राजीव ओझा
इस बार आजादी की वर्षगांठ कुछ अलग होगी। कश्मीर से काँटा निकल गया, लद्दाख यूनियन टेरिटरी बन गया और अब पीओके की बारी है। वैसे भूटान को मजबूत करने की भी तैयारी है। भारत लगातार पूरब से पश्चिम तक अपनी दीवार को मजबूत कर रहा है। इधर भारत में बहुत कुछ तेजी से घट रहा है। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामला सुनवाई के फाइनल स्टेज में पहुँच चुका है, तीन तलाक अब अपराध की श्रेणी में आ चुका है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय अदालत में कुलदीप जादव के मामले में मुंह की खा चुका है।
मतलब भारत वर्ष फिर से पूरे “फॉर्म” में आ चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 17 अगस्त को भूटान यात्रा पर जा रहे हैं। नरेन्द्र मोदी वहां भूटान नरेश, राजकुमार और प्रधान मंत्री लोटे शेरिंग से मुलाक़ात करेंगे। एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के शुरुआत में ही भूटान यात्रा इस बात का संकेत है कि सरकार “सबसे पहले पड़ोसी” की नीति को कितनी अहमियत देती है। यानी भारत, चीन के सामने एक मजबूत दीवार खड़ी कर रहा।
अब फिर भारत का समय है
न न, यहाँ नरेन्द्र मोदी या बीजेपी की तारीफ़ नहीं हो रही। अगर आप सच्चे देशभक्त हैं तो पार्टी और धर्म से अलग हट कर सोचना होगा। भारत के इतिहास पर नजर डालनी होगी, आपको महसूस होगा कि बात कुछ ऐसी है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
ठीक है, बीजेपी दूसरी बार और मजबूती से सत्ता में आई और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत मेहनती हैं। लेकिन यह मौका बीजेपी या नरेन्द्र मोदी को किसने दिया? जाहिर है आपने। इतिहास गवाह है कि भारत ने बहुत उतार चढ़ाव देखें है। लेकिन हालत बदलते जरूर हैं, कभी कुछ दशकों बाद कभी कई सदियों बाद।
ईसापूर्व की तीसरी और दूसरी सदी का मौर्य साम्राज्य याद है न ? गुप्त काल याद है न जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। शुंग और हर्षवर्धन का भी समय याद है न। गुलामी की दो सदी भी याद होगी, फिर आजादी, चीन से जंग में करारी हार।
लेकिन फिर पाकिस्तान से जंग में पडोसी का नक्शा ही बदल दिया था भारत ने। इसके बाद कश्मीर धीरे-धीरे टीसने लगा और जब दर्द असह्य हो गया तो स्पेशल स्टेटस की सर्जरी करनी पड़ी। घाव धीरे धीरे भर ही जायेंगे। मतलब साफ़ है कश्मीर और लद्दाख की दीवार पहले से अधिक मजबूत होगी।
“सेवेन सिस्टर्स” के बाद अब भूटान
भारत के लिए चीन और पाकिस्तान से लगी सीमा को सुरक्षित करना हमेशा से प्राथमिकता में रहा है। चीन और पाकिस्तान लगातार इसे कमजोर करने के फिराक रहते हैं। पड़ोसियों के मंसूबे को समझते हुए भारत ने धीरे धीरे अपनी सीमाओं को सुरक्षित किया।
एक समय था जब “सेवेन सिस्टर्स” कहे जाने वाले पूर्वोत्तर भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम में से कुछ इलाके अलगाववाद और आतंकवाद से जूझ रहे थे। इनका असर पूरे पूवोत्तर भारत पर पड रहा था।
भारत ने 1975 में सिक्किम को भारत गणराज्य में शामिल किया तो भी इसका काफी विरोध हुआ था। इसके बाद भारत सरकार धीरे धीरे पूर्वोत्तर के विकास पर खास ध्यान दिया, वहां के लोगों को राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल किया और नतीजा आपके सामने है। अब बचे नेपाल और भूटान। इन देशों पर चीन की नजर है। चीन नहीं चाहता कि ये देश भारत के बहुत करीब जाएँ। लेकिन भारत की लगातार इस पर नजर है।
इसी क्रम में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी 17 अगस्त को दो दिन की यात्रा पर भूटान जायेंगे। अब भूटान से सम्बन्ध और मजबूत करने का सही समय है। क्योंकि भारत-भूटान के राजनयिक संबंधों को 50 साल पूरे हो रहे हैं। छोटा होने के बावज़ूद यह देश भारत के लिए सामरिक और राजनयिक रूप से काफ़ी मायने रखता है।
सूत्रों के अनुसार भारत भी इसी साल भूटान के ‘जे खेंपो’ की अगवानी-मेज़बानी भी करेगा। जे खेंपो भूटान में राजगुरु का पद है। उनकी नियुक्ति भूटान के राजा करते हैं। अभी इस पद को ट्रुल्कू जिग्मे चोएद्रा संभाल रहे हैं। भूटान-भारत दोस्ती का एक स्मारक स्तूप बनाने की भी योजना है।
भूटान में भारत इसी साल कुछ नई हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना भी शुरू कर सकता है। भूटान को लेकर भारत की सरगर्मी के पीछे इस इलाके में चीन की सक्रियता और लगातार उसकी बढ़ती दख़लंदाजी है। आपको याद होगा पिछले साल भारत और चीन की सीमा पर करीब डेढ़ माह तक आमने-सामने युद्ध की स्थिति बन गए थे।
क्योंकि चीन ने भूटान के अधिकार क्षेत्र वाले डोकलाम पहाड़ियों पर कब्जे की कोशिश की थी। चूंकि भूटान को भारत की ओर से सामरिक सुरक्षा मिली हुई है। साथ ही डोकलाम भारत के लिए भी सामरिक महत्व की जगह है इसलिए भारत को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा था।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)