कृष्णमोहन झा
देश में लोकसभा चुनाव अभियान जोर पकड़ने लगा है। अत एव केन्द्र की सत्ता में आसीन बीजेपी और विरोधी दलों के मध्य आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला भी अब चरम पर है। विपक्ष बिखरा हुआ है इसलिये विभिन्न विपक्षी दलों के नेता अपने-अपने तरीके से भाजपा एवं मोदी सरकार पर निशाना साध रहे है।
यूपी में सपा, बसपा और रालोद का महागठबंधन जब मोदी सरकार पर निशाना साधता है तो उसकी नजरें अपने निशाना पर कम और कांग्रेस पर अधिक टिकी होती हैं कि कहीं कांग्रेस का निशाना सही न बैठ जाए।
यही हाल कांग्रेस का भी है उसे भी यही चिंता सता रही है कि सपा, बसपा और रालोद कहीं निशानेबाजी में उससे आगे न निकल जाएं। नतीजा यह है कि यह दोनों ही खेमे मोदी सरकार पर निशाना साधने में नाकाम साबित हो रहे है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जब उत्तरप्रदेश में निशाना साधते-साधते थक गए तो केरल जाकर मोदी सरकार पर निशाना साधने लगे।
वहीं, यूपी की जिम्मेदारी अपनी बहन प्रियंका गांधी पर डाल दी। प्रियंका गांधी को लगा कि गंगा की लहरों के बीच नाव पर बैठकर मोदी सरकार पर कहीं बेहतर निशाना साधा जा सकता है सो उन्होंने वाराणसी तक गंगा की लहरों पर नौकायन करते हुए मोदी सरकार पर खूब निशाना साधे।
अब प्रियंका गांधी मोदी सरकार पर निशाना साध रही हैं तो मायावती को लग रहा है कि वह कनफ्यूजन पैदा कर रही हैं। प्रियंका गांधी कहती हैं कि हम सबके निशाने पर केवल मोदी सरकार है, इसमें कनफ्यूजन की कौन सी बात है लेकिन मायावती कह रही हैं कि नहीं आप जनता को कनफ्यूज कर रही है। सारे विरोधी इतने कनफ्यूज्ड हैं कि जनता को उन पर रहम आने लगा है।
पब्लिक है, सब जानती है
विरोधी नेता इस हकीकत को जान बूझकर नजरअंदाज करना चाहते हैं कि ये पब्लिक है, सब जानती है। यही स्थिति पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की है। उनको यह कनफ्यूजन था कि वह पश्चिम बंगाल में यूनाइटेड इंडिया रैली में 20 से अधिक विपक्षी दलों के नेताओं के सामने अपनी ताकत का प्रदर्शन करेंगी तो सारे विपक्षी नेता एक स्वर से कहेंगे कि दीदी आप भावी प्रधानमंत्री हो, हम आपको अपना सर्वसम्मत नेता मानते हैं परंतु रैली में शामिल किसी भी विरोधी दल के नेता ने ऐसा नहीं बोला और तब दीदी का नाराज होना स्वाभाविक था।
उन्होंने गुस्से में कहा कि बीजेपी से तो बाद में निपेटेंगे, पहले तृणमूल कांग्रेस से कांग्रेस शब्द हटाएंगे। उधर राहुल गांधी भी नाराज हो गए वे मोदी सरकार पर निषाना साधते-साधते ममता सरकार पर निशाना साधने लगे। वाममोर्चा तो अब इस हालत में ही नहीं है कि निशाना साधने का साहस जुटा सके।
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने एक दूसरे पर निशाना साधते-साधते भारतीय जनता पार्टी केा राज्य में अपने पैर जमाने का मौका दे दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से कह रहे हैं कि चलो आम आदमी पार्टी के साथ आ जाओ, मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधेंगे।
पहले कांग्रेस को लगा कि यह फायदे का सौदा है लेकिन बाद में वह बिदक गई। उसने कहा कि तुम अपने खेमे से निशाना लगाओ और हम अपने खेमे से निशाना लगाएंगे। नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच एक दूसरे के आयुधों की छीना झपटी प्रारंभ हो गई। यही हाल दूसरे प्रदेशो का भी है। बिहार में नीतीश बाबू पहले अपने बड़े भाई लालू यादव के साथ मिलकर मोदी सरकार पर निशाना साध रहे थे फिर उन्हें लगा कि मोदी जी तो भले आदमी हैं इसलिये मोदी जी पर निशाना साधने की भूल नहीं करना चाहिए। सो वे एक दिन सारे आयुध फेंककर प्रधानमंत्री मोदी के साथ जा खड़े हुए।
मोदी जी ने उन्हें गले लगा लिया। दोनों के मन का मैल धुल गया। अब आरजेडी से कांग्रेस कह रही है कि हमें अपने साथ ले लो, हमारा निशाना देखो परंतु लालू यादव ने कहा कि तेजस्वी से बात करो। तेजस्वी यादव का कहना है कि कांग्रेस का निशाना सही नहीं बैठता इसलिये उस पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता।
उधर शत्रुधन सिन्हा की भी अपनी एक कहानी है, वे पांच साल से भाजपा में रहकर भी अपनी सरकार पर निशाना साध रहे थे। समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे भाजपा में हैं कि राजद के साथ हैं या कांग्रेस उन्हें भा गई है।
