Tuesday - 29 October 2024 - 9:57 AM

राज्यों का विभाजन, पीके का नया एजेंडा !

विवेक अवस्थी 

“पीके” यानी प्रशांत किशोर को देश में अब पहचान की जरूरत नहीं है. प्रशांत किशोर चुनाव रणनीतिकार हैं. दस साल पहले गुजरात विधानसभा के चुनाव से उन्होंने नेताओं को चुनाव जीतने की राजनीतिक “सलाह” देने का जो सफर शुरू किया था, वह किसी न किसी तरीके से अभी जारी है. पीके बीजेपी सहित देश के एक दर्जन से भी अधिक राजनीतिक दलों के प्र मुखों को चुनाव प्रबंधन की बारीकियां समझा चुके हैं.

हालांकि अब खुद पीके में भी नेता बनने की चुल सवार हुई है. तो अब वह कहने लगे हैं कि वह अब चुनाव प्रबंधन करने और रणनीति बनाने वाली अपनी कंपनी आई-पैक से अलग हैं. और अब वह चुनाव प्रबंधन से जुड़े काम नहीं करते हैं.

अब तो वह नेता के तौर पर बिहार में सुराज अभियान चला रहे हैं. और जल्दी ही बिहार में पदयात्रा करेंगे. बिहार को आगे ले जाने के लिए उनकी यह पदयात्रा होगी.

पीके का यह दावा सोचने को मजबूर करता है. क्या वास्तव में वह नेताओं से दूरी बनाकर उन्हें चुनावी प्रबंधन की सलाह नहीं देंगे. मतलब जो काम उन्हें आता है, उसे वह नहीं करेंगे. और जो काम उन्हें नहीं आता वह करेंगे, यानी कि पदयात्रा. तो पीके के दावे का पड़ताल की और पता चला कि वह नेताओं से दूर नहीं होंगे. बस उन्हें (नेताओं) सलाह वः अलग तरीके से चुनावी मैदान में जमे रहने की देंगे. जी हां. अब पीके देश में छोटे राज्यों के गठन के काम में सलाहकार और रणनीतिकार की भूमिका निभाएंगे. अपने इस नए काम की शुरुआत भी उन्होंने महाराष्ट्र से कर दी है.

देश के सबसे अधिक अरबपतियों वाले इस राज्य में पीके की टीम अलग विदर्भ राज्य के गठन की संभावनाओं और तरीकों का आकलन कर रही है. मुंबई में यह चर्चा है कि कांग्रेस के विधायक रहे आशीष देशमुख से संपर्क में आने के बाद पीके यह कार्य कर रहे हैं.

आशीष देशमुख चाहते थे कि अलग विदर्भ राज्य के गठन के उनके प्रयास में पीके सहयोग करें. इस मंशा के तहत उन्होंने पीके से की मुलाकात की. उसके बाद पीके ने अपने सहयोगियों की टीम महाराष्ट्र भेजी. अब पीके की टीम वर्षों पुरानी विदर्भ को अलग राज्य बनाने की मांग को कैसे संभव बनाया जा सकता है? इसका आकलन करने में जुटी है.

पीके के इस काम में कहीं कोई झोल नहीं है. लेकिन पीके कोई काम करें वह इतना सीधा हो, यह भी संभव नहीं है. इस मामले में झोल यह है कि पीके की आई-पैक की टीम एक तरफ उद्धव ठाकरे की शिवसेना के लिए काम कर रही थी तो दूसरी ओर प्रशांत किशोर अलग विदर्भ राज्य के लिए. यह दोनों काम एक ही राज्य में कैसे संभव है. इस मामले में सबसे बड़ा अवरोध शिवसेना होगी. पीके को भी यह पता है. फिर भी उन्होंने रिस्क लिया है.

महाराष्ट्र के लोगों का यह मत है. क्योंकि शिव सेना किसी हाल में राज्य के बंटवारे के लिए तैयार नहीं होगी. उनके लिए यह मराठा गौरव का मामला है. ऐसे में पीके शिवसेना और अलग विदर्भ राज्य के गठन के मामले में अपनी भूमिका का कैसे तालमेल बिठाते हैं? यह देखना है.

इस बारे में महाराष्ट्र के प्रमुख नेताओं का कहना है कि पीके ने चुनाव प्रबंधन की रणनीति बनाने से दूरी बनाते हुए एक नया स्टार्टअप शुरू किया है. इस स्टार्टअप के जरिए पीके के खुद नेतागीरी करने और नेताओं से जुड़ने का मौका, पैसा दोनों है.

महाराष्ट्र के सीनियर जर्नलिस्ट हर्षवर्धन के अनुसार, देश के कई बड़े राज्यों का विभाजन करके अलग राज्य बनाने की मांग हो रही है. महाराष्ट्र में अलग विदर्भ राज्य की मांग बरसों से हो रही है. उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने की मांग बहुत पहले से हो रही है.

इसका प्रस्ताव सालों से लंबित है. तो पश्चिम बंगाल से अलग उत्तरी बंगाल राज्य की मांग भी तेज हो गई है. बीजेपी के नेता इसकी मांग कर रहे हैं. बिहार में अलग मिथिलांचल की मांग है तो साथ ही सीमांचल के रूप में अलग राज्य बनाने की मांग भी होती रहती है, जिसके लिए बिहार और पश्चिम बंगाल दोनों के पुनर्गठन की जरूरत बताई जाती है. कुछ और राज्यों के पुनर्गठन की मांग गाहे-बगाहे होती रहती है.

हर्षवर्धन कहते हैं, अब पीके इस मामले के विशेषज्ञ के तौर पर काम कर सकते हैं. इस फील्ड में अभी किसी और ने अपने हाथ आजमाए नहीं है. पीके को इस मौके को ताड़ा और राज्यों का विभाजन करने को लेकर कैसे राजनीति की जाए?

इसकी सलाह और कार्ययोजना नेताओं को देने को लेकर पीके ने अपना नया एजेंडा तैयार कर लिया है. उनका यह एजेंडा देश के कितने राज्यों में नेताओं को भाएगा, यह वक्त बताएगा.

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com