Monday - 28 October 2024 - 11:12 PM

ऐसे तो लोग हँसते रहेंगे, मरते रहेंगे

राजीव ओझा

चाहे घुसपैठियों का मामला हो या आम जनता से से जुड़ा कोई गंभीर मुद्दा, समस्या का समाधान हो इसके पहले ही राजनीति शुरू हो जाती है। भारत में पूरब और पश्चिम से घुसपैठ गंभीर राजनीतिक समस्या है। लेकिन बंगाल में ममता बनर्जी और कश्मीर में तथाकथित सेक्युलर नेता किसी न किसी बहाने विरोध की राजनीति शुरू कर देते हैं। दुनिया में सबसे ज्यदा रोड एक्सीडेंट भारत में होते और इससे सबसे ज्यादा मौत भारत में ही होती लेकिन नया मोटर क़ानून लोगों की सुरक्षा नहीं बल्कि मजाक और भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा में है।

जनता सफ़र करती है तो करे नेतागिरी चमकती है

जनता का हित और उनसे जुड़े मुद्दे धरे रह जाते है। नेताओं की राजनीति चमकती है और जनता सफ़र करती है। बंगाल में 2021 में चुनाव होंगे लेकिन माहौल अभी से बनने लगा है। मामता बनर्जी के लिए अपना वजूद बचाने का सवाल है तो बीजेपी के लिए बंगाल में अपने विजय अभियान को और ऊंचियों तक ले जाने की चुनौतीं है। इसमें एनआरसी के बड़ा राजनितिक हथियार बनता जा रहा है।

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ममता बनर्जी को एनआरसी के विरोध में अपना वोटबैंक नज़र आ रहा है। दूसरी तरफ केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने मंगलवार को एनआरसी का विरोध करने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तीखा हमला बोला। स्मृति ईरानी ने कहा कि ममता बनर्जी का आक्रामक रवैया राज्य के लोगों को केन्द्र सरकार की ओर से मुहैया कराए जाने वाले लाभों से वंचित रख रहा है। सबसे ज्यादा नुक्सान किसानों, महिलाओं और बच्चों को हो रहा है।

स्मृति इरानी ने कहा कि अवैध घुसपैठ से कानून के अनुसार निपटा जाएगा। एनआरसी में कोई भी भारतीय नहीं छूटेगा। जबकि अवैध घुसपैठ पर ममता का रुख उनके विरोधाभास को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री केन्द्र सरकार की हर योजनाओं का विरोध करती है भले ही यह बंगाल की जनता के हित में क्यों न हो और यह जग-जाहिर है। इसका उदाहरण है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में उद्योगों की स्थापना रोक दी है।

जिर्माना कम या ज्यादा करने से बात नहीं बनेगी

दूसरा मुद्दा सख्त यातायात के नियमों और जुर्माना कई गुना बढाने के विरोध को लेकर है। केंद्र ने जो नया मोटर क़ानून बनाया है उसमें कहा गया है कि राज्य सरकारें इसे अपने हिसाब से लागू करेंगी। इस कानून का उद्देश्य जनता की सुरक्षा है न कि जुर्माना के बहाने कमाई।

इसका ताजा उदाहरण गुजरात है जहाँ भाजपा की ही सरकार है। मोटर कानून को व्यावहारिक बनाने के लिए राज्य सरकार ने जुर्माना राशि घटा दी है। जबकि कांग्रेस समेत कुछ अन्य राजनीतिक दल इस जनहित के मुद्दे को राजनीतिक मुद्दा बनाने पर तुले हैं।

इसी क्रम में यूथ कांग्रेस ने 11 सितम्बर को दिल्ली में प्रर्शन किया। कांग्रेस का प्रदर्शन अव्यावहारिक जुर्माने को लेकर था। जुर्माना कितना हो यह राज्य सरकारों पर निर्भर करता है जैसा कि गुजरात में किया गया। जुर्माना कम या ज्यादा करने से बात नहीं बनेगी। आज जरूरत इस बात की है कि यातायात नियमों का पालन सख्ती से कराया जाये, इसकी भी मोनिटरिंग हो कि कहीं इसकी आड़ में कहीं भ्रष्टाचार को बढ़ावा तो नहीं मिल रहा।

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अगर ऐसा नहीं हुआ तो अव्यावहारिक जुर्माना सोशल मीडिया पर कार्टून, जोक और मजाक का क़ानून बन कर रह जायेगा। लोग हँसते रहेंगे, मरते रहेंगे और भ्रष्टाचारी जेबें भरते रहेंगे।

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