Thursday - 31 October 2024 - 9:49 AM

पेट्रोलः पे-मोर का बाजार!

राकेश कपूर

संसद का बजट सत्र चालू है और भारत के लोगों से कहा जा रहा है कि वे पेट्रोल व डीजल के भाव वे ही अदा करते रहें जो कच्चे तेल की महंगाई के जमाने मे अदा किया करते थे। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जब कच्चे तेल का भाव 50 डालर से लेकर 70 डालर प्रति बैरल के बीच रहता था, भारत के पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल व डीजल रोजाना इस तरह बढा करता था, जैसे मुंह से गुब्बारे मे हवा भरने पर फूलता जाता है।

लेकिन जब इसके उलट आजकल कच्चे के तेल भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार मे गिर कर 30 डालर प्रति बैरल हो गये हैं तो सरकार ने उत्पाद शुल्क बढ़ा कर इसे पूर्व स्तर पर ही रखने की तजवीज भिड़ा दी है। पेट्रोल- डीजल के भाव पूरी तरह सरकारी नियन्त्रण से बाहर होने की बात कही जाती है। परन्तु केन्द्र व राज्य सरकारें इस पर इस कदर आयात शुल्क से लेकर उत्पाद शुल्क व बिक्रीकर आदि लगाती हैं कि उपभोक्ता की मोटर साइकिल मे पडने तक इसके भाव दुगने से भी ज्यादा हो जाते हैं।

आज की तारीख में 30 डॉलर का 159 लीटर के लगभग कच्चा तेल आता है (एक बैरल में 159 लीटर होते हैं)। एक डालर की कीमत को 74 रु के लगभग माने तो एक डालर अर्थात 74 रु मे पांच लीटर 3 पाँइट तेल आयेगा।

इसका मतलब हुआ कि एक लीटर कच्चे तेल की कीमत लगभग 14 रुपए आयेगी। इसका परिशोधन करके पेट्रोल व डीजल बनाया जायेगा, जिस पर तेल कम्पनियों की लागत आयेगी और वे इस पर मुनाफा भी लेंगी, जो लगभग 75 प्रतिशत के होता है।

इस प्रकार यह कीमत बढ़ कर 24.50 रुपए (साढे चौबीस रुपए) हो जायेगी। अब इस पर केन्द्र सरकार आयात शुल्क और उत्पाद शुल्क वसूल करती हैं। इन दोनों मदों में केन्द्र सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 23 रुपए वसूलेगी (तीन रुपए प्रति लीटर का इजाफा उसने तीन दिन पहले ही किया है), जिससे इसकी कीमत बढ़ कर 47.50 रु हो जायेगी।

अब यह पेट्रोल विभिन्न राज्यों को सप्लाई होगा जहां पेट्रोल पंप डीलर साढ़े तीन रुपए प्रति लीटर का मुनाफा लेकर इसे बेचेंगे, जिससे इसकी कीमत 51 रुपए प्रति लीटर के लगभग हो जायेगी। परन्तु हर राज्य सरकार भी इस पर बिक्रीकर या वैट वसूलेगी।

प्रत्येक राज्य में यह दर अलग- अलग होती है, जो औसतन 27 प्रतिशत के आसपास घूमती है। यह कीमत 14 रुपए के लगभग आयेगी, जिससे उपभोक्ता की मोटर साइकिल में एक लीटर पेट्रोल 65 रुपए का पङेगा।

कहने का आशय यह है कि भारत के तेलशोधन कारखानों से निकल कर पेट्रोल पंपों तक 28 रुपए प्रति लीटर के पेट्रोल की कीमत को केन्द्र व राज्य सरकारों ने शुल्क वसूल कर 65 रुपए का बना दिया। अब पेट्रोल की भारत के खुले बाजारों मे कीमत को अन्तरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों से सीधे जोङने का क्या मतलब निकलता है?