लिहाजा जब टिकट वितरण हुआ तो भाजपा ने उनसे कह दिया कि जाओ कहीं और जाकर निशानेबाजी करो। बिहारी बाबू कांग्रेस वालों के पास पहुंचे और बोले के मुझे अपनी पार्टी में ले लो, मैं बहुत अच्छा निशानेबाज हूं। आखिरकार कांग्रेस ने उन्हें पटना साहिब से टिकट दे ही दिया।
पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। विधानसभा चुनावों के पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू भाजपा के खेमे में बैठकर कांग्रेस पर दिन रात निशाना साधते रहते थे। फिर वे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिले और कहा कि पंजाब की जिम्मेदारी मुझे सौंप दो, मैं बहुत अच्छा निशानेबाज हूं परंतु केजरीवाल नहीं माने उनकी अपनी शर्त थी।
सिद्धू खफा हो गए और राहुल गांधी को निशानेबाजी में अपनी प्रवीणता के सबूत दे दिए। सिद्धू को राहुल गांधी ने कांग्रेस में प्रवेश दे दिया। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी सरकार में मंत्री बना दिया लेकिन सिद्धू ने मुख्यमंत्री पर ही निशाना साध दिया और बोले आप भले सेना में कैप्टन रहें होंगे परंतु मेरे कैप्टन तो राहुल गांधी है। बाद में वे पलट गए और बोले कि मेरी निशानेबाजी पर शक मत करो।
फिर पुलवामा में आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों की शहादत के बाद जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सीमा में जाकर एयर स्ट्राइक के द्वारा वहां आतंकी अड्डों को तहस नहस कर दिया और लगभग ढाई सौ आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया तो सिद्धू बोले कि भारतीय वायुसेना के निशाने सही जगह नहीं लगे। हमारे विमान तो पेड़ गिराकर आ गए, ऐसा कहने वालों की कमी नहीं है। आशचर्य की बात तो यह है कि मोदी सरकार पर निशाना साधते-साधते विरोधी दलों के कई नेता सेना पर निशाना साधने से भी परहेज नहीं कर रहे है।
इनमें इंडियन ओवरसीज के मुखिया सैम पित्रोदा भी शामिल है जो देश में संचार क्रांति के जनक माने जाते हैं। वे भारतीय ज्ञान आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं और राहुल गांधी के विदेश दौरों के समय उनके साथ रहते हैं। उन्होने भी कहा है कि भारतीय वायुसेना के निशाने सही जगह नहीं बैठे। यह बात अलग है कि कांग्रेस ने उनके बयानों से पल्ला झाड़ लिया है।
जब निशानेबाजी की बात हो रही है तो कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर शासित कर्नाटक की चर्चा कर लेना भी प्रासंगिक होगा। पिछले साल मई में जब दोनों पार्टियों ने वहां मिलकर सरकार बनाई थी तब वहां मुख्यमंत्री पद पर कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण
समारोह में 21 दलों ने मिलकर संकल्प लिया था कि अब से हम सब मिलकर मोदी सरकार पर निशाना साधा करेंगे परंतु यह संकल्प भुलाने में किसी दल को देर नहीं लगी और सब आपस में ही निशाना लगाने लगे।
यहां तक कि सत्ता में सहभागिता निभा रहे जनता दल सेक्युलर और कांग्रेस ने भी एक दूसरे पर निशाना साधने से परहेज नहीं किया और कांग्रेस ने तो मुख्यमंत्री कुमार स्वामी पर इस कदर निर्ममता से निशाना लगाए कि उनके आंसू निकल आए।
फिलहाल दोनों ने यह तय कर लिया है कि आपस में एक दूसरे पर निशाना साधने के लिये तो बहुत समय पड़ा है अभी हम मिलकर मोदी सरकार पर निशाना साधेंगे। वैसे निशानेबाजी की जब यहां इतने विस्तार से चर्चा हो रही है तो भला शिवसेना का उल्लेख किये बिना लेख की समाप्ति कैसे की जा सकती है।
शिवसेना केन्द्र की मोदी सरकार में अवश्य शामिल है परंतु मोदी सरकार पर निशाना साधने का कभी कोई मौका उसने आज तक नहीं छोड़ा। लेकिन प्रधानमंत्री ने उसके किसी निशाने को कभी इतनी तरजीह ही नहीं दी कि शिवसेना अध्यक्ष यह मान बैठें कि
उनसे अच्छा निशानेबाज कोई दूसरा नहीं है। बहरहाल लोकसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ने के साथ ही निशानेबाजी का यह सिलसिला दिनों दिन और गति पकड़ेगा।लोकसभा के चुनावी रण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कद इतना उंचा दिखाई दे रहा है कि भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा लगाए गए निशाने उन तक सटीक बैठ ही नहीं पा रहे है।
प्रधानमंत्री निःसंदेह लाभ की स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। अपने राजनीतिक कद का फायदा उन्हें निरंतर मिल रहा है। वे जब निशाना लगाते हैं तो वह खाली नहीं जाता। विरोधियों के लिये मोदी की करिश्माई निशानेबाजी चिंता का मुद्दा बन चुकी है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)