Thursday - 31 October 2024 - 7:03 AM

जनसंख्या नियंत्रण पर मोदी की नियत पर नहीं उनके साथियों पर है संदेह

न्‍यूज डेस्‍क

लालकिले के प्राचीर से स्‍वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बढ़ती जनसंख्‍या और उसके नियंत्रण पर चर्चा कर एक बड़ी बहस छेड़ दी है। पीएम मोदी ने कहा कि छोटा परिवार रखने वाले लोगों की तारीफ करते हुए कहा कि यह भी देशभक्ति है, जिसके बाद परिवार में कितने लोग हैं और कितने बच्‍चें हैं इस बात को भी देशभक्‍ती और राष्‍ट्रवाद से जोड़ा जाने लगा है।

सोशल मीडिया में इसको एक अलग तरह की बहस शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि पीएम मोदी विकराल होती इस समस्‍या पर जल्‍द कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं और भविष्य में सरकार की ओर से जनसंख्या नियंत्रण कानून लाया जा सकता है।

इन अटकलों को उस समय और बल मिला जब बीते शुक्रवार को जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुके बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय प्रजेंटेशन देने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे। उन्होंने पीएमओ में लंबा-चौड़ा प्रजेंटेशन भी दे दिया। अश्विनी उपाध्याय ने प्रजेंटेशन में कहा कि अटल बिहारी सरकार की ओर से 2000 में गठित वेंकटचलैया आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की सिफारिश की थी।

उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में 11 सदस्यीय संविधान समीक्षा आयोग (वेंकटचलैया आयोग) ने 2 वर्ष की मेहनत के बाद संविधान में आर्टिकल 47A जोड़ने और जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने का सुझाव दिया था, जिसे आजतक लागू नहीं किया गया। अब तक 125 बार संविधान संशोधन हो चुका है, कई बार सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बदला जा चुका है। सैकड़ों नए कानून बनाये गए लेकिन देश के लिए सबसे ज्यादा जरूरी जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाया गया, जबकि “हम दो-हमारे दो” कानून से देश की 50% समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

हालांकि, बढ़ती जनसंख्‍या पर बीजेपी नेताओं के चिंता कोई नई नहीं है। पीएम मोदी से पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समेत कई दिग्‍गज बीजेपी नेता बढ़ती जनसंख्‍या और उसमें भी खास कर मुसलमानो की बढ़ती जनसंख्‍या पर अपनी चिंता व्‍यक्‍त कर चुके हैं। कुछ साल पहले रांची में हुई बैठक में बाकयदा प्रस्‍ताव पारित करके संघ ने सरकार से जनसंख्या नीति की समीक्षा करने की मांग भी की थी।

वहीं, 2016 के आगरा सम्‍मेलन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं की कम होती जनसंख्या पर कहा था कि कौन सा कानून कहता है कि हिंदुओं की जनसंख्या नहीं बढ़नी चाहिए? ऐसा कुछ भी नहीं है। जब दूसरों की आबादी बढ़ रही है तो उन्हें कौन रोक रहा है? यह मुद्दा व्यवस्था से जुड़ा हुआ नहीं है। ऐसा इस वजह से है कि सामाजिक माहौल ही ऐसा है।

 

हालांकि, हम ऐसा नहीं कह रहे कि जनसंख्‍या नियंत्रण के लिए सरकार कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। लेकिन ये भी सच है कि केंद्र में सत्ता संभाल रही भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा आरएसएस तय करती है और उसके बयान-विचार बीजेपी नेतृत्व को ख़ासा प्रभावित करते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये भी उठता है कि क्‍या पीएम मोदी की देश की बढ़ती जनसंख्‍या की चिंता संघ प्रमुख मोहन भागवत और बीजेपी नेताओं की मुसलमानों की बढ़ती संख्‍या की चिंता की कड़ी की हिस्‍सा तो नहीं।

मुसलमानों की प्रजनन दर में हो रही है गिरावट

हालांकि, धार्मिक आधार पर अगर हम आंकड़ों को देखें तो सभी धर्मों में प्रजनन दर में गिरावट देखी जा रही है। 2005-06 और 2015-16 के बीच के कालखंड को देखें तो हिंदुओं में प्रजनन दर 17.8%, मुसलमानों में 22.9%, ईसाइयों में 15%, सिखों में 19%, बौद्धों में 22.7%, जैनियों में 22.1% की गिरावट देखी गई है। ऐसा देखा गया है कि शिक्षा का स्तर जितना बढ़ता है, प्रजनन दर उतना ही घटता है। भारत में खुशहाल जैन समुदाय की प्रजनन दर सबसे कम है।

एनएफएचएस 2015-16 से पता चलता है कि हिन्दू समुदाय का प्रजनन दर उस स्तर पर पहुँच चुका है, जहाँ उसकी जनसंख्या स्थिर हो जाएगी। लेकिन हिन्दू-मुसलमान प्रजनन दर में अभी भी अंतर है, मुसलमानों में प्रजनन दर ज़्यादा है। इससे साफ़ है कि 2021 जनसंख्या रिपोर्ट में मुसलमानों की प्रजनन दर हिन्दुओं के प्रजनन दर से ज्यादा होगा, लेकिन दोनों में अंतर पहले के अंतर से कम होगा।

United Nations के मुताबिक अगले 6 वर्षों में भारत की जनसंख्या चीन से आगे निकल जाएगी और अगले 10 वर्षों में चीन की जनसंख्या कम होनी शुरू होगी, जबकि भारत की जनसंख्या वर्ष 2061 तक लगातार बढ़ेगी और तब तक भारत की जनसंख्या 168 करोड़ हो जाएगी।

हालांकि, दुनिया में प्रजनन दर 2.1 को रिप्लेसमेंट रेट माना जा रहा है। इसका मतलब यह है कि जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए औसतन एक महिला 2.1 बच्चे पैदा करेगी। वहीं, भारत की बात करें तो प्रजनन दर लगातार घट रही है और इस समय यह 2.2% है। आगे के दशकों में इसके 2 से भी कम होने की संभावना है।

गौरतलब है कि 1950 में भारत की जनसंख्या 37 करोड़ थी, और अगले 50 वर्षों यानी सन 2000 में जनसंख्या 100 करोड़ के पार हो गई और इसके बाद सिर्फ 19 वर्षों में भारत की जनसंख्या में 35 करोड़ से ज्यादा की वृद्धि हुई है। दुनिया के शहरों पर वर्ष 2050 तक 250 करोड़ लोगों का बोझ बढ़ जाएगा, जिसमें से 90% एशिया और अफ्रीका के शहर होंगे।

ये भयावह आंकड़े हमें संदेश भी दे रहे हैं कि अगर देश को तेजी से चतुर्मुखी विकास की ओर ले जाना है तो जनसंख्‍या नियंत्रण कार्यक्रम देश के एजेंडे पर सबसे ऊपर होना चाहिए। भावनात्‍मक मुद्दे अपनी जगह है पर वास्‍तविक मुद्दों को पहले हल किया जाना चाहिए।

जब पीएम मोदी दूसरी बार जनता का विश्‍वास जीतकर सत्‍ता के शिखर पर पहुंचे तो उन्‍होंने सबसे पहले सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्‍वास की बात कही थी। ऐसे में जनसंख्‍या नियंत्रण पर उनकी नियत पर कोई सवाल नहीं खड़ा कर सकता है लेकिन उनके पार्टी के नेताओं के बयानों और संघ के विचारधारा पर गौर किया जाए तो सवाल खड़ा होना लाजमी है।

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