Tuesday - 5 November 2024 - 9:04 AM

हाथ में कटोरा और पीटेंगे ढिंढोरा

सुरेंद्र दूबे

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान आगामी 22 जुलाई को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से मिलने जाने वाले है। उद्देश्य साफ़ है पाकिस्तान के लिए इमदाद मांगनी है। सबको मालूम है पाकिस्तान पूरी तरह से कर्ज में डूबा हुआ है जो कुछ उसकी कमाई होती है या कही से इमदाद मिल जाती है। उसका अधिकांश पैसा सूद चुकाने में चला जाता है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट और पाकिस्तान के चालू खाता घाटे के लगातार बढ़ने की वजह से कई फाइनैंशल ऐनालिस्ट्स का मानना है कि जुलाई में होने वाले आम चुनाव के बाद पाकिस्तान को साल 2013 के बाद अब अपने दूसरे बेलआउट पैकेज के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। IMF ने पिछली बार पाकिस्तान को 6.7 अरब डॉलर की सहायता दी थी।

पाकिस्तान एक बार फिर साल 2013 जैसे आर्थिक संकट की स्थिति में पहुंच गया है। देश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस महीने पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर को अगले साल के लिए घटाकर 4.7 प्रतिशत कर दिया है। जो कि सरकार के 6.2 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी कम है।

मार्च 2018 तक पाकिस्तान ने उससे पहले के 6 महीनो में चीन से 1.2 अरब डॉलर का लोन लिया था। इसी समयावधि के दौरान पाकिस्तानी सरकार ने चीन से 1.7 अरब डॉलर का कॉमर्शियल लोन भी लिया, जो अधिकांश चीनी बैंकों की तरफ से दिए गए। अप्रैल माह में पाकिस्तान के सेंट्रल बैंक ने एक बार फिर चीन के कॉमर्शियल बैंकों से 1 अरब डॉलर का कर्ज लिया।

अर्थव्यवस्था की चरमराती स्थिति की वजह से पाकिस्तानी रुपये में भी गिरावट आती जा रही है। मौजूदा समय में एक डॉलर की कीमत 164 पाकिस्तानी रुपये हो गई है। कर्ज चुकाने के लिए सरकार ने सरकारी संपत्तियों को बेचने का फैसला लिया है। लाख कोशिशों के बावजूद अभी तक वह अपने मित्र देशों से व आईएमएफ, विश्व बैंक से कर्जा लेने में विफल रही है।

चीन ने अब पाकिस्तान को दिवालिया होने से बचाने के लिए दो अरब डॉलर कर्ज देने का फैसला लिया है। एक जमाना था जब अमेरिका, पाकिस्तान का बहुत बड़ा मददगार होता था और उसे जो मदद मिलती थी उसका अधिकांश हिस्सा वो भारत विरोधी कार्यों में करता था, जिसमें नफरत फ़ैलाने से लेकर आतंकवादियों को आर्थिक मदद देना शामिल होता था। धीरे-धीरे आतकंवादी सेना के मदद से पाकिस्तान पर हावी हो गये। आज स्थिति ये है की पाकिस्तान की सत्ता के तीन केंद्र बिंदु है पहला पाकिस्तानी सरकार, दूसरा मिलिट्री व आइएसआई और तीसरा आतंकवादी संगठन।

इमरान खान मिलिट्री व आतंकवादी संगठनों की मदद से ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने है। इसलिए उनके हाथ में कटोरा थमा दिया गया है। जाओ दुनिया भर से इमदाद मांग के लाओ। अब इमरान खान अमेरिका जाने वाले है जहाँ वो ट्रम्प के सामने पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध की जा रही कार्रवाईयों का ढिंढोरा पीटेंगे ताकि नाराज ट्रम्प खुश हो जाए और उनकी झोली में भीख स्वरुप कुछ इमदाद डाल दें।

आइये देखते है इमरान खान किन आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध कैसी कार्रवाई करने का नाटक रचने की तैयारी कर रहे है, जिसका आतंकवाद पर वास्तविक रूप से नियंत्रण करने से कोई लेना देना नहीं है।

गत तीन जुलाई को पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद व उसके 12 साथियों के विरुद्ध आतंक विरोधी मुक़दमे दर्ज कराए है, जो मुख्यतः मनी लाउंडरिंग व आतंकी फंडिंग से सम्बंधित है। ऐसी खबरें है कि अमेरिका जाने से पूर्व इन लोगों को जेल में भी डाला जा सकता है।

जुबिली पोस्ट के पाठकों को याद होगा कि मुंबई में हुए 26/11 आतंकी हमले का हाफिज सईद मुख्य आरोपी है, जिसके विरुद्ध पाकिस्तान ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की और जब भी भारत सरकार ने इसके विरुद्ध कोई प्रमाण दिया तो पाकिस्तान ने उन आरोपों को सिरे से नकार दिया। हाफिज सईद को भारत सरकार वैश्विक आतंकी घोषित कराने में सफल रही थी। तब वह लश्कर-ए-तैयबा नाम के आतंकी संगठन का मुखिया  था।

