- प्रवासियों के दर्द पर बिहार में शुरू हुई चुनावी राजनीति
- अचानक सभी राजनीतिक दलों को सताने लगी है प्रवासी मजदूरों की चिंता
- राजनीति के केंद्र में आए प्रवासी मजदूर
प्रीति सिंह
जिस गति से बिहार का तापमान बढ़ रहा है उसी गति से बिहार का सियासी तापमान भी बढ़ रहा है। झुलसती गर्मी और करोनेा महामारी से आम लोग हलकान है तो वहीं राजनीतिक दलों को अचानक से प्रवासी मजदूरों समेत अवाम की चिंता सताने लगी है।
बिहार का सियासी तापमान अचानक नहीं बढ़ा है। तापमान में इजाफा अचानक नहीं हुआ है। बिहार का सियासी तापमान उसी दिन बढ़ने लगा था जिस दिन बिहार में प्रवासी मजदूरों का लौटना शुरु हुआ। मुद्दे की तलाश में बैठी राजनीतिक पार्टियों को बैठे-बिठाए मुद्दा मिल गया और अब वह चुनावी मोड में आ गई हैं।
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बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधान सभा चुनाव होना है। इसकी तैयारी में राजनीतिक पार्टियां साल के शुरुआत से ही जुट गई थी। नीतीश सरकार अपने तरीके से सरकार के कामकाज को जनता के बीच ले जा रही थी तो विपक्षी पार्टियां सकरार को घेरने के लिए मुद्दे की तलाश में जुट गई थीं।
जैसे-जैसे बिहार में लौटने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे प्रदेश का सियासी तापमान बढ़ता जा रहा है। बिहार में प्रवासी मजदूरों का अपने घर लौटना बदस्तूर जारी है। गैर राज्यों को कोई पैदल आ रहा है तो कोई साइकिल से अपने गांव पहुंच रहा है। गांव-घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों की आपबीती बता रही है कि तालाबंदी के कारण उपजे संकट की घड़ी में उनकी पीठ पर हाथ रखने कोई नहीं पहुंचा, लेकिन बिहार में उनका हमदर्द बनने को होड़ सी दिख रही है।
दूसरे राज्यों से लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को सत्तारूढ़ दल बेहतर सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास कर रही है तो वहीं विपक्षी पार्टियां उनके दर्द को कुरेद कर उनका हमदर्द होने का भरोसा दिलाने में जुटी हैं। वजह साफ है, पांच-छह महीने बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। जाहिर है, तमाम दावों के बावजूद दर-दर की ठोकरें खा रहे इन लाखों प्रवासियों के बूते किसी का खेल बनेगा तो किसी का बिगड़ेगा। इतना ही नहीं राजनीतिक बयानबाजी भी हर दिन तीखी होती जा रही है।
क्वारंटीन सेंटरों का ऑनलाइन निरीक्षण
चूंकि बिहार चुनावी मोड में आ गया है तो सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष सभी दबाव में हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज प्रवासी मजदूरों के रहनुमा बनने की कोशिश में लगे हुए हैं, लेकिन जब तालाबंदी काऐलान हुआ और प्रवासी मजदूर पैदल ही अपने घरों के लिए पलायन करने लगे तब वह अपने राज्य में इन्हें लाने के पक्ष में नहीं थे। वह कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा गिना रहे थे।
जब प्रवासियों के कष्ट से जुड़ी मन को विचलित करने वाली खबरें और तस्वीरे आने लगीं और नीतीश सरकार पर चौतरफा दबाव पडऩे लगा, तब भी नीतीश सरकार उन्हें लाने में असमर्थता जताई और संसाधनों की कमी का हवाला दिया। लेकिन जब केंद्र ने उन्हें लाने की व्यवस्था कर दी तो बिहार सरकार को उन्हें वापस बुलाना पड़ा। फिर क्या, सक्रमण न फैले इसके डर से बिहार सरकार ने इन प्रवासियों को चौदह दिन के लिए क्वारंटीन सेंटर में रखने की व्यवस्था की, ताकि पूरे गांव-जवार को कोरोना महामारी से बचाया जा सके।
अब जब बड़ी संख्या में ये प्रवासी अपने गांव पहुंच गए तो एक बार फिर राजनीति के केंद्र में आ गए। राज्य सरकार क्वारंटीन केंद्रों पर बेहतर सुविधा मुहैया कराने में जुट गई वहीं विपक्ष पूरी व्यवस्था को नकारते हुए घर लौटने में हुई उनकी पीड़ा को कुरेदने में जुट गया।
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चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा है प्रवासी श्रमिक
कोरोना संकट के बीच राजनीतिक पार्टियां सीधे तौर पर इसे आगामी विधानसभा चुनाव से जोडऩे से इनकार कर रही हैं लेकिन अंदरखाने यह उनकी चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा ही है। राजनीतिक दलों को यह भलीभांति एहसास है कि आगामी चुनाव में ये प्रवासी किसी का भी खेल बिगाड़ व बना सकते हैं। इसको देखते हुए नीतीश सरकार भी कमर कस चुकी है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देश के तमाम हिस्से में बिहार के फंसे लोगों के लिए चिंतित हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने रेल मंत्रालय से अनुरोध किया था कि प्रवासियों को उनकी ट्रेन की पूर्व सूचना दी जाए ताकि उन्हें भटकना न पड़े और वे किसी भी हालत में पैदल चलने को मजबूर न हों।
