रेशमा खान
एकतरफ जहां कांग्रेस मिथिलांचल की दो सीटों सहित कुछ महत्वपूर्ण सीटों के फिसल जाने से नाराज है, वहीं राजद बिहार में एकबार फिर अपने पुराने मुस्लिम-यादव (M-Y) फार्मूले पर वापस लौट गई है।
सूत्रों की माने तो आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भले सक्रिय राजनीति से दूर हो, लेकिन पर्दे के पीछे से वे ही आरजेडी की रणनीति बना रहे हैं। साथ ही तेजस्वी यादव को चुनावी मैदान में जातीय समीकरण साधना सिखा रहे हैं।
एक समय “गरीबों का मसीहा” के नाम मशहूर लालू यादव बिहार की राजनीति में अपने सोशल इंजिनियरिंग के जाने जाते हैं। आरजेडी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए आठ यादव और तीन मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
आरजेडी ने दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव, लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती और तेजप्रताप यादव के ससुर चंद्रिका यादव को टिकट दिया है।
बलात्कार के दोषी और पार्टी विधायक राज बल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी को भी नवादा से मैदान में उतारा गया है। आपराधिक छवि वाले और सजायाफता नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को सिवान सीट से टिकट दिया गया है।
दरभांगा से कांग्रेस के किर्ती आजाद का टिकट काटकर पार्टी नें वरिष्ठ राजद नेता और पूर्व वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्द्की को मैदान में उतारा है। बेगसराय से एक बार फिर राजद ने तनवीर हुसैन को मैदान में उतारा है। वो पिछली बार बीजेपी के उम्मिदवार भोला सिंह से हार गए थे।ज्ञात हो की इसी सीट दो फायरब्रांड नेता-बीजेपी के गिरीराज सिंह और सीपीआई से कन्हैया कुमार भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
लालू यादव की राजनिति 1990 के दशक के लेकर अबतक मुस्लिम और यादव समीकरण के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। हालांकि, दलित और अतयंत पिछडे वर्गों का समर्थन भी उन्ह लगातार मिलता रहा है। इसी सोशल इंजिनियरिंग की वजह से लालू यादव“गरीबों का मसीहा” भी बन उभरे और बिहार में सत्ता से लेकर संसद तक का सफर तय किया।
अन्य महागठबंधन के सहयोगियों राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP), विकास इंसां पार्टी (VIP) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) को EBC, OBC और महादलित वोटों की जिम्मेदारी दि गई है।
उपेन्द्र कुशवाहा कोएरी समुदाय के मजबूत नेता माने जाते हैं। आरएलएसपी के नेताओं के अनुसार कोएरी समाज राज्य में करीब – करीब 10 प्रतिशत है। मुकेश सहानी भी निषाद समुदाय के मजबूत नेता माने जाते है। निषाद, मल्लाह और नोनिया की आबादी राज्य की 14 प्रतिशत हैं- ये तीनों समुदाय राज्य में अत्यंत पिछडी जाती मानी जाती हैं।
सूत्रों का दावा है कि पिछले दो वर्षों में, मुकेश सहनी इन तीनों समुदायों को एकजुट करने के लिए पूरे बिहार में रैलियों का आयोजन करते रहे हैं। एम-वाई (M-Y) समीकरण का लगभग 30 फीसदी वोट शेयर (मुस्लिम 16 फीसदी और यादव 14 फीसदी) हैं।
बिहार में दलितों में उप-जाति, मुसहर समुदाय में जीतन राम मांझी की बड़ी हिस्सेदारी है। इस समुदाय की आबादी लगभग 40 लाख है। 2007 में मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने ही इसे महादलित वर्ग में शामील किया था।
राजद नें कांग्रेस सहित पांच राजनितिक दलों के साथ बिहार में महागठबंधन बनाया है। राजद खुद 20 सीटों पर चुनाव लड रही है और कांग्रेस को 9 सीट दिए हैं।
उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) ने पांच सीटों पर अपना कब्जा जमाया। दो छोटे क्षेत्रीय दलों हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और विकासशील इन्सान पार्टियों को 2019 के आम चुनाव लड़ने के लिए तीन सीटें दी गई हैं।
राजद ने सीपीआई-एमएल के लिए अपने कोटे से एक सीट छोड़ी है। शरद यादव, जिन्होंने हाल ही में लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया वो भी इस बार राजद कोटे से यादव बाहुल्य मधेपुरा सीट से चुनाव लड रहे हैं।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, जो मधेपुरा सीट से चुनाव भी लड़ रहे हैं, राजद के उम्मीदवार शरद यादव के लिए एक बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)