सुरेंद्र दुबे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा को लेकर बड़े कसीदे कढ़े जा रहे हैं। खूब वाह-वाही भी हो रही है और प्रधानमंत्री की विदेश नीति का गुणागान भी हो रहा है। भारतीय मीडिया असली बातों को छुपा कर प्रशस्ति गान में लगा हुआ है। यात्रा के दो उद्देश्य थे। पहला अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक समझौता और दूसरा कश्मीर मामले पर पाकिस्तान को अलग-थलग करना।
तो आइए सबसे पहले भारत पाक के बीच चल रहे तनाव की बात कर लेते हैं। पाकिस्तान विश्व में इस समय आतंकवाद का सबसे बड़ा निर्यातक व पोषक बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ह्यूस्टन में इसको लेकर पाकिस्तान को जमकर फटकारा और भारतीय समुदाय की तालियां बटोरीं।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को खुश करने के लिए ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा भी लगा दिया। मोदी साहब ये भूल गए कि अमेरिका वह भारत प्रधानमंत्री के रूप में गए हैं न कि डोनाल्ड ट्रंप के स्टार प्रचारक के रूप में। इसकी तीखी आलोचना भी हुई। अगले वर्ष अगर चुनाव में ड्रेमोक्रेटिक पार्टी का प्रत्याशी राष्ट्रपति बन गया तो भारत के लिए बड़ी असहज स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
बात-बात पर झूठ बोलने के लिए मशहूर डोनाल्ड ट्रंप इतने खुश हो गए कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को ‘फॉदर ऑफ इंडिया’ की पदवी दे दी। हमलोग तो अभी तक यही सुनते आ रहे थे कि फॉदर ऑफ नेशन यानि कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी थे। जाहिर है कि इससे भाजपाई बहुत उत्साहित हुए। मुझे लगता है कि भाजपाईयों को फॉदर ऑफ इंडिया की उपाधि का पेटेंट करा लेना चाहिए।
ट्रंप का क्या भरोसा वह कब अपनी बात से मुकर जाएं। पेटेंट करा लेने से भविष्य में पाठ्यक्रमों में नए राष्ट्रपिता का उल्लेख करने का गौरव आसानी से प्राप्त हो सकेगा। हम चाहें तो मोदी की ह्यूस्टन यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि इसे मान सकते हैं।
एक और बात की चर्चा करना यहां बहुत जरूरी है, जिसकी चर्चा नहीं हो रही है। दुनियाभर में फैले आतंकवाद के लिए मोदी जी पाकिस्तान को गुनहगार बताते रहे। पर ट्रंप ने कहा कि सबसे बड़ा खतरा ईरान है। जाहिर है ईरान खुलेआम अमेरिका को चुनौती दे रहा है तो ट्रंप तो उसी की चर्चा करेंगे। हद तो तब हो गई जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को डांटने के बजाए ट्रंप इमरान से मध्यस्थता कराने लगे।
ईरान को मनाने का जिम्मा इमरान खान को सौंपा गया है। इमरान खान ने सउदी अरब के प्रिंस से भी बात कर अमेरिका और ईरान के बीच सुलह कराने का प्रयास किया। इससे स्पष्ट है कि ट्रंप ने अपना दांव खेला। कश्मीर मुद्दा सुलझाने के बजाए ईरान मुद्दा सुलझाने लगे। अब अगर यह भी मोदी ह्यूश्टन यात्रा की उपलब्धि है तो फिर उपलब्धि की परिभाषा बदलनी पडेगी।
अब जाते हैं भारत और अमेरिका के व्यापार समझौते पर, जो हुआ ही नहीं। भारत चाहता था कि अमेरिका को निर्यात की जाने वाली कुछ वस्तुओं पर जो टैक्स छूट मिलती थी उसे फिर बहाल किया जाए। पर व्यापार में चतुर और अमेरिका फर्स्ट की नीति पर अमल करने वाले ट्रंप ने सेंगा दिखा दिया।
दूसरी छूट अमेरिका स्वयं अपने उत्पाद पर चाहता था, जिसके लिए भारत तैयार नहीं हुआ। यानि मामला टांय-टांय फिस्स रहा। ईवेंट मेनेजमैंट मोदी जी की यूएसपी है, जिसमें वह हमेशा अव्वल रहते हैं। फिर चाहे देश हो या विदेश। इस माने में ह्यूश्टन यात्रा अविस्मरणीय रही।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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