नीतीश की इस चिंता के भी निहितार्थ हैं। वे जानते हैं कि जो भी ट्रेन के अलावा पैदल या किसी अन्य साधनों से बिहार आएगा वह व्यवस्था से उतना ही खिन्न एवं आक्रोशित होगा और इसका खामियाजा उन्हें आसन्न विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
चुनावी बिसात बिछनी शुरु
कोरोना महामारी को देखते हुए प्रत्यक्ष तौर पर हर पार्टी अभी विधानसभा चुनाव की तैयारी से इन्कार कर रही है लेकिन परोक्ष रूप से सभी दलों ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है। कोरोना संकट के बीच सियासी हलचल तेज हो गई है। राजनीतिक दलों के बैठकों का भी दौर शुरु हो चुका है।
बिहार में बीजेपी ने अपनी संगठनात्मक गतिविधियां तेज कर दी है। इसी कड़ी में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा ने पार्टी के राज्यस्तरीय कोर ग्रुप की बैठक की जिसमें प्रवासियों की घर वापसी एवं चुनाव की तैयारियों पर चर्चा की गई।
वहीं राज्य के महागठबंधन में भी हलचल तेज हो गई है। सोनिया गांधी ने भी घटक दलों के साथ चर्चा की है जिसमें कोरोना संकट एवं प्रवासियों की स्थिति पर बातचीत हुई। बिहार में महागठबंधन के घटक दलों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) व कांग्रेस के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) व मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) प्रमुख हैं। मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर महागठबंधन के घटक दलों में खींचतान चलती रहती है।
वहीं विपक्षी दलों की गतिविधियों से सत्तारूढ दल के खेमे में हलचल है। कोरोना संकट के इस दौर में प्रवासियों के मुद्दे पर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का कहना है, “राज्य सरकार अभी सर्विस मोड में है, लेकिन विपक्ष चुनाव मोड में है।” सत्ता पक्ष के नेता व मंत्री अपनी प्राथमिकता में कोरोना महामारी से निपटना, प्रवासियों के लिए रोजगार की व्यवस्था करना, को ही प्राथमिकता बता रहे हैं।
बिहार के मुद्दे पर राजनीतिक विश्लेषक सुशील वर्मा कहते हैं- “अगले कुछ दिनों में बिहार में एक अनुमान के मुताबिक करीब बीस लाख श्रमिकों को लौटना है। इतनी बड़ी प्रवासियों की तादाद राज्य के तकरीबन हरेक विधानसभा क्षेत्र में चुनावी गणित को गड़बड़ा सकती है। यह एक बड़ा वोट बैंक है। जातीय समीकरण के हिसाब से भी इनमें पिछड़े, अतिपिछड़े, दलितों व महादलितों की संख्या ज्यादा है। इसलिए इनकी चिंता तो करनी ही होगी चाहे वह सत्तारूढ़ पक्ष हो या फिर विपक्ष।”
वह कहते हैं कि यही वजह है कि नीतीश सरकार अभी अपना जोर बाहर फंसे प्रवासियों को बुलाने व क्वारंटीन सेंटर पर बेहतर सुविधा देने में लगा रही है, जहां से वे अच्छी यादें लेकर अपने घर जाएं।
आंकड़ों के मुताबिक बिहार सरकार चौदह दिन की अवधि में क्वारंटीन सेंटर में रहने वाले हरेक व्यक्ति पर नाश्ता-भोजन, लुंगी-साड़ी, तौलिया, बर्तन, दरी, मच्छरदानी व बिछावन मद में कुल चार हजार रुपये खर्च कर रही है। इसके अलावा जाते समय उन्हें अलग से पांच सौ रुपये भी दे रही है। इतना करने के बाद भी विपक्ष इसे मुद्दा बनाने में जुटा हुआ है।
दरअसल विपक्ष इसे सरकार की विफलता मानते हुए अपने लिए एक अवसर के रूप में देखता है। यही वजह है कि बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित पूरा राजद हमलावर बना हुआ ह।. स्वयं राजद प्रमुख लालू प्रसाद व तेजस्वी इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया में काफी सक्रिय हैं।
7 दिन अपने हौसलों से मुश्किलों को पराजित कर घायल पिता मोहन पासवान जी को साइकिल पर बैठाकर 1200 किमी का सफर तय करने वाली बिहार की जांबाज बेटी ज्योति से बात की। माँ श्रीमती @RabriDeviRJD जी ने फ़िलहाल आर्थिक मदद के साथ-साथ ज्योति की पढ़ाई, शादी और पिता की नौकरी का वायदा किया है। pic.twitter.com/dleVoBvkxH
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) May 24, 2020
प्रवासियों को लुभाने के लिए राजद ने लालू रसोई व तेजस्वी भोजनालय शुरू किया है। तेजस्वी यादव ने अपने ट्विटर हैंडल की तस्वीर तक बदल दी है। प्रवासियों के आने के दौरान की तस्वीरें-वीडियो हों या फिर क्वारंटीन सेंटर की अव्यवस्था की, तेजस्वी उसे अपलोड करने से भी नहीं चूक रहे। हालांकि उसी प्लेटफार्म पर राजग भी उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे रहा है। फिलहाल इस कोरोना संकट में कुल मिलाकर बिहार में राजनीतिक पार्टियां चुनावी मोड में पहुंच गई और वह प्रवासी मजदूरों में ही अपने लिए अवसर तलाश रही हैं।