हरीशचन्द्र श्रीवास्तव
ज्योतिष में पंचक एक ज्ञान है जिसका मानव जिवन पर प्रभाव देखने को मिलता है । पंचक के पांच नक्षत्र क्रमशः धनिष्ठा (पृथ्वी तत्व) शतमिषा (जल तत्व) पूर्वाभाद्रपद (अग्नि तत्व) उत्तर भाद्रपद (जल तत्व) एंव रेवती (जल तत्व) है।
चूंकि इन पांचो नक्षत्र में वायु तत्व एंव आकाश तत्व का संयोग नही मिलता है। अतः इस नक्षत्र में मृत्यु होना अति अशुभ होता है। धनिष्ठा नक्षत्र में यदि कोई रोग उत्पन्न होता है तो 45 दिन तक कष्ट होता है।
शतभिषा नक्षत्र में ग्यारह (11) दिन तक कष्ट होता है । पूर्वाभाद्रपद में यदि मार्केश आदि अति अशुभ समय चल रहा है तो मृत्यु दायक होता है । उत्तराभाद्रपद में रोग होने पर 15 दिन तक पीड़ा रहती है।
धनिष्ठा पंचक ग्रामें शतमिषा कुल पंचकम्।
पूर्वा भाद्रपदारक्षया श्चोत्तरागृह पंचकम् ।
रेवती ग्राम वाह्य़ं च एतत पंचक लक्षणम्।
धनिष्ठ नक्षत्र में जन्म – मरण होतो उस ग्राम में पांच जन्म-मरण हो। शतमिषा में जन्म – मरण होने पर कुल में मुहल्ले में पांच जन्म मरण होता है ।
उत्तरभाद्रपद गृह-पंचक है, इसमे जन्म-मरण होने पर घर कुटुम्ब में पांच जन्म मरण कहा गया है। रेवती नक्षत्र वाह्य पंचक है इसमे जन्म – मरण होने पर गांव से बाहर
अर्थात दूरस्थ पांच जन्म – मरण कहा गया है ।
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उक्त नक्षत्रों में किसी की मृत्यु होने पर मृत प्राणियों की पंचक शांति के बाद ही सब संस्कार करना चाहिए अन्यथा पुत्र और सगोत्रियों को अशुभ पंचक के कुप्रभाव से दुख झेलना पड़ता है और हानि होती है। अतः इसकी शांति के लिए पांच पुतलो का विधान करके ही दाह संस्कार करना चाहिए तदन्तर सूतक के समाप्त होने पर नक्षत्र शांति कर्म भी करना चाहिए। इससे दोष कम हो जाता है ।उक्त पांचो नक्षत्रों में दक्षिण गमन , छत बनवाना वर्जित है। इन नक्षणो में अशुभ कार्यो में वृद्धि होता है पंचक शांति करा देने से घर में हानि नही होती है।
(लेखक ऊँ अस्था ज्योतिष केन्द्र संस्थापक हैं)