ओम कुमार
एक समय था जब सरकारी अस्पतालों में गम्भीर से गम्भीर रोग का बेहतर ईलाज होता था और इन अस्पतालों की अपनी एक साख थी लेकिन आज यही अस्पताल घटिया इलाज के लिये जाने जा रहे हैं। वजह बन रही है नकली और घटिया दवाओं की सप्लाई। फिलहाल यूपी मेडिकल कार्पोरेशन द्वारा सात करोड़ से अधिक की घटिया दवाओं की खरीद का मामला चर्चा में है।
जिला अस्पतालों की साख बनाने और चिकित्सा सुविधा बेहतर बनाने के लिये सरकार नये नये प्रयोग करने में लगी है, लेकिन सत्ता और अधिकारियों के भ्रष्ट गठजोड़ ने इसमें पलीता लगा दिया है।
स्टैण्डर्ड दवाओं की सप्लाई और खरीद को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन बनाया गया लेकिन अपनी स्थापना के एक साल के भीतर ही कार्पोरेशन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। अब यूपी के सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति की व्यवस्था एक दम ध्वस्त हो गयी है।
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बिना डिमाण्ड होती है सप्लाई
जिला अस्पतालों के जिम्मेदार बताते हैं कि मेडिकल कार्पोरेशन बिना मांग किये ही ऐसी दवाओं की सप्लाई कर रहा है जिनका उपयोग ही नहीं है। साथ ही अगर जिला चिकित्सालयों से आई मांग के अनुरूप यदि कुछ जरूरत की दवाई भेजी भी तो उसमें से अधिकांश दवाएं अधोमानक पाई गई।
प्रदेश के कुछ जिलों में स्थानीय जिम्मेदारों ने कुछ दवाओं के नमूने टेस्ट के लिए भेजे मगर ये सैंपल परीक्षण में फेल हो गए, जिस बैच संख्या की सैम्पलिंग कराई गई और उन्हें फेल पाया गया। एक्शन के नाम पैर बस उसी बैच की दवाओं के उपयोग पर रोक लगा दी गयी।
सवाल है कि जब उस दवा में मानक के अनुसार मिश्रण नहीं है या फिर मानक पूरे नहीं है तो फिर उस कम्पनी की उस बैच संख्या सहित पूरी दवा अधोमानक हो सकती है क्योंकि उसकी जांच नहीं कराई गयी।
जिन मरीजों ने घटिया दवा खाई,नहीं जांची उनकी सेहत
अधोमानक पाई गयी दवाओं का जितना भाग मरीजों को खिला दिया गया,ऐसे मरीजों के स्वास्थ्य पर क्या दुष्प्रभाव पड़ा, इसकी भी सुध नहीं ली गयी। अस्पतालों में कार्पोरेशन के माध्यम से सप्लाई की गयी दवाओं में से जिले के ड्रग इंसपेक्टर जब तक किसी दवा की सैम्पलिंग करके उसका रिजल्ट देते हैं और वह दवा घटिया साबित होती है तब तक उस दवा की अधिकांश मात्रा मरीजों को डाक्टर खिला चुके होते हैं।
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इसके बाद कार्पोरेशन केवल उस दवा के वितरण पर रोक लगाने का आदेश जारी कर देता है। मरीज का मर्ज ठीक हुआ या नहीं, उस घटिया दवा से मरीज के ऊपर कैसे रियेक्शन हुआ,इस बारे में किसी को चिंता नहीं है ।
मेडिकल कार्पोरेशन नहीं करता ब्लैक लिस्टेड
ऐसी फर्में जिनकी दवायें अधोमानक पाई गयीं,उन्हें कार्पोरेशन ब्लैक लिस्टेड नहीं करता है,जबकि स्वास्थ्य महानिदेशालय से जब दवा की खरीद की जाती थी तब फर्मों की दवाओं के सैम्पल एक बार फेल होने पर उस फर्म को ब्लैक लिस्टेड कर दिया जाता था।
