Monday - 28 October 2024 - 12:59 PM

कोरोना के इलाज में अब नहीं इस्तेमाल होगी प्लाज्मा थेरेपी

जुबिली न्यूज डेस्क

देश में कोरोनो मरीजों के इलाज में अब तक इस्तेमाल हो रही प्लाज़्मा थेरेपी को अब बंद कर दिया गया है। सोमवार देर रात  इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने कोरोना के इलाज की क्लीनिकल गाइडलाइंस में बदलाव किए।

आईसीएमआर ने कहा है कि प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना मरीजों की हालत में सुधार होने के सबूत नहीं मिले हैं।

आईसीएमआर के नेशनल टास्क फोर्स और स्वास्थ्य मंत्रालय के विशेषज्ञ कोरोना संक्रमण के इलाज से जुड़ी गाइडलाइन समय-समय पर अपडेट करते हैं।

हालांकि रजिस्टर्ड डॉक्टरों के लिए टास्क फोर्स की सिफारिशों का पालन करना अनिवार्य नहीं होता।

अब भी लिस्ट में आइवरमेक्टिन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन

आईसीएमआर ने पिछले साल ही कोरोना के 400 मरीजों पर प्लाज़्मा थेरेपी का ट्रायल किया था और पाया था कि इससे कुछ खास फायदा नहीं होता।

बावजूद इसके प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना के इलाज के तरीकों की लिस्ट में रखा गया और कई मामलों में इसका इस्तेमाल भी होता रहा है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए कई परीक्षणों में भी प्लाज्मा थेरेपी के फायदे सामने नहीं आए हैं।

हाल ही में मशहूर मेडिकल जर्नल लैंसेट 5000 मरीजों के परीक्षण पर आधारित रिसर्च छपी थी। इसमें कहा गया था कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 के इलाज में कारगर नहीं है।

इसके अलावा आईसीएमआर की क्लीनिकल गाइडलाइन में हल्के लक्षणों के लिए आइवरमेक्टिन और  हाइड्रोक्सोक्लोरोक्वीन दवा का सुझाव जारी रखा गया है।

जबकि इन दोनों दवाओं से भी कोरोना मरीजों को फायदे के ‘कम सबूत’  ही मिले हैं।

कैसे होती है प्लाज्मा थेरेपी?

प्लाज्मा थेरेपी से इलाज इस धारणा पर आधारित है कि वे मरीज जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी ऐंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं।

इन ऐंटीबॉडीज की मदद से कोरोना मरीजों के खून में मौजूद वायरस को खत्म किया जा सकता है।

इस थेरेपी के लिए दिशा-निर्देश के अनुसार, “किसी मरीज के शरीर से ऐंटीबॉडीज उसके ठीक होने के दो हफ्ते बाद ही लिए जा सकता हैं और उस मरीज का कोविड-19 का एक बार नहीं, बल्कि दो बार टेस्ट किया जाना चाहिए।”

ठीक हो चुके मरीज का एलिजा (एन्जाइम लिन्क्ड इम्युनोसॉर्बेन्ट ऐसे) टेस्ट किया जाता है जिससे उनके शरीर में ऐंटीबॉडीज की मात्रा का पता लगता है।

लेकिन ठीक हो चुके मरीज के शरीर से ख़ून लेने से पहले मानकों के तहत उसकी शुद्धता की भी जांच की जाती है।

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