हो रही बाजीगरी
कुछ प्रदेश 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए वैक्सीनेशन शुरू करने की मांग कर रहे हैं, तो इसका मतलब ये लगाया जाना चाहिए कि उन्होंने अपने-अपने राज्यों में सभी स्वास्थ्य कर्मियों, फ्रंटलाइन वर्कर्स और वरिष्ठ नागरिकों का टीकाकरण कर लिया है। लेकिन यह तथ्य बिल्कुल अलग हैं।
दरअसल खुद स्वास्थ्य मंत्री ट्वीट्स में आंकड़ों की बाजीगरी करते नजर आते हैं। वे सिर्फ स्वास्थ्य कर्मचारियों या फ्रंट रनर कर्मचारियों की ही बात कर रहे हैं नाकि सम्पूर्ण टीकाकरण की नहीं।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 6 अप्रैल तक देश में करीब 8 करोड़ लोगों को टीका लगाया गया है जिसमें से अकेले महाराष्ट्र में 81 लाख से अधिक लोगों को टीका लगाया गया। यानी देश में कुल टीकाकरण का यह 10 प्रतिशत से भी ज्यादा है।
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पिछले दिनों मोदी की कोरोना प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मुद्दा उठाया था कि 18 या 25 साल से ऊपर के सभी लोगों को टीका लगाया जाना चाहिए था। उन्होंने इसके पीछे तर्क दिया था कि युवा वर्ग घरों से बाहर घूमता है और संक्रमण फैलाने का काम बड़े पैमाने पर कर रहा है।
और भी राज्य कर चुके हैं मांग
उद्धव ठाकरे की इस मांग का समर्थन दिल्ली, पंजाब और राजस्थान के सीएम ने भी किया था। इस बैठक के दो दिन बाद ही महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा कि उनके राज्य में ज्यादा टीका बचा नहीं है। सिर्फ तीन दिन का ही स्टॉक शेष है। उन्होंने कहा कि केंद्र से वह लगातार टीके की मांग कर रहे हैं और आपूर्ति नहीं मिली तो टीकाकरण बंद हो जाएगा।
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टोपे का यह बयान मीडिया की सुर्खियां बन गया तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने आकर महाराष्ट्र सरकार के कामकाज पर ही सवाल उठा दिया।
लेकिन सवाल यह भी है कि जब केंद्र सरकार पाकिस्तान जैसे देश को निशुल्क कोरोना का टीका भेज सकती है तो अपने ही देश के एक राज्य जो कोरोना से सर्वाधिक पीडि़त है को अतिरिक्त डोज देने की बजाय उसकी कार्य क्षमता पर सवालिया निशान लगा रही है? क्या आपदा में भी राजनीतिक अवसर खोजा जा रहा है?