ओम प्रकाश सिंह
दुनिया दुख और बदलाव से बनी है। दुख और बदलाव के ज्वार-भाटे सब में अनिवार्य रूप से चढ़ते उतरते हैं। कभी वह कुछ ले जाते हैं तो कभी दे जाते हैं।
रामनगरी अयोध्या के पंकज का जीवन इसकी मिसाल है। दुखों से जूझते उन्होंने अपना चेहरा बदलते देखा, फिर जीवन। अलबत्ता उनकी जिजीविषा ने उनके दर्द को फ़न और विरूपण को ही वैशिष्ट्य बना दिया। खुद का गम भूल अपनी लेखनी व वाणी से लोगों को खिलखिलाने पर मजबूर करने वाले पंकज का मानना है कि ‘बिछाया जिसके लिए अपना जिस्म कागज़ ने, यही दुआ है कलम वो बिका हुआ न मिले’। पेश है पंकज श्रीवास्तव से स्वतंत्र पत्रकार ओमप्रकाश सिंह की खास बातचीत…
काव्य रचना का ख्याल कब आया
लेखन का शौक शुरू से था पर शौकिया, बचपन से रंगमंच पर नाटकों में भाग लेता रहाऔर क्रिकेट में बहुत रुचि थी। जीवन में एक ऐसा दौर आया जब मैं ब्रेन ट्यूमर की वजह से आई परेशानियों के कारण अवसाद में चला गया। तब एकाकी रहना ही पसंद आता था। उसी समय परिवार और कुछ मित्रों की वजह से लेखन पर गंभीरता से ध्यान देने लगा।
श्रोताओं, दर्शकों से कैसा रिस्पांस मिलता है और आपको कैसा महसूस होता है
क्या लिखूं और किन विषयो पर यह गंभीर प्रश्न था। रोज़ होने वाली घटनाओं पर दो दो लाइन लिखकर फेसबुक पर डालने लगा। को पसंद आने लगी और उनके सकारात्मक कमेंट से विश्वास बढ़ता गया जिससे खुद में छिपे एक व्यंगकार को मैं खुद पहचान पाया।
बदले चेहरे पर हंसते लोगो ने कभी चेहरा छुपाकर निकलना सिखाया था। फिर यही सोच आई कि इनको अब मैं अपनी कविताओ से हंसाऊंगा जो आज तक जारी है।
आज अनगिनत संख्या में कवि सम्मेलन कर चुका हूँ और जब लोग सेल्फी लेने आते है और मोबाइल नंबर मांगते हैं तब यह एहसास होता है कि मैंने सही राह चुन ली है। क्योंकि लेखन ने मुझे अयोध्या के बाहर अन्य तमाम राज्यो में पहचान दी है। आज फर्स्ट एसी से लेकर वायुयान से होती यात्राएं सब इसी की देन है।
कैसी दुनिया का सपना देखते हैं आप
मैंने जीवन संघर्षों में जिया है और आज भी उसी में लगा हूँ। मेरी कोशिश रहती है कि मेरी कलम हर उन मुद्दो पर चले जिन पर चलने से आजकल कलमकार रुक जाते है क्योंकि वो किसी न किसी राजनीतिक दल की चादर ओढ़ लेते है।
एक कलमकार होने के कारण यह मेरा पहला कर्तव्य है कि समाज देश से जुड़े मुद्दों पर अपनी कलम अवश्य चलाऊं और वो भी निष्पक्ष। कभी कभी ऐसा करने पर विरोध का सामना करना पड़ता है पर यह भी सच है कि सच कडुआ ही होता है।मीठा सदैव चाटुकारिता को ही दर्शाता है।
निष्पक्ष लेखन हमेशा देश और समाज की आवश्यकता रही है और यह भी जरूरी नही कि सभी आपकी बात से सहमत हो पर आईना दिखाना एक साहित्यकार का ही काम है।
मंचीय मोहब्बत और असली मोहब्बत में कैसा फासला महसूस करते हैं
मंचीय मोहब्बत हमेशा ऊर्जा देती है और आत्मविश्वास बढ़ाती है। आप खुद का सही आंकलन मंच से कर सकते है। कुछ नया करने की चाहत बनी रहती है और यही चाहत नया लेखन भी करवाती है।
