न्यूज़ डेस्क
लखनऊ। लॉकडाउन के कारण पनवाड़ी उजड़ गई हैं। पान की खेती करने वाले किसानों के परिवार के समक्ष भुखमरी जैसी स्थिति आ गई है। देश में लॉकडाउन से नगदी फसलों की खेती करने वाले किसान बर्बाद हो गए हैं। इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
सरकार को यह सोचना चाहिए कि अन्नदाता सुखी नहीं रहेगा तो भंडार कैसे भरेगा? लॉकडाउन के चलते पान की दुकानें नहीं खुलने से पान का कारोबार बंद है। ऐसे में किसान पान के पत्तों को कचड़े में फेंकने को विवश हैं। पान बर्बाद होने से सीधे 35 लाख लोग प्रभावित हुए है।
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यूपी के पान उत्पादक भुखमरी की कगार पर हैं। पहले दिसंबर और जनवरी में पड़ी कड़ाके की ठंड और फिर फरवरी- मार्च में हुई बेमौसम बारिश ने पान की फसल चौपट कर दी और अब लॉकडाउन के चलते पान को कोई पूछने वाला नहीं है। जिससे अब तक करीब 250 करोड़ की मार पान करोबार पर पड़ी है।
फसल खेतों में बर्बाद हो रही है। न तो आढ़ती ले जा रहे हैं और न ही पान दुकानदार। उत्तर प्रदेश का महोबिया, देशी, बंगला और मघई पान देश भर में प्रसिद्ध है। लेकिन इन दिनों कोई इसे पूछने वाला नहीं है।
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बनारसी पान के कारोबार का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि यहां से पान की आपूर्ति पूर्वांचल समेत बिहार, बंगाल, उड़ीसा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र समेत देश के कई राज्यों में है। लॉकडाउन के कारण पान का कारोबार ठप हो गया है। जानकारों का मानना है कि अकेले काशी में बनारसी पान व्यवसाय को 15 करोड़ का नुकसान हुआ है।
राष्ट्रीय पान किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव छोटेलाल चौरसिया की मानें तो पान की खेती के लिए ढालू जमीन चाहिए, जिसमें पानी न रुके। लेकिन बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने इस फसल पर तुषारापात कर दिया। फरवरी में पान की बेल लगती है और डेढ़ महीने बाद पान निकलने लगता है।
तीन साल तक यही पौधा चलता है। वह बताते हैं कि एक एकड़ में पान की खेती करने में करीब 10 लाख रुपए की लागत आती है, जिससे पहले साल में करीब पांच लाख का मुनाफा होता है। लेकिन इस बार की फसल से लागत भी नहीं निकली है।
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दुकानें नहीं खुलने से सड़ गया पान
लॉकडाउन की वजह से पान की दुकानों पर ताला लगा रहा और सबसे ज्यादा खपत पान की गुमटी से होती है, वे सब अपनी दुकानें बंद कर अपने घरों को लौट गए, नतीजा पान सड़ गया और किसानों को मजबूरी में उसे फेंकना पड़ा। मौसम ने भी इस बार पान किसानों को खून के आंसू रुलाया है।
यहां होती है पान की खेती
छोटेलाल चौरसिया के अनुसार उत्तर प्रदेश करीब 21 जिलों में 1000 हेक्टेयर में पान की खेती की जाती है। इनमें हरदोई, सीतापुर, उन्नाव, रायबरेली, लखनऊ, कानुपर, ललितपुर, महोबा, जौनपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, गाजीपुर और बलिया प्रमुख जिले हैं। वह बताते हैं कि पहले 10 हजार एकड़ जमीन पर पान की खेती होती थी, लेकिन पान मसाला के चलन से रकबा लगातार कम होता गया।
छोटेलाल के अनुसार इन दिनों पान सप्लाई न होने के चलते पान खराब हो चुका है। वह बताते हैं कि पान का पत्ता अधिकतम 20 दिनों तक ही रखा जा सकता है, जबकि लॉकडाउन के कारण अब तक पान की दुकानों पर काम नहीं शुरू हुआ है।
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पान की फसल का भी किया जाये बीमा
राष्ट्रीय पान किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव छोटेलाल चौरसिया ने सरकार से मांग कि है की अन्य फसलों की तरह पान की फसल का भी बीमा किया जाये। पान की खेती करने वाले जिलों में सरकारी मंडी बनाई जाये और सरकार की योजनाओं का लाभ पान किसानों को भी मिले। वह कहते हैं कि पान किसानों के पास अधिक भूमि नहीं है, इसलिए उन्हें सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है।
कब कितना हुआ नुकसान
- दिसंबर- जनवरी में जाड़े ने 60% फीसदी पान चौपट किया, जिससे 150 करोड़ से ज्यादा नुकसान सीधे किसानों को हुआ।
- फरवरी- मार्च में बरसात और ओला ने करीब 25 करोड़ की चोट पहुंचायी।
- मार्च से अब तक लॉकडाउन ने पान से जुड़े तमाम अन्य कारोबारी और किसानों को 250 करोड़ की चोट दी है, जिसकी भरपाई होना मुश्किल है।
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