जानकार बताते हैं कि अब घटिया दवाओं की सप्लाई करने वाली फर्मों के दबाव में, कार्पोरेशन ने तीन बार सैम्पल फेल होने पर ही फर्म की फेल हुई दवा को ब्लैक लिस्ट करने का नया नियम बना दिया है, लेकिन उस दवा कम्पनी को ब्लैक लिस्ट नहीं करते हैं। इसीलिये घटिया दवाओं की सप्लाई बेखौफ की जा रही है।
घटिया दवाओं का प्रयोग रोका,पर दवायें नहीं हुई वापस
जब सैम्पल फेल होते हैं तो उनको मरीजों को देने पर कार्पोरेशन रोक तो लगा देता है लेकिन कार्पोरेशन उन्हें वापस नहीं लेता है।सूत्रों के अनुसार फेल हुई दवायें अभी भी जिलों में डम्प हैं,फर्म ने भी वापस लेने की कोई कार्यवाही नहीं की।
कार्पोरेशन ने सात करोड़ की घटिया दवाओं की कराई सप्लाई
कुछ जिलों से जुटाई गई सूचना के अनुसार जिन दवाओं के सैंपल फेल हुए ,उस दवा की जितनी मात्रा उस जिले में सप्लाई की गई थी उसी के आधार पर औसत निकाला गया कि कितने कितने रुपए की धनराशि की दवाएं खरीदी गई थी । औसतन कुछ बड़े जिलों के अस्पतालों में की गयी आपूर्ति के आधार पर 50 जिलों में उतनी मात्रा में आपूर्ति मानकर दवाओं का मूल्य निकाला गया तो पैसे की बरबादी सामने आई ।
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करीब 7 करोड़ रूपये की अधोमानक दवाओं की खरीद का विवरण
सूत्रों के हवाले से जुटायी गयी सूचना के अनुसार,अधोमानक दवाओं का विवरण देखा जा सकता है। आयरन एंड फोलिक एसिड सीरप की 50लाख मात्रा पर रू 7.29 की दर से रू 3,64,50000 का भुगतान किया गया।
टेबलेट मेटफार्मिन पर रू1050000, इंजेक्शन आर्टिसुनेट पर रू12.23 की दर से रू 183450, 50 लाख सिरप ओडेनस्ट्रान पर रू 2,38,000,00 का भुगतान किया गया तो एटोरवास्टिन 10 के लिए 6 लाख 50 हजार का भुगतान किया गया, इंजेक्शन डेक्सामेथासोन की 12,50,000 मात्रा की खरीद पर 37,75,000 रुपये, इरथ्रोमाइसिन पर रू 2 करोड़ रुपये,आई ड्रॉप कार्बोजाईमिथाइल सैलूलोज की खरीद पर रू9,52,000 का भुगतान किया गया।
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आई ड्राप माक्सीफ्लाक्सासिन के लिए रू 21,20,000 का भुगतान, इंजेक्शन रैंटिडीन के लिए रू1,31,000, कैप्सूल क्लाक्सासिलिन 250mg के लिए रू 1,10000 और एसीटेलोप्राम के लिए रू 19,50,000 खर्च कर दिये गये। इन सभी दवाओं के सेंपल जांच में फेल हो गए।
फर्मों से अधोमानक दवाओं के पैसे की नहीं होती रिकवरी
सैम्पल फेल होने और दवाओं के अधोमानक घोषित होने के बाद भी कार्पोरेशन के अधिकारी इतने बेलगाम हैं कि फर्मों से इन अधोमानक दवाओं की सप्लाई करने के दण्डस्वरूप पेनाल्टी कौन कहे उस दवा की भुगतान की गयी कीमत की रिकवरी भी संबंधित फर्म से नहीं हुई ।
इस तरह से लगभग 7 करोड़ कीमत की घटिया दवाओं की सप्लाई का मामला बताया जा रहा है,लेकिन शासन के उच्चाधिकारियों की कृपा से कार्पोरेशन के अधिकारी फर्मों के साथ मिलकर बेखौफ होकर घटिया दवाई की सप्लाई और कमीशन का जाल फैलाये हुए हैं,फिर भी शासन के अधिकारियों की भ्रामक सूचना पर प्रदेश के मुखिया से कार्पोरेशन प्रशंसित हो रहा है।