असली मोहब्बत आपकी रीढ़ होती है जो आपके हर सुख दुख के लिए समर्पित रहती है। आज जो दृढ़ इच्छाशक्ति खुद में महसूस करता हूँ वो इसी की देन है।
चेहरे में बदलाव कब आया और आपने जब खुद को देखा तो कैसा लगा
बात जरा लंबी है पर सत्य है। बात 1997 की है, क्रिकेट टीम का ट्रायल चल रहा था। बॉलिंग करने के लिए दौड़ा तो एकाएक मेरी आंखों के सामने अंधेरा हो गया और मैं रुक गया। दोबारा प्रयास पर भी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
दोस्तों ने बॉलिंग ना करने की हिदायत दी। घर लौटकर मैंने पिताजी को फोन पर घटना के बारे में बताया। पिताजी ने तुरंत लखनऊ बुलाकर न्यूरो के डॉक्टर को दिखाया गया, सीटी स्कैन से पता चला कि ब्रेन ट्यूमर हो गया है। अगले ही दिन मुझे अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली में डॉक्टर ए एन झा को दिखाया।
डॉक्टर ने कहा आपरेशन के दौरान कुछ भी हो सकता है। जान भी जा सकती है, आंखें भी जा सकती है, याददाश्त जा सकती है या पैरालिसिस हो सकता है।
ऑपरेशन हुआ, लगभग 24 घंटे बाद मैं होश में आया। अगले दिन सुबह मैं जैसे ही बाथरूम में गया तो सामने लगे शीशे में अपना चेहरा देख डर गया।
मेरा चेहरा पूरी तरह से बदल चुका था। एक दिन मुझे महसूस हुआ गर्दन के ऊपर एक सुराख हो गया है और उसमें से कुछ पानी सा निकल रहा है।
डॉक्टर ने बताया यह सीएसएफ़ लीकेज है यानी ब्रेन से पानी बाहर आ रहा है। देखते ही देखते 104 बुखार हो गया, ब्रेन से लगातार पानी आना जारी था। मुझे दिल्ली दिखाया गया।
डॉक्टर ने कहा ना ऑपरेशन किया जा सकता है और ना ही इस तरह लगातार बहना उचित है दोनों दोनों ही तरीके से जान का खतरा है।
मैं वापस हरदोई आ गया, घर के कमरे को हॉस्पिटल के रूप में बदल दिया गया। एक दिन मैं बेहोश हो गया लगभग 10 दिन बाद मैंने एक परछाई को देखा जिस ने मुझसे कहा उठो पंकज ब्रेन से पानी नहीं आ रहा है। मैं हड़बड़ा कर उठ गया, रात के 11 बजे थे।
मुझे क्या पता कि मैं 10 दिन बाद जागकर उठा हूं। मैने पूछा पापा मम्मी कहां है, बहन ने बताया रुद्राभिषेक करने गए हुए हैं। थोड़ी ही देर में हॉस्पिटल का पूरा स्टाफ इकट्ठा हो गया मुझे देखने के लिए।
पापा मम्मी घर आए तो तुरंत मुझे हॉस्पिटल ले गए। चेकअप में जिस जगह से पानी निकल रहा था वह जगह ही नहीं मिली। सभी आश्चर्यचकित थे। लगभग आधे घंटे तक मेरा परीक्षण किया गया पर वह सुराख नहीं मिला और ना ही पानी निकल रहा था।
बगैर इलाज किए कोई सुराख ऐसे कैसे गायब हो सकता है। बुखार भी गायब था और मैं एकदम चैतन्य। मैं नहीं जानता वह अदृश्य शक्ति कौन थी।
जिसने मुझे बताया, जिसकी आवाज सुनकर में उठा। निश्चित रूप से यह चमत्कार था। वह साक्षात ईश्वर थे या कोई, यह नहीं जानता पर इतना जानता हूं आज जीवित हूं तो उसी शक्ति की वजह से। जीवन के 24 साल एक चेहरे के साथ जिया और फिर एक नया चेहरा मिला।
उस चेहरे के साथ जी रहा हूं। एक अभिनेता या क्रिकेटर बनने की चाह उस ऑपरेशन के बाद समाप्त हो गई। कभी चेहरा छुपा कर घूमता था। लोग मेरे चेहरे पर हंसते थे पर आज मैं अपनी बातों से अपनी कविताओं से सबको हंसा रहा हूं।