जुबिली न्यूज़ डेस्क
नये प्लास्टिक उत्पादन की मांग में अगले दस सालों बहुत तेज़ी से गिरावट आने की उम्मीद है. इस गिरावट के कारण पेट्रोकेमिकल और तेल उद्योग में निवेशित 400 बिलियन डालर का भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा है. एक तरफ तो दुनिया प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए इसके उत्पादन पर लगाम कसने के लिए कदम उठा रहीं है वहीं तेल उद्योग नये प्लास्टिक के उत्पादन पर दांव लगाने में डूबा है.
यह जानकारी SYSTEM IQ और कार्बन ट्रैकर द्वारा आज जारी, “द फ्यूचर इज़ नॉट इन प्लास्टिक” नामक रिपोर्ट से उभर कर सामने आयी है. प्लास्टिक की मांग में गिरावट होने से तेल में निवेशित 400 बिलियन डालर का भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि प्लास्टिक के उपयोग को घटाने के लिए वैश्विक स्तर पर अनुकूल माहौल होने के कारण साल 2027 तक प्लास्टिक की मांग की वृद्धि दर 4 प्रतिशत प्रति वर्ष से घटकर एक प्रतिशत प्रति वर्ष से भी कम हो सकती है. इस गिरावट के कारण तेल की माँग में ज़बरदस्त गिरावट हो सकती है क्योंकि तब तेल के उत्पादन से सस्ता होगा वैकल्पिक ऊर्जा का रुख करना.
तेल कम्पनियां हालाँकि इस उम्मीद में हैं कि प्लास्टिक की डिमांड बढ़ेगी, लेकिन इस ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ कुछ नहीं होगा. दरअसल, प्लास्टिक का उत्पादन तेल के उत्पादन पर निर्भर करता है. मतलब प्लास्टिक की माँग बढ़ेगी तो तेल का उत्पादन भी उसी क्रम में बढ़ेगा.
लेकिन कार्बन ट्रैकर और SYSTEM IQ की इस ताज़ा रिपोर्ट से पता चलता है कि असल में 400 बिलियन डालर के पेट्रोकेमिकल क्षेत्र के निवेश असल में जोखिम में है. प्लास्टिक की घटती माँग तेल के उत्पादन को महंगा कर देगा.
कार्बन ट्रैकर के एनर्जी स्ट्रैटेजिस्ट और रिपोर्ट लीड लेखक किंग्समिल बॉन्ड, ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तेल उद्योग प्लास्टिक की शक्ल में जिस खम्बे पर टिका है, उस सहारे को ही हटा दीजिये और फिर देखिये कैसे ढहता है तेल का साम्राज्य.
पेट्रोकेमिकल उद्योग पहले से ही बड़े पैमाने पर ओवरकैपेसिटी के परिणाम के रूप में प्लास्टिक फीडस्टॉक रिकॉर्ड स्तर की कम कीमतों का सामना कर रहा है, लेकिन इस सब के बावजूद यह इंडस्ट्री प्लास्टिक की सप्लाई को 25 प्रतिशत से बढ़ाने की सोच रही है और इस सब में 400 बिलियन डालर दांव पर लगे हैं.
प्लास्टिक उद्योग इस वक़्त विघटन के लिए एकदम तैयार है. ख़ास तौर से इसलिए क्योंकि प्लास्टिक का उत्पादन कई मायनो में नुकसानदेह है. प्लास्टिक उत्पादन से जुड़े कार्बन डाइऑक्साइड और तमाम हानिकारक गैसों से उत्सर्जन और उनसे जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी लागत और बायो डीग्रेडेबिल नहीं होने की वजह से इसके संग्रह की लागत और विघटित नही होने की वजह से यह समुद्र में इसका कूड़ा जमा होने की वजह से उसके प्रदूषण के प्रभाव. इन सब को मिलकर प्लास्टिक उत्पादन की कीमत हर साल हम सब पर कम से कम 1,000 डालर प्रति टन या 350 बिलियन डॉलर आंकी गयी है और इस कीमत का आंकलन होता है जब हम को सोचते हैं.
