योगेश बंधु
आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान ने जब नवम्बर 2018 में एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज की मांग की थी तो अमेरिका सतर्क हो गया था उसे शक था कि पाकिस्तान आईएमएफ से ये सहायता चीन का कर्ज उतारने के लिए मांग रहा है।
उसने (अमेरिका) पाकिस्तान से चीन के कर्ज पर पारदर्शिता लाने की मांग की थी। लेकिन अब चीन ने नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को ख़ुद 2.2 अरब डॉलर की मदद दी है।
इससे पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति दुरुस्त हो सकेगी। संभवत: इससे पाकिस्तान विदेशी ऋण किस्त का समय पर भुगतान कर सकेगा और इसमें डिफाल्ट होने से बच जायेगा। पाकिस्तान चालू वित्त वर्ष में अब तक अपने मित्र देशों से 9.1 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता प्राप्त कर चुका है। जहां चीन से पाकिस्तान को 4.1 अरब डॉलर की मदद दी गई है वहीं सऊदी अरब से तीन अरब डॉलर और संयुक्त अरब अमीरात से दो अरब डॉलर की मदद उसे मिली है।
पाकिस्तान के केन्द्रीय बैंक की ताजा साप्ताहिक रिपोर्ट के मुताबिक 15 मार्च 2019 को स्टेट बैंक आफ पाकिस्तान की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि 8.84 अरब डालर पर पहुंच गई। विदेशी मुद्रा भंडार की खस्ता हालत और पाकिस्तान के करेंट अकाउंट घाटे की वजह से कई विश्लेषकों ने यह भविष्यवाणी करना शुरू कर दी थी कि जुलाई में आम चुनाव के बाद इस्लामाबाद को 2013 के बाद दूसरी बार अंतराष्ट्रीय मॉनेटरी फंड (IMF) बेलआउट पैकेज की जरूरत पड़ सकती है।
बदकिस्माती से पाकिस्तान के हालात अभी भी बहुत नही बदले हैं। चीन पर पाकिस्तान की निर्भरता ऐसे समय में बढ़ रही है जब अमेरिका पाक को दी जाने वाली वित्तीय मदद में कटौती कर रहा है। पाकिस्तान को इस कर्ज का फ़ायदा ये है कि जहाँ इससे अब कुछ दिनो के लिए फ़ौरी राहत मिलेगी वहीं नुक़सान ये है की पाकिस्तान पर चीन का शिकंजा दिनोदिन कसता जा रहा है।
बीजिंग पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए यूं ही तत्पर नहीं दिखाई पड़ता है। चीन की महात्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट ऐंड रोड के तहत बनाए जा रहे चाइना-पाकिस्तान कॉरिडोर (CPEC) की वजह से दोनों देशों के बीच मजबूत राजनीतिक और सैन्य साझेदारी की जरूरत है।
चीन अपने कर्ज के जाल में श्रीलंका को पहले ही फंसा चुका है। जनवरी में कर्ज के बोझ तले दबे हुए श्रीलंका ने चीन को रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था।
श्रीलंका का उदाहरण यह बात समझने के लिए काफी है कि चीन का कर्ज आधारित मॉडल कैसे काम करता है। गृह युद्ध के अंत के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को संवारने के लिए कोलंबो ने 2005 से 2017 के बीच करीब 15 बिलियन डॉलर (चीनी मुद्रा में) हासिल किए थे।
श्रीलंका का सबक उन सरकारों के लिए था जो चीन के मूलभूत ढांचे के विकास के नाम पर दी जाने वाली वित्तीय मदद के प्रलोभन में आ जाते हैं। लेकिन पाकिस्तान बार-बार चीन की शरण में जा रहा है। देखने में तो यह लगता है कि कर्ज में डूबे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को हर बार अधिक क़र्ज़ देकर चीन उसकी मदद कर रहा है, लेकिन वास्तव में पाकिस्तान के कर्ज में डूबने की वजह भी चीन ही है।
CPEC प्रोजेक्ट के तहत भारी स्तर पर चीनी मशीनरी के आयात की वजह से करेंट अकाउंट घाटा पर दबाव पड़ा है। दूसरी तरफ तेल की बढ़ती कीमतों की वजह से तेल आयातक पाकिस्तान की मुसीबतें बढ़ी हैं।
CPEC का पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पर बोझ- वर्तमान वित्तीय वर्ष के पहले 10 महीनों में पाकिस्तान का करेंट अकाउंट घाटा 14 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। पाकिस्तान के कर्ज के पीछे चीन का भी हाथ है।
शी जिनपिंग ने नवाज़ शरीफ़ के कार्यकाल में ही जब पाकिस्तान की संसद में ‘द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी और साझा विकास के लिए’ चीन की ओर से सुरक्षा गारंटी दी थी, तब उस वक़्त कम ही लोगों को अंदाज़ा था कि चीन आने वाले बरसों में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की बैसाखी बनने जा रहा है।
पाकिस्तान उस वक़्त भी निवेश के लिहाज से माकूल मुल्क नहीं था, लेकिन अमरीका से लेकर यूरोप तक उसके कई मददगार थे।
लेकिन चीन शायद बदलते वक़्त की आहट काफ़ी पहले भांप चुका था। दरअसल, पाकिस्तान में सीपेक के ज़रिए घुसपैठ करने के बाद चीन उस पर अपना वर्चस्व बढ़ाता जा रहा है।
पीओके के अलावा चीनी सरकार व्यापार के लिहाज़ से पाकिस्तान के सबसे खास ग्वादर पोर्ट पर भी अपना दबदबा बढ़ा रहा है। यहां तो उसने अपने 5 लाख चीनी नागरिकों को बसाने के लिए एक अलग शहर ही बसाने का फैसला किया है।
जहां सिर्फ चीनी नागरिक रहेंगे। चीनी ज़बान बोली जाएगी और चीनी करेंसी भी चलेगी। मतलब एक लिहाज़ से पाकिस्तान ने चीनी करेंसी को लीगल टेंडर मानने की हामी भर दी है। क़र्ज़ और मदद के इस खेल के दूरगामी परिणाम भारत के लिए चिंता का विषय हैं क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन पाकिस्तान को आर्थिक कॉलोनी बनाना चाहता है। इस खेल में चीन के सैन्य हित छुपे हैं।
पाकिस्तान से भारत पर दवाब डाला जा सकता है। सीपेक का रूट समंदर तक जाता है और चीन को समंदर तक संपर्क की ज़रूरत है। चीन, पाकिस्तान को क़र्ज़ के रूप में अपने सामरिक निवेश को देख रहा है, तात्कालिक तौर पर हो सकता ही उसे वाणिज्यिक लाभ नहीं हो लेकिन दीर्घकालीन सामरिक फायदा हैं। चीन का आज फोकस अरब सागर तक जाने का है।
एक बार अरब सागर तक चीन की पहुंच हो गई तो साफ़ है कि मुंबई, ओमान और सऊदी अरब चीन की पहुँच से बहुत दूर नहीं होंगे, इसीलिए पाकिस्तान उसके लिए बहुत महत्व रखता है और इसके लिए वो आर्थिक नुक़सान उठाने को तैयार हैं।
दूसरी तरफ़ अगर चीन पाकिस्तान में नीति प्रभावित करने की स्थिति हासिल कर लेता है तो वहां लोकतंत्र, मीडिया और सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता पर भी ख़तरा हो सकता है और इसका आँच भारत को भी महसूस करनी पड़ सकती है। ये भारत के लिए नुक़सानदायक है।