दुनिया की आंख में धूल झोखने के लिए लश्कर-ए-तैयबा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और अब हाफिज जमात-उद-दावा के नाम से आतंकी संगठन चला रहा है और उसने चुनाव में खुल कर इमरान खान की मदद भी की थी। ऐसी स्थिति में इमरान खान हाफिज सईद के विरुद्ध कोई कार्रवाई करेंगे इस पर विश्वास करने का कोई कारण नहीं है। जैसे ही ट्रम्प शाहब खुश हो जायंगे और इमरान की झोली में कुछ टुकड़े दाल देंगे। पाकिस्तान पलटी मार देगा और हाफिज सईद जेल से बाहर आ जायेगा।

चलो मान भी लेते है हाफिज सईद के विरुद्ध कोई कारगर कार्रवाई हो जाएगी पर अजहर मसूद का क्या होगा, जिस पर भारत में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर एक कार में विस्फोट कराकर 42 जवानों को उड़ा देने का घिनौना आरोप है। इसके बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक कराई, जिसमें अजहर मसूद के संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सैकड़ों कार्यकर्ता मारे गए। इस घटना से पाकिस्तान के सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।

पाकिस्तान ने अपनी अकड़ दिखाने के लिए भारत की सीमा में एफ-16 लड़ाकू विमान भेजा, जिसका उद्देश्य हमारी सीमा के सामरिक ठिकाना पर हमला करना था। परन्तु हमारी एयरफोर्स ने इसे नाकाम कर दिया। इस विमान को भगाने में हमारा एक मिग विमान क्रैश हो गया, जिसके पायलट अभिनंदन को 48 घंटे पाकिस्तान की हिरासत में रहना पड़ा। भारत के दबाव में पाकिस्तान को मजबूरी मेंपायलट अभिनंदनको छोड़ना पड़ा। इसके बाद देश में लोकसभा के चुनाव हुए और सत्ताधारी दल भाजपा ने बालाकोट में की गई। एयर स्ट्राइक को राष्ट्रवाद से जोडकर चुनाव में जनता से वोट मांगे।

हाफिज सईद के विरुद्ध थोड़ी बहुत कार्रवाई का नाटक चल रहा है पर अजहर मसूद का पाकिस्तान सरकार नाम ही नहीं ले रही है जिसे वैश्विक आतंकी घोषित किया जा चूका है जिसकी वजह से पाकिस्तान आर्थिक जगत में बुरी तरह अलग थलग पड़ गया है। अब उसे कहीं से भी आर्थिक मदद मिलने की उम्मीद नहीं है। पहले चीन से थोड़ी बहुत उम्मीद थी परन्तु भारत की डिप्लोमेसी का इस समय इतना जलवा है कि कोई भी देश पाकिस्तान की मदद करके अपनी आलोचना नहीं कराना चाहता है।

इसलिए उसे फिर अमेरिका की याद आई है जहां जाकर इमरान खान भारत के विरुद्ध कुछ रोना रोयेंगे। आतंकवाद का सफाया करने की झूठी कसमे खाएंगे और अगर ट्रम्प बाबा खुश हो गये तो कुछ माल पानी भी ले आएंगे। ट्रम्प बाबा कुछ अलग ढंग के राष्ट्रपति है इसलिए भारत सरकार को ट्रम्प और पाकिस्तान की इस प्रस्तावित मुलाकात पर पैनी नजर रखनी होगी। आखिर अमेरिका भारत पर दबाव बनाये रखने के लिए पाकिस्तान को कुछ सहूलियत दे सकता है। अगर भारत सरकार को ये गलतफ़हमी है कि अमेरिका पाकिस्तान को भारत सरकार के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर देगा।

अमेरिका अपनी दादागिरी बनाये रखने के लिए कोई न कोई पेंच अडा़ सकता है ताकि पाकिस्तान के मुद्दे पर भारत को हमेशा अमेरिका हस्तछेप या कूटनीतिक मदद की जरूरत बनी रहे। वैसे इस समय तो ट्रम्प साहब ये भी कह रहे है कि उनके पास पक्की जानकारी है की दाउद पाकिस्तान में ही छुपा है पर हमें यह गलतफ़हमी नहीं होनी चाहिए की अमेरिका दाउद मामले पर भारत की कोई मदद करेगा। रही बात पाकिस्तान की तो लगातार यही कहता रहा है की दाउद उसके देश में नहीं है।

हालांकि, भारत सरकार तमाम सबूत सौंपकर पाकिस्तान पर ये दबाव बनाने की कोशिश कर चुकी है की वह दाउद को उससे सौंंप देंं। पर पाकिस्तान है की मानता ही नहीं। माना तो उसने ये भी नहीं था की अल कायदा का प्रमुख ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में ही है। जब अमेरिका के टुकड़ों पर पलने के बावजूद पाकिस्तान ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद में सैन्य मुख्यालय के बगल में अपने देश में पनाह दिए रहा, जिसे अमेरिका ने अपने सील नेवी कमांडरों की ताकत से मर गिराया था तब ये उम्मीद करने का कोई मतलब नहीं है की दाउद पाकिस्तान में ही है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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