कच्चा तेल जब जनवरी 2019 मे 65.93 डालर प्रति बैरल था। तो घरेलू बाजार मे दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 73 रुपए के आस-पास थी और आज जब यह गिरकर 30 डालर प्रति बैरल हो गया है तो इसकी कीमत 70 रुपए प्रति लीटर के आसपास है।

इससे साफ जाहिर है कि सरकारों ने इसे आसान कमाई का जरिया बना लिया है, जिसमें कुछ करने-धरने की जरूरत नहीं है। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में जब कच्चे तेल का भाव एक डालर गिरता है तो वार्षिक आधार पर सरकार को 12 हजार करोङ रुपए बचते हैं।

भारत दुनिया का तीसरे नम्बर का सबसे बङा तेल आयातक देश है। यह 112 अरब डालर के मूल्य का हर वर्ष कच्चा तेल आयात करता है। बेशक डालर की कीमत में घट-बढ़ का हिसाब भी लगाया जाता है। मगर भारत के गांवों से लेकर कस्बों और शहरों तक में मोटर साइकिल से लेकर कार चलाने वालों से इस बेरहमी के साथ टैक्स वसूलना किस तरह वाजिब माना जा सकता है। जबकि पेट्रोल आवश्यक उपभोक्ता सामग्री बन चुका है।

पाकिस्तान जैसे ‘नामुराद’ मुल्क की मुद्रा भारत की मुद्रा के मुकाबले मे डालर के विरूद्ध 80 प्रतिशत सस्ती होने के बावजूद वहां पेट्रोल का दाम 50 रुपए प्रति लीटर के आसपास घूमता है। इसी प्रकार श्रीलंका व बांग्लादेश में भी पेट्रोल की कीमतें भारत के मुकाबले कम हैं, जबकि उनकी मुद्राएँ भारत के रुपये से काफी कमजोर हैं।

भारत में डीजल की कीमतों का भी यही हाल है इस पर सिर्फ उत्पाद शुल्क थोङा कम है। लोकसभा में यह मुद्दा शून्य काल में गत मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय व द्रमुक के दयानिधी मारन ने उठाया जरूर मगर सरकार की इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी। पेट्रोल को बजट से भी बाहर कर दिया गया है और जीएसटी से भी इस पर तुर्रा यह रहता है कि पेट्रोल कम्पनियां अपना भाव खुद तय करती हैं।

सवाल यह है कि पेट्रोल कम्पनियों पर कच्चे तेल की कीमतों मे घट-बढ़ का असर बेशक पङता है। परन्तु बाजार मूलक अर्थ व्यवस्था उनके हितो को देखने में सक्षम हो सकती है। भारत में प्रति वर्ष 26 हजार करोङ टन के लगभग कच्चा तेल 23 परिशोधन कारखानो में परिशोधित होता है।

भारत जैसे विकास की ओर अग्रसर देश मे पेट्रोल की कीमत लगातार वृद्धि होने से तेल परिशोधन कारखानों के मुनाफे में कमी होने के आसार तब बिना शक हो जाते हैं जब अन्तरराष्ट्रीय बाजार मे कच्चे तेल के भाव पूरी तरह ‘लमलेट’ हो जाये।

जाहिर है घाटे मे कोई उद्योग नहीं चल सकता औऱ इसका उपचार करने को उद्योग स्वतन्त्र रहते हैं। परन्तु लोकतान्त्रिक सरकारों का यह काम कब से हो गया कि वे आम जनता को मिलने वाले लाभ को रोक कर अपना खजाना भरती रहें।

बेशक तेल के सस्ता भाव होने से सरकार का राजस्व भी घटेगा मगर तेल के मंहगे भावों के दौरान भी तो वह आम उपभोक्ताओं को आनुपातिक लाभ देने को तैयार नहीं हुई? लोकतन्त्र में यह सवाल पूछा जायेगा औऱ वित्तमन्त्री निर्मला सीतारमन को जवाब देना होगा। पेट्रोल व डीजल अब पूरी तरह व्यापारिक प्रक्रिया के दायरे में है औऱ सरकार को इसे दुधारू गाय की तरह उपयोग करने का हक नहीं दिया जा सकता।

भारत के गांवो में भी अब ‘बाइसिकिल’ की जगह ‘मोटर साइकिल’ ने ले ली है। एक साधारण औसत आय वाला नागरिक इसकी सवारी करते हुए पूरे देश में देखा जा सकता है। अतः सवाल उसी को उसका हिस्सा देने का है। वह यही कह रहा है ‘साड्डा हक एत्थे रख’।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)

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