लेकिन इस भारी कीमत के बावजूद प्लास्टिक इंडस्ट्री जितना टैक्स नहीं देती उससे ज़्यादा सब्सिडी का लाभ उठा लेता है, और यही नहीं, फिलहाल प्लास्टिक के उपयोग के तरीकों पर भी कोई ख़ास बाधाएं नहीं है.
यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए की कुल उत्पादित प्लास्टिक में 36 प्रतिशत प्लास्टिक का उपयोग केवल एक बार किया जाता है, 40 प्रतिशत पर्यावरण को प्रदूषित करती है और केवल 5 प्रतिशत ही रीसायकिल होती है.
SYSTEM IQ का मानना है कि इस दिशा में समाधान के रूप में प्रौद्योगिकी पहले से ही उपलब्ध है. ऐसी प्रौद्योगिकी जो कि सामान्य से कम लागत पर प्लास्टिक के उपयोग में भारी कमी लाने में सक्षम हैं. समाधान की शक्ल में प्लास्टिक का पुन: उपयोग और बेहतर डिजाइन जैसे विकल्प शामिल है.
अपनी बात रखते हुए SYSTEM IQ के प्लास्टिक प्लेटफ़ॉर्म के लीडर और इस रिपोर्ट के सह-लेखक, योनि शिरन, ने कहा, “वर्तमान प्रणाली से परिवर्तन में भारी लाभ हैं. आप अपनी लागत आधी कर प्लास्टिक जैसे विकल्पों पर निर्भर हो कर 700,000 अतिरिक्त नौकरियां और 80 प्रतिशत कम प्रदूषण के बीच रह सकते हैं.”
यूरोप और चीन में नीति निर्माता पहले से ही प्लास्टिक कचरे पर लगाम लगाने के लिए कदम उठा रहे हैं.
मसलन यूरोपीय संघ ने जुलाई 2020 में रीसायकल न हुए प्लास्टिक वेस्ट पर €800/टन के कर का प्रस्ताव किया, और चीन में भी कुछ ऐसे ही हाल हैं. भारत भी ऐसा ही कुछ करने की प्रक्रिया में है. चीन में 2018 में पहला बड़ा कदम उठा जब देश ने प्लास्टिक कचरे के आयात और प्रसंस्करण के लिए बड़े पैमाने पर अपने उद्योग – दुनिया का सबसे बड़ा – को बंद कर दिया, और निर्यातकों को घर पर कचरे के मुद्दे को हल करने के लिए मजबूर कर दिया.
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यह ताज़ा रिपोर्ट विकसित बाजारों में प्लास्टिक की माँग में ठहराव की बात करती है. प्लास्टिक की मांग में उसी समय स्थिरता आ रही है जब से नए बाजार प्लास्टिक के विकल्पों की तलाश कर रहे हैं. प्लास्टिक मूल्य श्रृंखला के हर चरण में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन होता है – जिसमें जलाना, दफ़नाना या पुनर्नवीनीकरण शामिल हैं, न केवल तेल का निष्कर्षण और विनिर्माण. इसलिए विश्लेषण में पाया गया है कि एक टन तेल के उत्पादन में जितनी कार्बन डाईऑक्साइड निकलती है उससे लगभग 2 गुना ज्यादा CO2 प्लास्टिक उत्पादन और उपभोग में होती है.
अंततः किंग्समिल बॉन्ड कहते हैं, “प्लास्टिक उद्योग के लिए यह भ्रम है कि वह अपने कार्बन उत्सर्जन को दोगुना कर सकता है, वो भी तब, जब बाकी दुनिया उस उत्सर्जन को शून्य करने के लिए एकजुट हो रहा है.”