वत्सला पाण्डेय
1.
प्रेम में डूबी स्त्री
याद नही रखती पग के शूलों का
याद नही रखती तितली और फूलों का
याद नही रखती दिन, दोपहर ,साँझ और रात
याद नही रहता उसे सावन, बदरा और बरसात..
प्रेम में डूबी स्त्री
रहती है हरदम अलसायी
इधर-उधर तलाशती है तनहाई
घर के कोने कोने में रख आती है अपनी महक
कोयल की बोली में सुनती रह जाती है इश्क़ की चहक
प्रेम में डूबी स्त्री
बन जाती है प्रबल प्रवाह की नदी
भूल जाती है रूढ़िवादी जंजीरो भरी क्रूर सदी
छुपा लेती है पुस्तक के बीच प्रेमी की मनभावनी तस्वीर
वो पसन्द करती है शीरी को, लैला को पर बनना चाहती है हीर
प्रेम में डूबी स्त्री
सबसे अलग नज़र आती है
बिन बात के हरदम मुस्कुराती है
उसे पता होता है लोगो के तीखे व्यंग-बाण
वो जानती है दुनिया ने तान रखा है उसपे तीर-कमान
प्रेम में डूबी स्त्री
होती है सरल ,सहज ,और भावुक
दुनिया भर से अलग होते है उसके सुख
वो रखती है विश्वास प्रेमी के छोटे से छोटे वादे पर
उसे होता है पूरा भरोसा प्रेमी के नेक इरादे पर
प्रेम में डूबी स्त्री
के साथ हमेशा चलना
उसे इसलिए कभी मत छलना
उसकी बातो से उसके हृदय को जानना
उसके प्यार को देव प्रदत्त सौभाग्य मानना
प्रेम में डूबी स्त्री देखो शायद तुम्हारे आस-पास ही हो
2
कत्थई आँखों के
नीले सपने बन कर
भूल जाना तुम……
इश्क की कोरी स्लेटो पर
तमाम वायदे लिखकर
भूल जाना तुम…..
मुस्कुराना,बतियाना
फिर आदत बनकर
भूल जाना तुम…..
भूल जाना
भोगा हुआ प्रेम
और प्रतीक्षारत मन…