पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की रविवार (25 दिसंबर) को 98वीं जयंती है। इस मौके पर दिल्ली में उनके स्मारक स्थल ‘सदैव अटल’ पर प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया है।
Tributes to Atal Ji on his Jayanti. His contribution to India is indelible. His leadership and vision motivate millions of people. pic.twitter.com/tDYNKiGXxj
— Narendra Modi (@narendramodi) December 25, 2022
पीएम नरेंद्र मोदी पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी की जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंचे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी अटल बिहारी वाजपेयी के समाधि स्थल सदैव अटल पर पुष्पांजलि अर्पित की।आइये जानते उनके पांच बड़े कविताओं के बारे में जिसे पढ़कर उन्होंने अपने भाषणों में छाप छोड़ी।
Delhi | President Droupadi Murmu, Vice-President Jagdeep Dhankhar and Prime Minister Narendra Modi pay floral tribute at ‘Sadaiv Atal’ on former PM Atal Bihari Vajpayee's birth anniversary. pic.twitter.com/sIpjzeUmNL
— ANI (@ANI) December 25, 2022
1- गीत नया गाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं।
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर
व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं।
2- क्या खोया, क्या पाया जग में
क्या खोया, क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिकायत,
यद्यपि छला गया पग-पग में,
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें।
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी,
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएं,
यद्यपि सौ शरदों की वाणी,
इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें।
जन्म-मरण का अविरत फेरा,
जीवन बंजारों का डेरा,
आज यहां, कल कहां कूच है,
कौन जानता, किधर सवेरा,
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें।
अपने ही मन से कुछ बोलें।
3- एक बरस बीत गया
एक बरस बीत गया,
झुलासाता जेठ मास.
शरद चांदनी उदास.
सिसकी भरते सावन का.
अंतर्घट रीत गया.
एक बरस बीत गया।
सीकचों मे सिमटा जग.
किंतु विकल प्राण विहग.
धरती से अम्बर तक.
गूंज मुक्ति गीत गया.
एक बरस बीत गया।
पथ निहारते नयन,
गिनते दिन पल छिन,
लौट कभी आएगा,
मन का जो मीत गया,
एक बरस बीत गया।
4- जीवन बीत चला
कल कल करते आज,
हाथ से निकले सारे,
भूत भविष्यत की चिंता में,
वर्तमान की बाजी हारे।
पहरा कोई काम न आया,
रसघट रीत चला,
जीवन बीत चला.
हानि लाभ के पलड़ों में,
तुलता जीवन व्यापार हो गया,
मोल लगा बिकने वाले का,
बिना बिका बेकार हो गया।
मुझे हाट में छोड़ अकेला,
एक एक कर मीत चला,
जीवन बीत चला,
5- सच्चाई यह है कि
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं, ,मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
जो जितना ऊँचा,
उतना एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।