के पी सिंह
मेट्रोपोलिटिन शहरों में पुलिस कमिश्नर की व्यवस्था लागू करने के बहुप्रतीक्षित विचार को उत्तर प्रदेश में अंततोगत्वा मूर्त रूप मिल ही गया। वैसे तो इसका प्रस्ताव ढ़ाई दशकों से सत्ता के गलियारों में भटक रहा था।
मुलायम सिंह, मायावती और अखिलेश की सरकारों के समय यह प्रस्ताव साकार रूप लेने के किनारे तक पहुंचकर आईएएस लॉबी की असहमति के कारण दम तोड़ गया।
अब इस सिस्टम को लागू करने का काम वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया है। इसका श्रेय मिलने से उनकी सरकार ने एक संदर्भ में ऐतिहासिक महत्व का गौरव अर्जित कर लिया है। वैसे योगी सरकार को भी इस मामले में आखिरी क्षण तक रूकावट का सामना करना पड़ा।
लेकिन मुख्यमंत्री के इसके लिए दृढ़ प्रतिज्ञ होने की वजह से अंत में आईएएस लॉबी तमाम छटपटाहट के बाद भी शांत हो गई। अभी दो शहरों प्रदेश की राजधानी लखनऊ व औद्योगिक राजधानी नोएडा में पायलट प्रोजेक्ट की बतौर इसे अपनाया गया है। देखना होगा कि इन शहरों में यह सिस्टम कितना कामयाब रहता है। इसके बाद अन्य शहरों में भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का भविष्य तय होगा।
ऐसा नहीं है कि कमिश्नर सिस्टम की वजह से प्रदेश की पुलिस में कोई चमत्कार या नया अवतार हो जायेगा। कमिश्नर सिस्टम के बावजूद मुंबई में दाउद इब्राहिम का नेटवर्क पनपा जिसकी बदौलत 1993 में वहां श्रृखलाबद्ध बम विस्फोट जैसी सुरक्षा व्यवस्था की चूलें हिला देने वाली वारदात हुई।
देश की राजधानी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर सिस्टम ने खाकी के निरंकुश और भ्रष्ट रवैये को चरम पर उभारा। लेकिन कुल मिलाकर तस्वीर यह बनी हुई है कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम में कानून व्यवस्था अधिक चुस्त दुरूस्त रहती है। जो भी हो लेकिन नवीनता का संचार करते रहना भी एक ऐसा टोटका है जो प्रशासन में ताजगी बनाये रखने के लिए आवश्यक है।
किसी संवर्ग के अहम के कारण प्रशासन में ठहराव को स्वीकार करना अच्छा लक्षण नहीं है। इस दृष्टि से माना जाना चाहिए कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम का उत्तर प्रदेश में लागू होना कर भला तो हो भला की कहावत चरितार्थ करेगा। 13 जनवरी को अपने दोनों उपमुख्यमंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मीडिया को बुलाकर जोरशोर से इसका ऐलान किया।
दोनों जगह अपेक्षाकृत युवा पुलिस अफसरों को पहला पुलिस आयुक्त बनाया गया है। लखनऊ में पुलिस आयुक्त बनाये गये सुजीत पाण्डेय कुछ समय पहले ही पदोन्नत होकर प्रयागराज के एडीजी बनाये गये थे और वर्तमान में इसी पद पर थे। जबकि नोएडा में पुलिस आयुक्त बनाये गये आलोक सिंह हाल ही में मेरठ रेंज के आईजी से एडीजी के रूप में पदोन्नत हुए हैं।
मुख्यमंत्री के मुताबिक लखनऊ में इसके तहत 40 लाख की आबादी को समेटा गया है। लखनऊ और नोएडा दोनों में पुलिस मेट्रोपोलिटिन के तहत दो-दो नये थाने सृजित किये गये हैं। लखनऊ में 40 थानों को पुलिस कमिश्नर सिस्टम में मान्यता दी गई है तो नोएडा में 24 को।
लखनऊ में पुलिस कमिश्नर के नीचे दो संयुक्त पुलिस आयुक्त आईजी स्तर के बनाये गये हैं जबकि नोएडा में दो संयुक्त पुलिस आयुक्त डीआईजी स्तर के हैं। लखनऊ में एसपी स्तर के दस डीसीपी और नोएडा में सात डीसीपी होंगे।
अन्य प्रदेशों की तुलना में उत्तर प्रदेश में अभी पुलिस कमिश्नरों को कुछ कम अधिकार दिये गये हैं। जिसकी वजह से आबकारी, सराय व सिनेमा के लाइसेंस देने का अधिकार अभी भी पुलिस की बजाय प्रशासनिक मजिस्ट्रेटों के पास ही रहेगा।
पुलिस कमिश्नरों को जो अधिकार दिये गये हैं उनमें थाना बदर और जिला बदर जैसी कार्रवाइयां अनैतिक व्यपार अधिनियम, पशु क्रूरता निवारक अधिनियम, कारागार अधिनियम, अग्निशमन, सेवा अधिनियम, अग्नि निवारण व अग्नि सुरक्षा अधिनियम और गैंगस्टर एक्ट के अलावा धारा 144 लागू करने की शक्तियां उसके पास आ गई हैं।
पुलिस आयुक्त के पास किसी बंदी को 7-8 दिन के लिए पेरोल पर छोड़ने का अधिकार भी रहेगा। शस्त्र अधिनियम पर अभी टकराव की स्थिति बनी रहेगी। शस्त्र लाइसेंस देने की शक्ति भी पुलिस को दी जायेगी या नहीं इस पर संशय बना हुआ है। दिल्ली में होमगार्ड विभाग पुलिस कमिश्नर के नियंत्रण में है। उत्तर प्रदेश में भी इसे लेकर विचार नहीं हो पाया है।
सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि पुलिस आयुक्त प्रणाली से कोई अतिरिक्त वित्तीय भार नहीं पड़ेगा। आईपीएस व पीपीएस संवर्ग के आवश्यक पद इस प्रणाली में समायोजन से भरे जाने हैं। अन्य संसाधनों को भी वर्तमान बजट से ही पूरा किया जायेगा।
दोनों कमिश्नरियों में नियुक्त अधिकारी
लखनऊ – सुजीत पाण्डेय कमिश्नर, नवीन अरोडा संयुक्त पुलिस आयुक्त कानून व्यवस्था, नीलाब्जा चैधरी संयुक्त पुलिस आयुक्त अपराध और मुख्यालय, सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी, रईस अख्तर, चारू निगम, दिनेश सिंह, सोमेन वर्मा, शालिनी, प्रमोद कुमार तिवारी, पूजा यादव, अरूण कुमार श्रीवास्तव, ओमप्रकाश सिंह सभी डीसीपी।
नोएडा (गौतमबुद्धनगर)- आलोक सिंह कमिश्नर, अखिलेश कुमार अपर पुलिस आयुक्त कानून व्यवस्था, श्रीपर्णा गांगुली अपर पुलिस आयुक्त अपराध व मुख्यालय, नितिन तिवारी, हरीशचन्दर, बृंदा शुक्ला, संकल्प शर्मा, मीनाक्षी कात्यान, राजेश कुमार सिंह और राजेश एस सभी डीसीपी।
छह-छह महीने बाद पुलिस कमिश्नर सिस्टम की समीक्षा होगी। जून में जब पहली समीक्षा होगी तब लखनऊ और नोएडा में इसके परिणाम अच्छे पाये गये तो तत्काल कानपुर, वाराणसी, गाजियाबाद और गोरखपुर में भी पुलिस कमिश्नरी का ऐलान हो सकता है।