प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार
जब कोविड -19 के उपचार की बात होती है, तो कोरोनावायरस के कारण होने वाली बीमारी का इलाज एक सदियों पुरानी तकनीक प्लाज्माथेरेपी ( Plasma Therapy )से संभव हो सकता है।
यह खास किस्म की थैरेपी है। जिसमें किसी वाइरस की बीमारी से उबर चुके मरीजों से खून ( Blood ) लिया जाता है और उसमें मौजूद एंटीबॉडीज ( Antibodies ) को नए मरीजों में चढ़ाया जाता है।
हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने केरल के एक इंस्टीट्यूट को और अभी दिल्ली मेकोरोना मरीजों का इलाज प्लाज्माथेरेपी ( Plasma Therapy ) के द्वारा करने के लिए ट्रायल की अनुमति दी है। यदि ट्रायल सफल रहा तो जल्द ही कोरोना मरीजों का इलाज प्लाज्मा थैरेपी से किया जा सकता है। देश के पांच आयुर्विज्ञान कॉलेज और अस्पतालों में इसका क्लीनिकलट्रायल( Clinical Trial ) किया जाएगा।
प्लाज्माथैरेपी को 120 साल पुरानी विधि मानी जा सकती है। पूर्व मेंकई बीमारियों में इसी पद्धति से इलाज किया जाता रहा है। 120 साल पहले जर्मन वैज्ञानिक एमिल वान बेहरिंग ने टेटनस और डिप्थीरिया का इलाज प्लाज्मा पद्धति से किया और प्लाज़्मा के सक्रिय पदार्थ का नाम ऐंटीबाडी’(Antibody ) दिया। तब से आज तक प्लाज्माथैरेपी का प्रयोग रेबीज, इबोला और नए कोरोनावायरसकोविड-19 से मिलते-जुलते एमईआरएस ( MERS ) और एसएआरएस (SARS ) के इलाज में भी हुआ है। उनके अनुसार, प्लाज्माथैरेपी में जो मरीज अपनी प्रतिरोधी क्षमता से खुद ठीक हो गए हैं, उनके रक्त प्लाज्मा को गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों को देने से उनके स्वास्थ्य में सुधार होता है। आशा की जाती है की यह इलाज कोविड-19 में भी कारगर हो सकता है।
प्लाज्माथेरेपी कैसे काम करती है
जब कोई व्यक्ति इस वायरस को हराने में कामयाब हो जाता है या वह कोरोनावायरस संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो जाता है तो उसके शरीर मेवाइरस से लड़ने के लिए एंटीबाडीज बन जाती है और उसकी प्रतिरोध क्षमता (Immunity ) अल्प और दीर्घ समय के लिए मजबूत हो जाती है। हमारे शरीर मेंविशेष प्रकार की इम्यूनकोशिशकाएं (Immune Cells ) होती हैं जिसे बी-लिम्फोसाइट ( B Lymphocytes ) कहते हैं।
जब भी शरीर में कोई बाहरी चीज (Foreign Bodies ) पहुंचती है तो ये कोशिकाए सक्रिय हो जाती हैं। बैक्टीरिया या वायरस द्वारा उत्सर्जित किए गए विषैले पदार्थों को निष्क्रिय करने का काम यही एंटीबॉडीज ( Antibodies ) करती हैं। इस तरह ये रोगाणुओं के असर को बेअसर करती हैं। जैसे कोरोना से उबर चुके मरीजों में खास तरह की एंटीबॉडीज बन चुकी हैं जब इसे रक्त से निकालकर दूसरे संक्रमित मरीज में डाला ( Inject ) जाएगा तो वह भी कोरोनावायरस को हरा सकेगा।
कोरोना मरीज को एंटीबॉडी सीरम ( Antibody Serum ) देने के बाद यह उनके शरीर में 3 से 4 दिन तक रहती है । इस समय मरीज बीमारी से ठीक होगा। चीन और अमेरिका की शोध के अनुसार , प्लाज्मा का असर शरीर में 3 से 4 दिन में दिख जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना से ठीक हुए व्यक्ति के खून से चार लोगों का इलाज संभव है , इस तकनीक में ठीक हो चुके रोगी के शरीर से ऐस्पेरेसिस विधि से खून निकाला जाएगा।कोरोनासर्वाइवर की हेपेटाइटिस, एचआईवी ( Hepatitis , HIV) ,कोरोनाऔर मलेरिया जैसी जांचों के बाद ही रक्तदान की अनुमति दी जाती है । इस रक्त से जिस मरीज का रक्त समूह ( Blood Group ) मिलेगा उसका ही इलाज किया जाएगा। इस तरह किसी तरह का संक्रमण फैलने या मरीज को दिक्कत होने का खतरा न के बराबर है।
इस विधि में खून से सिर्फ प्लाज्मा या प्लेटलेट्स जैसे अवयवों को निकालकर बाकी खून को फिर से उस दाता ( Donor ) के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है की एक व्यक्ति के प्लाज्मा से चार नए मरीजों को ठीक करने में इस्तेमाल हो सकता है। वास्तव मे एक व्यक्ति के खून से 800 मिलीलीटरप्लाज्मा लिया जा सकता है। वहीं कोरोना से बीमार एक मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज डालने के लिए लगभग 200 मिलीलीटर तक प्लाज्मा चढ़ाया जा सकता है। इस तरह एक ठीक हो चुके व्यक्ति का प्लाज्मा4 लोगों के उपचार में मददगार हो सकता है।
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यह सभी रोगियों को देने की जरूरत नहीं हैं। जिन रोगियों की तबीयत ज्यादा खराब है, उन्हीं को यह दिया जाए तो ज्यादा बेहतर है क्योंकि अभी देश में ठीक हो चुके रोगियों की संख्या बहुत कम है जबकि नए मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले भी सार्स और स्वाइनफ्लू जैसे कई संक्रामक रोगों में इसका इस्तेमाल हो चुका है।
यह थैरेपी आसान नहीं है। कोरोनासे स्वस्थ्य हुए व्यक्तियों के रक्त से पर्याप्त मात्रा में प्लाज्मा निकालकर बढ़ते संक्रमित लोगों के मुकाबले इकट्ठा करना चुनौती है। कोरोना से संक्रमित ऐसे मरीजों की संख्या ज्यादा है जो उम्रदराज हैं और पहले ही किसी बीमारी जैसे उच्च रक्त ताप ( High BP ) और मधुमेह ( Diabetes ) से जूझ रहे हैं। ये सभी सर्वाइवर के ब्लड डोनेशन से अच्छे नहीं हो सकते।
चीन में प्लाज्माथैरेपी शुरू की जा चुकी है। चीन की सरकार ने कोरोना से ठीक हो चुके लोगों से अपील की है कि वह रक्तदान करें। चीन के बाद अब ईरान ने भी इस पद्धति को अपनाने की शुरुआत कर दी है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में ऐसा लगता है कि और भी देश जहां पर कोरोना का प्रकोप है, वह इस पद्धति को अपनाएंगे।
जापान में सबसे बड़ी फार्मा कंपनी ( Pharmaceutical Company )टाकेडा भी इसी थैरेपी का ट्रायल कर रही है। टाकेडा का दावा है यह दवा कोरोना के मरीजों के लिए काफी कारगर साबित होगी। तर्क है कि कोरोना बीमारी से स्वास्थ्य हुए मरीजों से निकली एंटीबॉडी नए कोरोना मरीजों में पहुंचेगी और उनके इम्यूनसिस्टम में तेजी से सुधार करेगी।
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(लेखक श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा (राजस्थान) के कुलपति हैं तथा कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं )